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“क्यों आर्थिक तौर पर महिलाओं को सशक्त बनाना ज़रूरी है”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पुरूष प्रधान देश में महिलाओं के पक्ष में कुछ कानून हैं, जो सिर्फ कागज़ों तक सीमित हैं, जिनका उपयोग ना के बराबर है। महिलाएं अक्सर अपने आप को स्टेबल करने के लिए किसी का भी सहारा ना लेकर  कुछ ही सालों में कठोर मेहनत के बाद उभर कर आती हैं।

हम समाजिक प्राणी हैं और हमारा कर्तव्य है कि हम अपने साथी की मदद करें उनका मनोबल बढाएं और रूढ़िवादी परंपरा को सकरात्मक तरीके से बदलाव की ओर अग्रसर करें।

महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने वाली संस्था WIEF

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

हमारे देश में कई ऐसी संस्थाएं हैं, जो महिलाओं के विकास के लिए कार्य करती हैं, जिनमे से एक हैं WIEF. (वीमेन इनोवेशन एंटरप्रेन्योरशिप फाउंडेशन), जिसके द्वारा आयोजित नैशनल नैशनल सम्मिट ऑफ वीमेन एंड एजुकेशन एम्पावरमेंट, 2020 का आयोजन किया गया।

इस संस्था को चलाने वाली और इसकी संस्थापक डॉ. श्वेता सिंह अपने आप में ही एक सफल सम्पूर्ण सकरात्मकता की छवि हैं। वह नौ करोड़ महिलाओं की सफलता की मिसाल हैं। श्वेता उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर जौनपुर से हैं।

मैं अचंभित भी हूं और खुश भी कि हमारे भारत में ऐसी महिलाएं भी हैं, जो समाज को बदलने की क्षमता रखती हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर श्वेता जी का आभारी हूं कि उन्होंने शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। सम्पूर्ण भारत से कामयाब महिलाओं को बुलाया और कामयाबी के नुस्खों से ओत प्रोत करवाया।

यह शिखर सम्मेलन तीसरा सम्मेलन हुआ। इसकी सफलता के लिए महिलाओं का अधिक योगदान रहा। श्वेता का सबसे महत्वपूर्ण विषय यह रहा कि वह महिलाओं को आर्थिक तौर पर मज़बूत करना चाहती हैं और बताती हैं कि अगर आपके पास पैसा है, तो आपके अंदर खुद ब खुद आत्मविश्वाश आएगा और आप सफलता की ओर अग्रसर होंगी।

WIEF, का लक्ष्य यह है कि भारत की 260 डिस्ट्रिक्ट और 10.5 लाख महिलाओं को आर्थिक तौर पर मज़बूत करें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्था गरीब और पिछड़े हुए राज्यों के लिए कार्य करने के लिए उत्सुक है, जो बहुत प्रभावशाली पहल है। टियर 3 और टियर 4 के राज्यों के लिए कार्य करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मेरी व्यक्तिगत तौर पर आपके साथ शुभकामनाएं हैं और आपकी मेहनत से और महिलाएं भी मिसाल बनेंगी।

मिसान बनीं आरुषि

प्रतीकात्मक तस्वीर।

शिखर सम्मेलन वार्ता में अनके सफल महिलाओं ने भाग लिया, जो वास्तव में सफल हुईं और अभी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ रही हैं। इस सम्मेलन में महत्वपूर्ण चेहरा रहीं उत्तराखंड की आरुषि पोखरियाल (निशांक)। यह वह लड़की है, जिन्होंने कम आयु में ही सफलतापूर्वक हर कार्य को अंजाम दिया।

आरुषि, फिल्म प्रोड्यूसर के साथ-साथ कवयित्री भी हैं और प्राकृतिक पर्यावरण के बचाव के लिए आगे आई हैं। इन्होंने एक सफल अभियान चलाया जो ‘स्पर्श गंगा’ के नाम से विख्यात है। इस अभियान की संस्थापक आरुषि, खुद को एक सम्पूर्ण और सफल महिला के रूप में परिभाषित करती हैं।

आरुषि कहती हैं,

एक मशहूर कहावत है, हर कामयाब पुरुष के पीछे किसी ना किसी महिला का हाथ होता है, यह तथ्य अपने आप में सब कुछ बयान कर देता है महिलाओं को सशक्त होने की ज़रूरत नहीं है। वे खुद में सशक्त हैं।

वह आगे कहती हैं, “अब बात आती है जो व्यक्ति किसी व्यक्ति को सफल कर रहा हो, उसको किसी बाहरी शक्ति की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सृष्टि ने उन्हें सशक्त ही बनाया है। आज की तारीख में पुरुषों के सोच को सशक्त करने की ज़रूरत है। इस पितृसत्तात्मक समाज को आज बदलने की आवश्यक्ता है।”

कौन थी गौरा देवी?

आरूषि का कहना है कि सबसे पहले प्रकृति के लिए लड़ने वाली भी महिला गौरा देवी थीं। चिपको आंदोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें महिलाओं ने भारी संख्या में भाग लिया था। चिपको आंदोलन, वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था।

वह कहती हैं, “रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था। इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लड़ाने को तैयार बैठे थे, जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गाँव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाज़ी लगाकर असफल कर दिया था। यह कार्य भी किसी महिला द्वारा ही किया गया।”

उपरोक्त विवरण द्वारा एक छोटी सी पहल है, महिलाओं को बताने की कि वे सशक्त हैं। उनके अंदर वह शक्ति है, जो ब्रह्मांड की रचना करती है। बिना महिलाओं के प्रकृति ने कुछ भी नहीं बनाया है। सशक्त अपनी सोच को करने की ज़रूरत है। महिला तो खुद ब खुद सशक्त चरित्र हैं।

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