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प्रवासी मजदूरों के लिए एक कविता

गीतकार और कवि वरुण ग्रोवर की एक कविता से प्रेरित.

हम पैदल चलते जाएंगे

बोझा सिर पर उठाएंगे

बोझा सिर पर उठाएंगे
हम पैदल चलते जाएंगे.

तुम दीन-दिहाड़ी बोलोगे
तुम भूख- भिखारी बोलोगे
हम बेघर कर दिए जाएंगे
हम पैदल चलते जाएंगे.

फावड़ा- छैनी भी सुस्त पड़े हैं
रिक्शा- ऑटो भी कब से खड़े हैं
पिस पिस कर शहरों को गुलजार किया
छांव न देने की जिद पर अड़े हैं

फावड़ा- छैनी भी सुस्त पड़े
रिक्शा- ऑटो भी कब से खड़े हैं
पिस पिस कर शहरों को गुलजार किया
जो छांव न देने की जिद पर अड़े हैं

तुम राशन राशन लाओगे
तुम बंद गाड़ियों में जाओगे
हम बच्चों को समझाएंगे
हम पैदल चलते जाएंगे

हम मन ही मन बतियाऐंगे
हम पैदल चलते जाएंगे
हम शोक राग भी गाएंगे
हम पैदल चलते जाएंगे
हम पटरी पे सो जाएंगे
हम पैदल चलते जाएंगे

तुम बर्गर पिज्जा खाओगे
हम पानी पानी चिल्लायेंगे
हम पैदल चलते जाएंगे.

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