आम भारतीय घरों की तरह हमारे यहां भी महावारी के दौरान औरतें रसोई में खाना नहीं बनाती हैं। इसका कारण चाहे जो भी हो, ये वर्षों से चली आ रही प्रथा है।
बचपन में मैं देखा करती थी कि हर 25-30 दिन में ऐसा मौका आता था जब मम्मी की जगह दादी खाना बनाती थीं। पर इस बात पर घर में कोई सवाल जवाब नहीं होता था कि आज बहु की जगह सास क्यूं खाना बना रही है।
जब मैं थोड़ी बड़ी हुई, लगभग 8 साल की, तब इस विचित्र प्रथा को लेकर सवाल करने लगी। पर मां हर बार कुछ ना कुछ बहाना बनाकर मुझे शांत कर देती थी।
एक बार की बात है, मैंने मां से पूछा कि आप क्यूं बैठी हो, और दादी क्यूं खाना बना रही हैं। उस समय में महावारी की प्रक्रिया को समझने के लिए बहुत छोटी थी। इसलिए मां ने ये जवाब दिया ” आज बाथरूम में मेरे ऊपर छिपकली गिर गई थी। और अब मैं 3 दिन तक अशुध्द हूं इसलिए रसोईघर में खाना नहीं बना सकती। ”
मेरे चंचल मन को देखते हुई मां ने ये कहानी रची थी, ताकि मैं उनसे बार बार सवाल ना करूं। और असर ये हुआ कि मुझे इस कहानी पर पूर्ण रूप से विश्वास भी हो गया था।
अगले महीने जब मैंने देखा कि मां की जगह दादी खाना बना रही हैं, तब मैंने मां से पूछा, ” आपके ऊपर फिर से छिपकली गिर गई ? ”
इस तरह हर महीने मां के ऊपर छिपकली गिरती रही, और ये सिलसिला चलता रहा।
फिर जब मैं 12 वर्ष की हुई, तब मुझे पहली बार महावारी हुई। तब मां ने मुझे सब कुछ समझाया। इसके होने का कारण बताया, एक नारी के शरीर में इसकी क्या उपयोगिता है, और कैसे हम खुदकी साफ़ सफाई कर सकते हैं, ये सब समझाया। और अंत में मां ने मुझे बताया कि भारत में महावारी को लेकर कई तरह की प्रथाएं चली आ रही हैं। जैसे कि 3 दिन तक आराम करना, रसोई और पूजा घर में प्रवेश ना करना और भी ना जाने क्या क्या।
ये सब सुनने के बाद मैंने कहां, ” मतलब आज छिपकली मुझपर गिरी है ”
ये जवाब सुनकर मां और दादी दोनों मुस्कुरा उठीं।