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पुलिस: नियामक या विनाशक

#wincorona छोटे शहरों और कस्बों में जहां मीडिया अभी पूरी तरह जागरूक नहीं है। वहाँ इन दिनों एक नयी समस्या ने जन्म ले लिया है, कभी-कभी तो पुलिस सुबह के 7 से 11 बजे तक दैनिक आवाजाही होंने देती है और कभी अचानक से आकर अपने दिव्य अस्त्र लाठी के साथ प्रकट होकर उसका भरपूर प्रयोग करने लगते हैं। लोगों के अंदर एक अनजाना भय और परेशानी बैठ गयी है। आखिर क्यों उस शहर या कस्बे के उच्च अधिकारी एक बैठक करके घर से बाहर किसी जरूरी काम से जाने वालों के लिए नियमों को तय करके स्थानीय अखबारों में नही निकलते? जिससे सभी नागरिकों को अनुशासन में रखा जा सके और जो नियमों को तोड़े पुलिस उसको बिल्कुल नहीं छोड़े। और यदि नियमों को बनाकर उनके ही द्वारा तोड़ा जा रहा है तब तो और भी दुःखद बात है। यह भी ठीक है कि ऐसे समय में जब हर व्यक्ति आपनी जान बचाकर घरों में बंद बैठा है, ऐसे मुश्किल भरे हालातों में डॉक्टर्स, सफाई कर्मचारी और पुलिस ही दिन रात काम करके हम लोगों को बचाये हुए हैं। हम सभी अच्छे से जानते हैं कि हमारे देश में लोगों के मन में पुलिस के लिए आदर बहुत ही कम है, तब तो पुलिस को इन दिनों का लाभ उठाते अपनी पुरानी छवि को तोड़ते हुए नये मानक स्थापित करने चाहिए जिससे पुलिस को नियामक के रुप में देखा जाए , विनाशक के तौर पर नहीं…

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