तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
ये वक़्त भी गुज़रा करता है
बस वक़्त ही देना पड़ता है
ये लोग भी चुप हो जाते हैं
बस थोड़ा सहना पड़ता है।
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
कहीं तंज मिलेगा राहों पर
कई फ़िकरे कसेंगे आँखों पर
कभी हाथ पकड़ लेगा कोई
कभी नज़र फिरा लेगा कोई
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
ज़ंजीर भी है यहाँ घर घर में
तुम क़ैद नहीं रखना ख़ुद को
जब दिखे कि तुम आज़ाद नहीं
मुस्तैद वहीं रखना ख़ुद को
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
ये नज़र नज़र का खेल सही
तुम तितली हो या हूर परी
जन्नत की दुआएँ देते हैं
हो पास नहीं तो दूर सही
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
जो रंग बिखेरा करती हो
वो पलट के वापस आएँगे
कुछ ख़्वाब तुम्हारी आँखो के
कभी तो सच हो जाएँगे
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना
जब अश्क़ बहे तो बहने दो
अश्कों पे सबका ज़ोर नहीं
ग़म आएँ भी तो आने दो
तुम इतनी भी कमज़ोर नहीं
तुम क़दम बढ़ाकर चलती जाना