Site icon Youth Ki Awaaz

क्या सच में भारत अहिंसा की धरती है? जानिए क्या कहता है इंडिया

कहते हैं कि जब किसी को किसी बात से फर्क पड़ता है तो उसे गुस्सा आता है। ऐसे में जब हम आपके लेख पढ़ते हैं तो हमें साफ पता चलता है कि आपको फर्क पड़ता है और गलत होता देख आपको भी गुस्सा आता है।

हमारे देश के लोगों में भी यही गुस्सा था जिसकी बदौलत हमें आज़ाद भारत मिला। लेकिन उस वक्त इस गुस्से का तरीका अहिंसा के रास्ते से होकर गुज़रता था। कई सारे आंदोलन अहिंसा के बल पर सफल हुए। लेकिन क्या आज के समय में भी हमारा देश में अहिंसा के बल पर बदलाव लाया जा सकता है?

अभी कुछ दिन पहले महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि थी। हम सब जानते हैं कि उन्होंने अपना सारा जीवन अहिंसा के नाम किया था लेकिन जिस तरह से उनकी मृत्यु हुई है, उससे फिर यह सवाल उमड़ जाता है कि क्या सच में भारत अहिंसा की धरती है?

हम खुद इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं और इसी तलाश में हमारे पास कुछ बेहतरीन लेख और विचार आएं। उन लेखों ने जहां हमारे होमपेज पर जगह बनाई तो वहीं कुछ अन्य विचारों को हम यहां शामिल कर रहे हैं।
_______________________________________________________________________________

हां ,भारत की धरती अहिंसा की धरती है। भारत का प्राचीन इतिहास से लेकर वर्तमान तक के स्थितियों को देखें तो पायेंगे कि भारत के मूल लोग आदिवासी थे। “आदिवासी” हमेशा अहिंसक रहे हैं।

हिंसक तो आर्य रहे हैं। जब से आर्य मध्य एशिया यूरेशिया से भारत आए हैं तब से उनका इतिहास हिंसक अक्रमणकारी रहा है। आर्यों की हिंसा का लंबा इतिहास है। आज भी आर्यों के मूल संगठन आरएसएस और राजनीतिक संगठन भाजपा दोनों हिंसक है।

हिंसक सिंद्धांत के कई रूप हैं। इनके मनु स्मृति ग्रंथ का दर्शन, वर्ण व्यवस्था, ऊंच – नीच, भेद-भाव, छूआ-छूत, छल-प्रपंच, शम-दंड-भेद, शोषण – दमन आदि-आदि। मुगल भारत आए, भारत में आक्रमण कर भारत की धन संपदा को लूटने के लिए, ये हिंसक थे।

अंग्रेज़ व्यापार करने भारत आए और वे आर्थिक राजनीतिक शासक बने। आगे उन्होंने भारत को उपनिवेशिक बनाकर उसका शोषण व शासन किया। उनकी यह कार्रवाई हिंसक थी। धर्म- दर्शन -विचारधारा को वे छोड़कर चले गए हैं।

भारत की धरती में रहने वाले आदिवासियों की धर्म और संस्कृति महान रही है। इसकी महानता का इस बात से पता लगाया जा सकता है कि भारत की धरती में सभी समुदायों एवं उनकी धर्म संस्कृति रूपी नदियों का पानी सागर में समा गया है। इस सागर रुपी साझा संस्कृति को ही गंगा-जमुनी की तहजीब कहा जाता है।

यह ऑब्जर्ब करने की सहज क्षमता सिर्फ भारत की धरती में है और यह संभव सिर्फ आदिवासियों की महान धर्म-दर्शन व संस्कृति से है। भारत की मूल मानवता की संस्कृति मरी नहीं है। मानवता की रक्षा के लिए यह संस्कृति हमेशा समय -समय पर उठ खड़ी हुई है। कभी बुद्ध, कभी महावीर, कभी गाँधी और अभी शाहीन बाग के रूप में मौजूद है।

आदिवासी समुदाय

दुनिया की ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की समस्या बनी हुई है। यदि इसका समाधान नहीं किया गया, तो मानव का विनाश अपने हाथों से बहुत जल्द होगा। धार्मिक दृष्टि से थोड़ा इतिहास को देखें, तो आर्य ‘यज्ञ’ करने के लिए लकड़ी जलाने के लिए भारी पैमाने पर जंगल की लकड़ियों को काटते और नष्ट करते थे और उसे बचाने के लिए आदिवासी विरोध करते थे।

आर्यों ने अपना रामायण, महाभारत जैसे काव्य-महाकाव्यों में उन आदिवासियों को राक्षस की संज्ञा देकर अमानवीय करार दिया। यह अमानवीय करार देना हिंसक नहीं तो क्या है?

आज की निजी, पूंजीपति और साम्राज्यवादी विचारधारा ने अपने फायदे के लिए प्रकृति का दोहन और समाज का दमन-शोषण किया है। यह हिंसक नहीं तो क्या है? इस हिंसक विचारधारा दर्शन से दुनिया को नहीं बचाया जा सकता और ना ही शांति, ना खुशी,ना सुख और समृद्धि दी जी सकती है।

आदिवासियों ने मार्क्स से बहुत पहले आदिम सामाजवादी, समानतावादी समाज दिया है। भाईचारा, सौहार्द की विचारधारा, दशर्न और संस्कृति अहिंसक है और उसमें सुख समृद्धि का संदेश निहित है। आदिवासियों की प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण दर्शन से ही ग्लोबल वार्मिंग समस्या का हल है।

यदि दुनिया को बचाना है तो आदिवासियों के दर्शन में लौटना होगा। यदि भारत को यानी भारत में रहने वाले लोगों की खुशहाली के लिए थोड़ा भी सोचते हैं, तो सभी तरह के हिंसक विचारों और दर्शनों को त्याग दें।
________________________________________________________________________________

देश में पिछले दिनों बढ़ती हिंसा को देखते हुए यह सोचना ज़रूरी हो जाता है कि गाँधी के भारत में कहीं अब अहिंसा की ज़मीन बची भी हुई है या नहीं ? स्कूलों, कॉलेजों व नुक्कड़ों से लेकर घरों तक अशांति का माहौल बना हुआ है।

यह अशांति बढती हिंसा के कारण ही हो रही है। पिछले दिनों की अगर बात करूं तो जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी दिल्ली में जैसे पुलिस द्वारा कॉलेजों में घुसकर हिंसात्मक तरीके से लोगों को मारा गया, जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी दिल्ली में जिस तरह से युवाओं ने अपने ही युवा साथियों के साथ हिंसा की, लखनऊ में एनआरसी का विरोध के समय जिस तरह से हिंसा हुई और लोगों की गाड़ियां व सम्पति को नुकसान हुआ।

यह सब देखकर इस बार मन यह कहने को कहता है कि गाँधी के भारत को हम नहीं बचा सके और अब हिटलरशाही के साथ दुनिया हिंसक भी बन गई है। लेकिन जैसे ही दूसरे पहलू की तरफ नज़र जाती है, तो जहां महात्मा गाँधी को याद करते हुए गाँधी की तस्वीर के सामने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सड़कों पर हज़ारों युवा अपने करियर की चिंता किये बीना अपनी मांग को लेकर सडको पर बैठे है। जिनका हर तरीका अहिंसक है।

शाहीन बाग दिल्ली में लाखों महिलाएं घरों की आरामदायक व्यवस्था को छोड़ महीनों से सड़कों पर अपनी मांग को लेकर है। वह भी अहिंसक। जामा मस्जिद में जो लोग बैठे हैं वे भी अहिंसक। निजामुद्दीन में प्रदर्शन हो रहा है, वह भी अहिंसक। जबलपुर में लोग अपनी मांग को लेकर रोड में बैठे हैं, वह भी अहिंसक। सीलमपुर उत्तरप्रदेश में लोग अपनी मांग को लेकर बैठे हैं, वह भी अहिंसक। पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण देश के चारों ओर लोग अपनी आवाज़ के लिए रास्ते में है। जगह-जगह अपनी मांगों के लिए लगातार आ रहे हैं।

हम देख रहे है कहीं पुस्तके पढ़ी जा रही हैं, तो कहीं मार के बदले गुलाब दिया जा रहा है। यह गाँधी का रास्ता है। इसे देख खुशी भी होती है और हमें इन सबसे यह भी लगता है कि कुछ ज़मीन नहीं पूरे देश में ही अहिसा के रास्ते चलने वाले लोग हैं। इसलिए ही ये धरती टिकी हुई है और भारत अहिंसा की भूमि है। कुछ सिरफिरों द्वारा थोड़े-थोड़े समय में हिंसक बनाने की कोशिश की जाति है लेकिन गाँधी के आलावा कोई रास्ता उन्हें भी नहीं दिखता है।

________________________________________________________________________________

भारत, आज़ादी की मांग के शुरूआत से ही अहिंसा की धरती रहा है। कई लोग कहते हैं कि भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद हिंसा के द्वारा आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन मेरा मानना है कि वे भी हिंसा का प्रयोग अंग्रेज़ सरकार को अपनी आवाज़ सुनाने के लिए करते थे ना कि उन्हें मारने के लिए।

उन जैसों वीरों की बदौलत 26 जनवरी 1950 को देश गणतंत्र हो गया और संविधान लागू हो गया। अब अपने देश मे लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं। मेरा मानना है कि अब देश पूरी तरह से अहिंसावादी है। मुझे अपने संविधान की न्यायिक प्रक्रिया मे भरोसा है और बाकी सबको भी होना चाहिए।________________________________________________________________________________

हां, भारत सच मे अहिंसा की धरती है। लेकिन जब भी देश में कोई हिंसा होती है तो मुझे बहुत गुस्सा आता है। वैसे तो मेरे भारत देश में पहली हिंसा करने वाला #Godse_Virus था।

इस वायरस ने देश की कई बड़ी राजनीतिक पार्टियों और संस्थानों में घुल मिलकर उन्हें बीमार और लाचार बना दिया है। मुझे इन बड़ी राजनीतिक पार्टियों पर इसलिये अफसोस होता है क्योंकि बीमारी इनके साथ उठती बैठती है, लेकिन फिर भी इस बीमारी का इलाज करने की बजाय बीमार का इलाज करते हैं।

72 सालो में देश ने बहुत तरक्की की लेकिन गोडसे वायरस को खत्म करने के लिये एंटी डोज़ तैयार करने में लापरवाही की वजह से देश का एक वर्ग आज इसकी कीमत चुका रहा है।

________________________________________________________________________________

 

जब धर्म का मोहरा काम नहीं आया, जब वर्दी वाले गुंडो से गुंडागर्दी करवा कर भी चैन नहीं पडा, जब बुर्का पहनकर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाकर माहौल खराब करने का फॉर्मूला भी फेल हो गया, तब सीधे आतंक फैलाने के लिए नागपुर यूनिवर्सिटी के गुंडो को भेज दिया गया है ।

पुलिस संरक्षण में एक आतंकवादी बेखौफ होकर प्रोटेस्ट कर रही भीड़ में घुसता है और पुलिस के सामने काफी देर तक पिस्तौल लहराने के बाद फायरिंग कर देता है और कहता है “ये लो आज़ादी”। आज ये लोग पिस्तौल लहरा रहे हैं, प्रोटेस्ट में गोली चला रहे हैं। कल को यही आतंकवादी मासूम लोगों की इसी पिस्तौल से हत्या भी करेंगे।

गोली चलाने वाले आतंकवादी को सरकार और पुलिस द्वारा मानसिक बीमार बताकर हलकी धाराएं लगा कर छोड़ दिया जाएगा। जेल से छूटते ही बड़े नेता फूल मालाओं से इनका स्वागत करेंगे और एक दिन यह आतंकवादी भाजपा का बड़ा नेता भी बनेगा।

एक दिन पहले ही एक बड़े नेता ने कहा था “गोली मारो #@%* को” और फिर प्रोटेस्ट कर रहे एक छात्र को गोली मार दी गई, यही वे लोग हैं जिन्होंने महात्मा गाँधी को भी उसी तारीख को गोली मारी थी। यही लोग आतंकवादी है।

अभी शायद पुलिस इस आतंकवादी को गिरफ्तार भी कर लेगी, लेकिन जिस अनुराग ठाकुर, मोदी और शाह ने इसे पोटेंशियल हत्यारा बनाया है, वे खुले में घूमते रहेंगे और देवेंद्र सिंह, शंभू रैगर और इस आतंकवादी के जैसे आतंकियों की नई खेप तैयार करते रहेंगे। जब सरकार खुद आतंकियों और हत्यारों के साथ खड़ी है, तो आम जनता को ही इन आतंकवादियों से निबटना होगा। मतलब ये देश में सिविल वॉर की शुरुआत है।

बस पहले तो मैं आपका धन्यवाद व्यक्त करना चाहूंगी किआपने मुझे यह अवसर दिया कि मैं अपने विचार साझा कर पाऊं। जी हां भारत आज भी अहिंसा की धरती है और आज भी अहिंसा का मार्ग अपनाकर ही बहुत सारी समस्याओं पर जीत हासिल की जा सकती है।

आज भारत की जो मौजूदा स्थिति है, वह वास्तव मे बेहद निंदनीय है और हमें इसके लिये आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। यह विचारधारा और समानता की लड़ाई है और हम अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही भारत को इस स्थिति से बाहर निकाल सकते हैं।

मैं मेरे द्वारा लिखी एक छोटी सी कविता भेज रही हूं और एक सुझाव यह कि बुलन्द स्वर मे समानता के भाव से हमें देश के हर वर्ग तक अपनी आवाज़ और विचारों को पहुंचाकर उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ना होगा।

मैं नया वर्ष

भारत से नई मेरी कोई मांग नहीं।

नवभारत निर्माण करना बेशक हो ख्वाब मेरा

पर इतिहास को बदलना मकसद ना हो।

लोकतंत्र के रखवालों के हाथों अबकी बार लोकतंत्र का चीरहरण ना हो,

पुलवामा सा दर्द ना हो यहां उरी सा आतंकवाद ना हो

यहां महिला होने के नाम पर सबरीमाला सा बवाल ना हो,

निर्भया कह-कह कर यहां बेटियों का बलात्कार ना हो,

अंधे इस कानून में न्याय की गुहार का अब बस और इम्तेहान ना हो,

देश का भविष्य ही शिक्षण संस्थानों के बाहर कानूनी डंडो का शिकार ना हो,

जाति-धर्म के नाम पर अब और यहां हिंदू-मुसलमान ना हो,

अपने आबरू की भीख ना बेटी की मांगे,

यहां गुनहगारों का सत्कार ना हो,

मैं नया वर्ष, मुझे देश को बदलना नहीं, मुझे देश को बचाना है,

संविधान को भाषणों में नहीं, ज़ेहन में उतारना है,

शिक्षा और ज्ञान को महज़ डिग्रियों में नहीं बल्कि सोच में संवारना है।

धन्यवाद

जय हिन्द।

Exit mobile version