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भारतीय संस्कृति और कोरोनावायरस

हम भारत के लोग कुछ ज्यादा ही शरीफ है,नासमझ हैं।
हमें अगर कुछ नया दिखता है तो आंख बंद करके उसे अपना लेते हैं, क्योंकि हमारी नजरों में तो हमारी संस्कृति की तो कोई अहमियत ही नहीं है।
जबसे कोरोनावायरस दुनिया से रूबरू हुआ है, दुनिया सदमे में है। मुझे समझ में नहीं आता कि अब कहां है वह लोग जो भारतीय संस्कृति को नीचा समझते थे, जिन्होंने वेस्टर्न कल्चर को दिल से अपनाया और भारतीय संस्कृति का अपमान किया। अब क्यों लोग वायरस के डर से नमस्ते करने लगे। मैं तो उनके चरण छूता अगर वह कोरोना को नजरअंदाज करके अभी भी मिलने वालों से गाल चूम कर मिलते।
भारतीय संस्कृति को हमने पूरा समझा ही कहां, अगर हम दूसरा कल्चर अपनाने की बजाय हमारी संस्कृति फैलाते तो दुनिया कोरोना का कभी मुंह ही नहीं देखती।
हमारे तो प्राचीनकाल से सिखाया जा रहा है कि प्रकृति हमारी मां है। हमें सिखाया गया है कि कम से कम एक जानवर पालो, उसे खिलाओ ना कि उसे ही खा जाओ।
हमने तो गाय को माता का दर्जा दिया है ताकि हमारे भीतर जानवरों के प्रति निर्दयी विचार ना आयें। हम तो सभी जानवरों को उनका जीने का हक देते आ रहे हैं। लेकिन हमें तो हमारे स्वार्थ से ही फुर्सत नहीं मिलती, इसीलिए दुनिया ने जीत का स्वाद चखने के लिए बेजुबान जानवरों को भी नहीं छोड़ा। अगर आज दुनिया ने भारतीय संस्कृति जानी होती,जीवन की, हक की अहमियत जानी होती तो शायद अगर जानवरों को पाला भी नहीं होता तो कम से कम जीने की आजादी तो दी होती।
लेकिन इसी गलती की वजह से आज वही बेजुबान ऐसी जुबान बोल रहे हैं कि इंसान की बोलती बंद हो गई। इसलिए जवानों भारत के लक्षण दुनिया को सिखाओ और कीटाणुओं से निजात पाओ।
हमारी भारतीय संस्कृति को समझो और फैलाओ,
बदले में सुख-शांति खुशहाली पाओ।
कोरोनावायरस

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