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आशालता सेन, जिन्होंने महिलाओं को राजनीतिक संघर्ष के लिए संगठित किया था

आशालता

आशालता

महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर धवल खादी के वस्त्रों में किफायती जीवन शैली का रास्ता चुनकर आम जन की सेवा करने वाली महिला के तौर पर आशालता सेन को याद किया जाता है।

वह हस्ती, जो सदैव दूसरों की सेवा करने के लिए व्याकुल रहीं। अपनी धारणाओं के प्रति हमेशा सचेत, तनिक भी एहसास होता कि वह गलत हैं, तो उस तरफ संकेत करने से कभी नहीं नहीं हिचकती थीं।

आशालता सेन की माँ ने लिखा था साहित्य

आशालता सेन।

नोआखली, जो अब बांग्लादेश में स्थित है, वहीं जन्म हुआ था आशालता सेन का। एक शिक्षित और प्रबुद्ध परिवार के मुखिया बागला मोहन दासगुप्ता और मोनोद दासगुप्ता के घर 2 फरवरी 1894 आशालता का जन्म हुआ था।

उनकी नानी ने अपनी सास से छुपकर आशालता की माँ को अपने देवरों के सहयोग से पढ़ना लिखना सिखाया। यही कारन है कि कम उम्र में शादी होने की वजह से पढ़ाई छोड़ने के बाद भी आशालता की माँ मोनोद दासगुप्ता ने वृद्धावस्था में अपना संस्मरण लिखा, जिसका शीर्षक था “एक युवा वधू की डायरी” जिसे अंग्रेज़ी में “डायरी आंफ ए यंग ब्राइड” का शीर्षक दिया। इस पुस्तक को बंगाली साहित्य में बहुत सम्मान मिला। बस इसी समृद्ध परंपरा का लाभ आशालता को भी हुआ।

सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में थी दिलचस्पी

आशालता की माँ और नानी दोनों एक समान्य गृहणियां थीं मगर स्वतंत्रता आंदोलनों में चल रही गतिविधियों के बारे में आस-पास की महिलाओं से बात किया करती थीं। यही कारण है कि बचपन से ही आशालता की रूचि सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में थी।

उस दौर की रीतियों के अनुसार बारह वर्ष की कम उम्र में ही आशालता का विवाह एक सरकारी कर्मचारी सत्य रंजन सेन के साथ कर दिया गया, जो एक उच्च शिक्षित परिवार के सदस्य थे। 

आशालता का वैवाहिक जीवन 22 वर्ष की उम्र तक ही चल सका, जब उनकी गोद में चार साल का पुत्र था। उनकी माँ मोनोद दास गुप्ता और ससुर राजकुमार सेन ने आशालता सेन का हर तरह से साथ दिया। छह वर्ष के बाद आशालता बांग्ला, अंग्रेज़ी तथा संस्कृत का व्यापक अध्ययन कर चुकी थीं। यही नहीं, वह घर के बाहर की दुनिया में भी गहरी दिलचस्पी लेने लगी थीं।

आशालता सेन की महात्मा गाँधी से मुलाकात 

महात्मा गाँधी। फोटो साभार- Getty Images

आशालता सेन के चाचा निवारण दास गुप्ता ने महात्मा गाँधी से आशालता की मुलाकात करवाई। इसके बाद महात्मा गाँधी को गुरू मानकर आशालता सेन सत्याग्रही बन गईं। उन्होंने गणदारिया में महिला समिति का गठन किया। यह उनके लिए मानसिक, सामाजिक और आर्थिक संघर्ष का काल था। 

आशालता सेन द्वारा ढाका शहर में महिलाओं को शिक्षित एंव राजनीतिक संघर्ष के लिए संगठित करने के प्रयासों की वजह से उनको रूढ़िपंथी पुरुषों के विरोध का सामना करना पड़ा।

उस दौरान उनके ससुर उनके शक्ति स्तंभ बने रहे। इसका लाभ तब दिखा जब स्वदेशी मेले के माध्यम से अनेक महिलाओं के साथ मिलकर उन्होंने महिलाओं के अंदर राजनीतिक चेतना जागृत करने में सफलता हासिल की। अपनी तमाम परेशानियों का ज़िक्र उनहोंने कविता संग्रह में किया, जो “विद्युत” शीषर्क से प्रकाशित हुई। 

स्वतंत्रता के संघर्ष में आशालता सेन की भागीदारी

महात्मा गाँधी।

महात्म गाँधी ने जब नमक सत्याग्रह का ऐलान किया, तो आशालता सेन ने अपने नगर में उस कानून को भंग करने की योजना बनाई। स्वतंत्रता के संघर्ष में आशालता सेन की भागीदारी की शुरुआत हुई। वह बंगाल और असम के दौरे पर भी रहीं। वहां की महिलाओं को राजनीतिक संघर्ष के लिए तैयार किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान दो महीने में उन्होंने कमोबेश 60 गाँवों का दौर किया।

उनहोंने ‘सत्याग्रह सेविका दल’ में महिलाओं को बड़े स्तर पर शामिल किया और महिलाओं के साथ मिलकर धारा 144 को भंग कर दिया, इसलिए उनकी गिरफ्तारी हुई।

छह महीने के बाद जेल से निकलकर उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने दोनों ही समाज की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भता स्वयं पर बढ़ाने हेतु चरखा से रोज़गार का विकल्प दिया। 

आशालता सेन निर्विरोध MLA निर्वाचित हुईं 

दूसरी बार जब आशालता सेन जेल से बाहर आईं, तो बंगाल आकाल से जूझ रहा था। उन्होंने राहत शिवरों में काम करना शुरू किया। 1946 में आशालता सेन बंगाल विधानसभा की MLA निर्विरोध निर्वाचित हुईं, जिसके तुरंत बाद बंगाल में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए।

महात्मा गाँधी जब नोआखाली के दौरे पर थे, तब आशालता उनके साथ रहीं। उस दौरान उन्होंने अपहरित महिलाओं के पुर्नवास पर काम करना शुरू किया। 

स्वतंत्रता के साथ मिली त्रासदी से आशालता का मन टूट गया। आशालता सेन 1965 तक ढाका में रहीं। पुरानी विधानसभा में अपनी सदस्यता की अवधि पूरी होने पर उन्होंने पुन: निर्विरोध निर्वाचित किए जाने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

दिल्ली अपने बेटे के पास आईं। जब वह वापस जाना चाहती थीं, तो भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ गई। सीमाएं बंद कर दी गईं। इसके बाद आशालता सेन सार्वजनिक जीवन से विराल ले लिया और अपना जीवन साहित्यिक गतिविधियों में लगा दिया। 

92 वर्ष की उम्र में हुई मृत्यु 

एक प्रभुतासंपन्न बांग्लादेश के निमार्ण पर उन्हें असीम प्रसन्नता प्राप्त हुई थी। वह उस समय और भी प्रसन्न हुईं, जब उनके बेटे को विश्व बैंक में बांग्लादेश के लिए कार्यपालक निदेशक के पद पर नियुक्ति मिली। मातृभूमि के प्रति की गई उनकी सेवा उस दिन चरम बिंदु पर जा पहुंची। 92 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई।

आशालता सेन बंगाल के पुनर्जागरण की सच्ची बेटी थीं। वह क्रांति राममोहन राय, बंकिम और विद्यासागर के साथ शुरू हुई तथा टैगौर और गाँधी तक चली। अपनी कविता में उन्होंने महिलाओं के लिए लिखा,

नारी! तुम अपने “स्व” की बलि देकर अपने परमेश्वर को सब कहीं खोजती रही हो और तुम्हें पतन भोगना पड़ा है। आत्मविश्वास जगाओ तथा स्वाभिमान में उद्दीप्त हो उठो, तुम्हें अपनी भीतर ही परमेश्वर प्राप्त होगा।

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