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पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

1) कुत्तों के भोंकने मात्र से डर कर
जिन्हें साँप सूँघ जाता हो,
यमराज का चेहरा नज़र आ जाता हो, 
अपनी छह साल की बच्ची पर 
एक काले खूँखार कुत्ते का हमला देख 
अपने दोनों हाथों से उसका मुँह पकड़ 
पछाड़ देने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

2) प्रेग्नेंसी के पाँचवे माह में भी 
सुबह छह बजे उठ कर 
पूरे घर के लिए ख़ुशी ख़ुशी 
नाश्ता तैयार करने के बाद
सुबह नौ बजे ऑफिस पहुँच कर
पूरी लगन से अपना सारा काम 
बिना अपना संयम खोये 
पूरा करने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

3)काला अक्षर भैंस बराबर है 
ख़ुद के लिए मगर अपने पाँचों बच्चों से 
डंडा ले कर बैठ पहाड़े सुनने वालीं,
उन्हीं बच्चों को अफ़सर बनाने का 
सामर्थ्य रखने वालीं,
दो रुपये की आमदनी में
दस रुपये की बचत करने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

4) तलाक के बाद
किसी अंजान शहर में 
अपने बलबूते,
समाज के तानों के बाण झेलते हुए,
गिद्दों की चोंच से बचते हुए 
गर्व से जीवन यापन करने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

5)अपने ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे को
शसक्त बना कर उसे जीना सिखाना
और दूसरों को इस बिमारी से लड़ने के लिए 
घर घर, गली गली जा कर
जागरूक करने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

6) शादी के डर से घर से दूर जाकर
नौकरी करने का फैसला ले कर, 
फिर उस नौकरी को छोड़ 
अपने व्यवसाय की नींव गाड़ 
उसे बुलंदियों तक ले जाने वालीं स्त्रियाँ, 
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

7) एक स्तन से दूध पिलाने के लिए
दूसरे स्तन को नुचवा कर, 
कूल्हों पर आँखों का बोझ उठा कर
बे-हिसाब हैवानियत झेलने के बाद भी 
डट कर लड़ते हुए अपने लिए
रास्ता बनाने वालीं स्त्रियाँ,
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

8) मेनोपॉज़ के समय 
अत्याधिक मात्रा में निरंतर
रक्त्त बहते रहने के कारण 
मुँह पीला पड़ जाने पर
अपनी हालत, शरीर के पीलेपन 
की चिंता की बजाए,
उसके बेटे सुबह कॉलेज 
क्या खा कर जाएँगे अगले दिन,
ख़त्म होते राशन की फ़िक्र
लालटेन में तेल डालने का ज़िक्र
करती हुई स्त्रियाँ,
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

9) अपनी यौमे-पैदाइश
और हर तीज त्यौहार
दूसरों को पकवान बना कर
खिलाते हुए मनाती हुई
उसके बाद अकेले बैठ कर
बचा खुचा खाती हुई
बिना किसी शिकायत के
अपने हालात पर
मंद मंद मुस्काती हुई स्त्रियाँ
पागल, बौराई हुई स्त्रियाँ।

10) अपनी लाखों की तनख़्वाह वाली
मल्टीनेशनल कंपनी की
जॉब को छोड़ने वालीं
सालों साल मेहनत करने के बाद
मिलने वाली सरकारी नौकरी से
मुँह मोड़ने वालीं,
रिश्ते निभाने के लिए
प्रथाओं के झाँसे में फँसने वालीं,
परम्पराओं के फंदों से अपने सपनों को
कर्तव्यों का काला कपड़ा पहना कर
सूली पर चढ़ाने वालीं स्त्रियाँ,
पागल बौराई हुई स्त्रियाँ।

~ अंकुश तिवारी

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