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आसान कुछ भी नहीं था

आसान कुछ भी नहीं था

 

आ तू मेरी जगह मैं तेरी जगह जीवन की गाड़ी चलाना आसान कहां

 

आसान नहीं था चंद दिनों में किसी ऐसे को जीवनसाथी चुनना जिसकी सेहत के बारे में पहले से ही सब पता था। कोई बड़ी बीमारी तो नहीं थी बस एक छोटा सा हादसा ही था पर जब जीवनसाथी बनाने का सोचा तब पता नहीं था कि आगे उस हादसे से शरीर उभर भी पाएगा या नहीं। कुछ सवालों का जवाब तब भी नहीं था जैसे कितने दिन उस हादसे के साथ रहना होगा या कितने दिन छड़ी का सहारा लेकर चलना होगा?

 

 

आसान नहीं था शादी के लिए इतने सालों से जिस शहर में बसे हों उस शहर से लेकर अपने दोस्त, नौकरी को छोड़कर बिना कुछ सवाल किए एक दूसरे शहर में नई शुरुआत करना। अपने होने वाले साथी के साथ एक ऐसे शहर जाकर रहना जो कभी पसंद नहीं था। वहां रहकर नए सिरे से नया काम शुरू करना। बस इसलिए की साथी अपना शहर छोड़कर जाना नहीं चाहता था और होता भी तो ऐसा ही है कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है।

 

आसान नहीं था बिना शादी एक साथ रहना और गृहस्थी की शुरुआत करना। कुछ सोच समझकर तो साथ रहना तय नहीं किया था बस यूहीं हो गया था। सवाल पूछने वाले कई थे पर आसान नहीं था उन्हें सहना।

 

शादीशुदा दिन से ही पड़ा इमतेहां से साबका

 

आसान नहीं था रोज़ सुबह अपने साथी से पहले उठना, उठकर उसके लिए पानी गर्म करने से लेकर नाश्ता तैयार करना। कपड़ों से लेकर हर चीज़ तैयार करके रखना। जब पानी गर्म हो जाए तब अपने साथी को उठाना और जब तक साथी तैयार हो रहा हो उस्का नाश्ता टेबल पर तैयार रखना। वह भी आधा अधुरा नाश्ता नहीं पुरा फुल पेट भरपूर नाश्ता।

 

ज़िम्मेदारी को ईमानदारी से निभाना

 

अब क्योंकि हादसे की वजह से गाड़ी चलाना मना था ति आसान नहीं था रोज़ उसे ऑफिस छोड़कर आना। फिर लंच के लिए घर लेकर आना फिर ऑफिस छोड़ना और शाम को फिर लेने जाना। उस बीच में अगर कभी गलती से ऑफिस टाइम में फोन आ जाए कि भूख लगी है या ये खाने का मन है या जूस पीने का मन है तो वह भी लेकर ऑफिस जाना। उस पर भी उनके नखरे अलग “आज ना अपन ये खाएंगे।” अब जिस शहर में थे वहां कुछ अच्छा मिलना मुश्किल ही था तो एक और मुसीबत कि जो स्पेशल खाने का मन हुआ है वह बनाकर खिलाना। सुबह तो लंच मेड बनाकर चली जाती थी पर हर रात फरमाइश पर नई-नई डिश बनाकर खिलाना आसान नहीं था।

 

आसान नहीं था अगर किसी दिन काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ जाए तो ध्यान रखकर जाना कि कपड़े सारे स्त्री किए हुए हों, नाश्ता और सब्ज़ी फ्रिज़ में रख दी गई हो और घर ठीक ठाक कर दिया गया हो। कोशिश करना कि जिस दिन काम के लिए घर से दूसरे शहर गए हैं उसी दिन वापिस आने की कोशिश करना या ज़्यादा से ज़्यादा दूसरे दिन। हद तो यह कि सफर से वापिस आकर भी खुद ही रात का खाना बनाना।

 

मौसम तिल-तिल के इमतेहान लेता गया संघर्ष का

 

आसान नहीं था ठंड के मौसम में जब पैर बहुत ज़्यादा दर्द कर रहे हों घंटो बैठ पैर दबाना। सुबह उठ फिर पैर की मालिश करके देना। गर्मी के मौसम में घर में नल में पानी आना बंद हो जाए तो नीचे से पानी ला लाकर खुद अकेले पूरे ड्रम भर देना। बिना शिकायत किए आसान नहीं था बर्तन वाली आंटी न आए तो खुद सारे बर्तन धो देना और घर भी साफ करना।

 

अभी एक शहर में पूरी तरीके से बसे नहीं थे कि फिर तबादला आ गया। आसान नहीं था फिर किसी शहर में हंसी खुशी शिफ्ट हो जाना। नए शहर में जाकर फिर से घर बसाना और घर न मिलने तक कुछ दिन घरवालों के साथ रहना।

 

दोस्तों का आना उनकी पूरी ज़िम्मेदारी लेना, आसान नहीं था। उनके रहने खाने का सही से इंतज़ाम करना। शादी के बाद आसान नहीं था दोनों में से किसी भी परिवार के लोग आए उनकी अकेले ज़िम्मेदारी लेना। अकेले उनके लिए खाना बनाना, वह आ रहे हैं इसलिए घर संवारना, ज़िम्मेदारी लेना और उसपर दोनों के ही परिवार वालों की बातें भी सुनना बिना शिकायत किए। आसान नहीं था एक नए परिवार को इतनी जल्दी अपना मान लेना उन्हें इज़्ज़त देना उन्हें समझना और समझाना।

 

सपनों को पूरा करने का खाब 

 

आसान नहीं था अपने साथी के सपनों को पूरा करने के लिए अपने काम के साथ-साथ नए आइडियाज़ देना उस पर काम करना और उसके हर सपने में साथ देना चाहे फिर बातें हज़ार सुननी पड़े। आसान नहीं था परिवार का बोझ अपने साथी पर नहीं डालना। आसान नहीं था उसे अपने मन की करने देना और अपने तरीके से जीने देना।

 

आसान आज भी नहीं है जब साथी हादसे से उबर गया है फिर भी रोज़ सुबह ऑफिस से पहले उसके लिए नाश्ता तैयार रखना चाहे कितनी भी लड़ाई हो जाए कभी ऑफिस भूखा नहीं भेजना। ऑफिस के लिए उसका डब्बा पैक करना कभी जल्दी में डब्बा भूल जाए तो ऑफिस तक डब्बा पहुंचाना और जब शाम को वह थक कर घर आए तो गरमा गर्म खाने की प्लेट उसे हाथ में लेजा कर देना। 

 

नहीं है आसान इतना सबकुछ एक साथ करना 

 

पर ये कभी मेरे लिए मुश्किल हुआ ही नहीं। क्योंकि मुझे कभी यह सब करना पड़ा ही नहीं। अक्सर ये सारी कुर्बानी एक औरत देती है सारी ज़िम्मेदारी एक औरत लेती है पर हमारे रिश्ते में ये ज़िम्मेदारी मेरे साथी निकेश ने उठाई। काम, घर और मुझे तीनों को उसने ही संभाला। जो यह सारे काम बिना इगो जताए 3 सालों से करता आ रहा है, उसपर भी कभी इगो आया तो मेरा ही बीच में आया।

 

पढ़कर लग रहा होगा कि क्या खूबसूरत रिश्ता है

 

एसा लगा तो यह गलतफहमी है, उसे अभी दूर कर देते हैं। ताने और झगड़े फिर भी हममें उतने ही हैं बस फर्क इतना है कि वह झगड़े कभी निकेश और मेरे काम के बीच नहीं आए। निकेश ने कभी यह फर्क नहीं किया कि घर की सारी ज़िम्मेदारी औरत के पास और मर्द के पास बस ऑफिस का काम। क्योंकि निकेश घर से काम करता है और मुझे ऑफिस जाना होता है तो घर की सारी ज़िम्मेदारी मेरे बिना बोले उसने खुद ही ले ली। शादी से पहले या शादी के बाद कभी बैठकर बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि यह काम तुम्हारा ये काम मेरा है। ज़िम्मेदारी खुद ही दोनों ने बिना कहे उठा ली।

 

मुझे कभी नहीं सोचना पड़ा कि आज घर में क्या सब्ज़ी लाउं। मुझे आज भी नहीं पता कि आलू प्याज़ का बाज़ार में क्या भाव है। इन 3 सालो में मुझे याद ही नहीं कि मैं किचेन में कब गई और खाना बनाया सिवाय रोटी के। वह भी इसलिए क्योंकि निकेश रोटी अच्छे से बनाना नहीं जानता उस पर भी उसे दिखे की ऑफिस का प्रेशर मुझ पर ज़्यादा है और घर आने में देरी हो रही है तो रोटी भी उसने कई बार खुद ही बनाई।

 

निकेश के लिए यह सब वाकई आसान नहीं था

 

ये उसके लिए सही में आसान नहीं था। याद है मुझे जब वह ऑफिस में मेरे लिए खाना लेकर आता था मेरे ऑफिस के लोग जिस मज़ाकिया नज़रों से उसे देखते थे, उस पर फर्क नहीं पड़ा। मेरे एक ऑफिसर ने तो यहां तक मुझे कह डाला था “मैम फैमिली अच्छी है न निकेश की, मतलब कहीं बस पैसों के लिए तो आपसे शादी नहीं कर रहा।” उन्हें क्या पता था हम पैसों से ज़्यादा अपने सपने के लिए जीते हैं सपना निकेश का हो या मेरा। 

 

निकेश मुंबई में एक अच्छी खासी नौकरी छोड़कर मेरे लिए यवतमाल और फिर साथ में नागपुर आया था। मैं नौकरी छोड़कर मुंबई जाती तो समाज गर्व महसूस करता मेरी कुर्बानी पर, पत्नीधर्म कहता। वहीं एक लड़का नौकरी छोड़कर आया तो नज़र ही बदल गई। मैं आज भी किचेन में कम काम करती हूं इसलिए नहीं कि काम नहीं आता पर अगर मैं बहुत ज़्यादा समय किचेन में दूं तो यह खुद निकेश को पसंद नहीं। उसका कहना है “मैं चाहता हूं तू जीवन में कुछ और करे‌, नाम कमाए उस दिशा में काम करे यहां किचन में नहीं।” शायद यह खुशी पैसे से तो यकीनन नहीं खरीदी जा सकती थी।

 

शादी से पहले जब मैं मम्मी के घर से ऑफिस जाती थी तब भी मुझे नाश्ता टेबल पर मिलता था और आज शादी के बाद भी मुझे टेबल पर तैयार नाश्ता मिलता है। शादी से पहले ऑफिस में लोग मुझे छेड़ा करते थे “अभी मम्मी डब्बा बांध कर दे रही हैं इसलिए इतना दाल चावल रोटी सब्ज़ी चटनी पूरा डब्बा मिल रहा है शादी के बाद यह सब मुश्किल हो जाएगा।” आज भी मेरा डब्बा मुझे वैसा ही हाथ में मिलता है जैसा मम्मी के घर मिला करता था बस इतना कि मम्मी के यहां एग्जॉटिक सलाद नहीं मिलता था अब तो वह भी बाकायदा काटकर नमक और चाट मसाला के साथ मिलता है।

 

भूख दोनों को बराबर लगती है, जब घर दोनों का है

 

दुनिया को गलत लगता है क्योंकि आज भी दिमाग में फिट है और काम जेंडर के हिसाब से बांट दिए गए हैं। लड़का यह काम करेगा लड़की यह। लोग आज भी चौंक जाते हैं “अच्छा, खाना निकेश बनाता है?” भूख दोनों को बराबर लगती है, जब घर दोनों का है। जब रिश्तेदार दोनों के है, जब सपने दोनों के है फिर “एक्स्ट्रा बैगेज” किसी एक पर क्यों?

 

वह मेरे लिए यह सब करता है इसलिए सुबह 10 से 7 की नौकरी के बाद भी मैं समय निकाल पाती हूं दुनिया देखने के सपने को पूरा करने के लिए। अपने लिखने के शौक को पूरा करने से लेकर अकेले ही जाकर किसी कॉफी शॉप में बैठकर अपने साथ समय बिताने के लिए। मैं शायद कुछ ज़्यादा खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसा जीवनसाथी मिला वह मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही करता है।

 

आप भले ही थोड़ा कम कीजिए पर कीजिए तो सही एक बार हाथ बंटा कर तो देखिए, पति-पत्नी नहीं एक दूसरे के साथी बनकर तो देखिए।

 

चल कुछ यूं जीवन की गाड़ी चलाएं

तू थक जाए तो मैं खींच लूं

मैं थक जाऊं तो तू खींच ले

और दोनों ही थक जाएं

तो एक दूसरे के कंधे पर 

सर रखकर सो जाएं

फिर एक नई फुर्ती के साथ

जीवन की गाड़ी फिर चलाएं

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