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कोरोना त्रासदी के बीच पदयात्रा को विवश अंतिम आदमी

देश भर में जारी लॉकडाउन के कारण इन दिनों मजदूरों के पैदल ही अपने घरों को लौटने की विवशता दर्दनाक है। ऐसी कितनी ही कहानियां है जिनमे एक तरफ भूख  का अहसास है तो दूसरी ओर यह अनिश्चितता कि न जाने कब इस विभीषिका का अंत होगा। इधर कम्पनियों, बिल्डरों, फैक्ट्रियों ने काम बन्द कर उन्हें चाहे जहां जाओ वाली स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया वहीं  परिवहन सेवाओं को रोकने के अचानक लिए गए  निर्णय ने हजारों मजदूरों को अधबीच में लाकर फंसा दिया। निर्माण ठेकेदारों से लेकर , फैक्ट्री मालिकों ने बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के इन्हें जिस तरह अपने हाल पर छोड़ दिया। उस स्थिति में महात्मा गांधी  के इस अंतिम आदमी के लिए  पदयात्रा के शिवाय अन्य कोई  विकल्प भी तो नहीं था।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जंक्शन पर ऐसे ही लगभग 200 मजदूर जो झारखंड, बिहार, उड़ीसा जाने के लिए निकले थे वे फंस गए। रेल प्रशासन से लेकर पुलिस सब उन्हें अपने अपने क्षेत्र से भगाने में लग गए। ऐसे ही कई मजदूर वहां दक्षिण भारत से भी आ पहुंचे थे। 

कोई व्यवस्था ना देखकर 3 मजदूर बिलासपुर से शहडोल के लिए पैदल ही निकल पड़े जो अगले दिन शहडोल पहुंचे तो पुलिस ने रोक लिया और अगले 14 दिन के लिए हॉस्पिटल में भरती कर दिया। 24 मार्च को  सामाजिक कार्यकर्ता प्रिया शुक्ला ने इनकी समस्या जिला प्रशासन के समक्ष उठाया । इसे  लेकर पत्रकार आलोक पुतुल, कलावती सिंह , कृपाल मंडलोई ने झारखंड, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री को ट्वीट किया जिसके बाद प्रशासन ने निजी बसों की व्यवस्था करके मजदूरों को उनके गंतव्य के लिए रवाना किया। कोई दिल्ली से पैदल आजम गढ़ जा रहा तो कोई सिवनी छिंदवाड़ा से मंडला तक चला जा रहा है।  देशभर से ऐसी खबरे हैं जहां लोग 100-1500 किमी पैदल चलकर अपने गांव वापस लौट रहे हैं। दिल्ली के गाजियाबाद, जयपुर , सूरत ,नागपुर, चेन्नई आदि कई ठिकानों पर मासूम बच्चों और महिलाओं के साथ मजदूर इस लॉक डाउन को देखते हुए पैदल चलने को विवश हैं। जिले के आला अधिकारी भी इनसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं ताकि किसी भी तरह का संक्रमण उनके जिले में ना फैले । इस बीच पुलिस की कठोरता और बिना बात को सुने जाने वाली ग्लौच और लाठी चलाने के कारण ये दोहरी मार झेल रहे हैं। सरकार के प्रत्येक जिले में गठित आपदा प्रबन्धन की इकाई का महत्वपूर्ण  कार्य तो यह भी है कि वे ऐसे लोगों के लिए शेल्टर, भोजन पानी का माकूल इंतजाम करें । इस दिशा में अब जाकर कुछ सरकारी राहत के आदेश भी जारी हुए हैं । बावजूद इसके कोरोना की त्रासदी के बीच  खाली पेट, बोझ उठाए, तपते कराहते कदमों से मजदूर हजारों मील का सफर करने को विवश हैं।
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