1967 के दशक में इंदिरा गाँधी ने एक नारा दिया था “रोटी कपड़ा और मकान” और आज करीब 53 साल बाद फिर चुनाव कुछ इसी तर्ज पर लड़ा गया है। जी हां, मैं बात कर रहा हू दिल्ली विधानसभा चुनाव की।
आप सबको पता चल गया होगा कि आम आदमी पार्टी पुनः दिल्ली में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है लेकिन क्या कारण थे जो केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार को दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा?
आज हम कुछ प्रमुख कारणों पर गौर करेंगे जो दिल्ली में बीजेपी के हार के कारण हो सकते है ।
आम आदमी की छवि
शुरुआती दिनों से ही अरविंद केजरीवाल ने खुद को एक आम आदमी के तौर पर जनता के सामने रखा। अन्य बड़े नेताओं से हटके वीवीआईपी कलचर से खुद को दूर रखने का पूरा प्रयास किया। इससे वह जनता से जुड़े रहे। उनकी एक अलग पकड़ और छवि इस चुनाव में रंग लाई।
वहीं बीजेपी के अन्य बड़े नेता सोशल मीडिया पर ही आम आदमी पार्टी की आलोचना करते दिखे, सतह पर वे जनता से इतना नही जुड़े।
मुख्यमंत्री पद का कोई स्पस्ट उम्मीदवार ना होना
2013 का लोकसभा चुनाव आप सबको याद होगा। हमने सभी को मोदी लहर शब्द का उपयोग करते सुना था। यही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सुनाई दिया।
मतलब प्रधानमंत्री के तौर पर बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी ही चहरा थे लेकिन दिल्ली चुनाव में बीजेपी के तरफ से कोई भी नाम सामने ना आने से मतदाताओं के मन मे एक संशय बना रहा और बिना चहरे के लोग वोट दें भी तो किसको?
वहीं अरविंद केजरीवाल के रूप में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी पहले से तय थे ।
मुफ्त-बिजली पानी और बस सेवा बनी प्रमुख कारण
फ्री का सामान किसे नहीं पसदं? फिर बिजली पानी तो सबसे प्रमुख ज़रूरते हैं। अरविंद केजरीवाल का यह पेच बहुत बड़ा गेम चेंजर साबित हुआ।
- 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त और 20 हज़ार पानी मुफ्त करने से गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार का पूरा झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया,
- आम आदमी पार्टी ने महिलाओं पर भी फोकस किया,
- केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी।
एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करती हैं। वहीं बीजेपी अपने मेनिफेस्टो से दिल्ली की जनता को संतुष्ट नहीं कर पाई। वोट देते समय मुफ्त का बिजली पानी चले जाने का डर जनता के मन मे रहा होगा और जनता ने आम आदमी पार्टी को ही वोट देना ठीक समझा ।
विकास बना सबसे बड़ा मुद्दा
हाल ही के दिनों में हमने सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी के द्वारा दिया स्लोगन सुना और पढ़ा होगा “जो कहा करके दिखाया”। यह बात अलग है कि आम आदमी पार्टी अपने किए वादों का 25% ही कर पाई लेकिन फिर भी नए शासकीय विद्यालय, पुरानी कक्षाओं की मरम्मत , मोहल्ला क्लिनिक पर केजरीवाल ने जनता का विश्वास जीता और विकास के नाम पर केजरीवाल बीजेपी से आगे निकल गए। बीजेपी का सबका साथ सबका विकास यहां कारगर नहीं हो पाया।
शाहीनबाग, जामिया और जेयनयू भी बीजपी के हार के कारण
जेएनयू से शुरू हुआ एंटी CAB और NRC आंदोलन भी बीजेपी की हार का कारण बना। CAB और NRC पर आम आदमी पार्टी की तरफ से कोई भी स्पष्ट स्टैंड समझ नही आया। अरविंद केजरीवाल भी इस मुद्दे पर खुद बोलने से बचते रहे। ना वे इसके पक्ष में दिखे और ना ही विपक्ष में दिखे।
वहीं बीजपी के नेताओं की तरफ से शाहीन बाग को एक साम्प्रदयिक मुद्दा बनाया जाना और ध्रुवीकरण की राजनीति करना जनता को रास नहीं आया और इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिला। चुनाव प्रचार के समय इन्ही मुद्दों पर बीजपी की तरफ से की गई बयानबाज़ी बीजपी के ही विपरीत साबित हुई।
- पहले तो अरविंद केजरीवाल को बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का केजरीवाल को आतंकवादी बताना
- वहीं दूसरी तरफ प्रवेश वर्मा का शाहीन बाग में धरना दे रहे लोगों को लेकर यह कहना कि ‘ये लोग आपके घरों में घुसकर रेप करेंगे’।
- इस्लामिक संगठन पीएफआई और असम से भारत को अलग करने की बात कहने वाले शरजील इमाम को आम आदमी पार्टी के नेताओं से जोड़ना,
- केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का ‘देश के गद्दारों को, गोली मारों…का’ नारा लगवाना आदि।
ये सब पूर्णतः बीजपी के विरुद्ध गया और इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिला जोकि चुनाव नतीजों में साफ दिखाई दे रहा है ।
अब देखना यह है कि 1967 के रोटी कपड़ा और मकान की राजनीति आज की विकास की राजनीति के समान ही है या कुछ भिन्नता लाएगी। अब आने वाले 5 साल ही यह तय करेेंगे कि अरविंद केजरीवाल इस चुनाव में किये अपने वादों को कितना पूरा कर पाते हैं। या वे भी कुछ वक्त बाद जुमलों की सरकार बनकर रह जायेंगे ।