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मरो सालो सब

मतलब क्या बोले भाई इनको, साले अक्कल बेच के खा गए है लग रहा है. पिछले ३.३० घंटे से मैं पुलिस स्टेशन में बैठी हूं किसी काम से. उस ३.३० घंटे में जो ज्यादा से ज्यादा उन्हें फोन कॉल्स आ रहे है वो ये “मैडम ये बिल्डिंग में २० लोग मिलके क्रिकेटर खेल रहे है”. “सर यहां १० लोग जमा होकर खड़े है”. वाकी टाकी पे अलग “इस एरिया में इतने इतने लोग जमा हुआ है”. उनका कहना है सुबह से कम से कम १८ से २० फोन इसी के आ रहे है. कैसे इतने बेवकूफ हो सकते है लोग.

जूते डंडे सब कम है ऐसे लोगो के लिए. इतना इनको रास्ते पर खड़े होकर मजे लेने का शौक चढ़ा है ना, इनको रास्ते पे रहने के लिए ही छोड़ दो तब शायद दिमाग जगह पर आए. तब शायद इनको समझे की ये क्या नुकसान करके बैठे है.

आज ऑफिस से घर आते आते उन सुनसान सड़कों को देखकर डर लग रहा था और उस से ज्यादा डर लग रहा था फुटपाथ पर रह रहे लोगों के लिए. जब कर्फ्यू नहीं था वो तब भी झुंड में थे, जब आज कर्फ्यू है तब भी वो झुंड में है और वही है जहां वो हमेशा रहते है, फुटपाथ.

तुम क्यों सड़कों पर हो पर जब रहने को घर है. ऑफिस नहीं जाकर भी खाने को खाना है. बेजावाबदार तुम और हमेशा भुगते वो, क्यों?.
शायद कभी तुम्हारा ध्यान नहीं गया पर बहुत डरावना था जब मैंने देखा एक ६०- ६५ साल का आदमी मास्क हाथ में लिए बेचने की कोशिश में था पर खरीदने वाला कोई नहीं था. डरावना था वो जब देखा फुटपाथ पर बच्चे आधे नंगे वही खेल रहे है, वहीं गिर पड़ रहे है और तुम अपनी गाड़ी का शीशा निचा करके थूक कर आराम से चले गए.

वही बाजू में एक मां अपने बच्चे को दूध पिला रही है सीधे अपने स्तन से और छुपा के नहीं खुले में और साथ में बात कर रही है आस पास बैठे आदमियों से भी. जाएगी भी कहा ना छुपाने को क्युकी रहने को घर वही एक है, उतनी सड़क. कुछ लोग थे जो बस स्टॉप के नीचे चूल्हा बनाकर खाना बना रहे थे. खुशनसीब होंगे वो जो उन्हें आज का खाना मिल गया. कुछ यूहीं सो जायेंगे. जब कोई रिक्शा में नहीं बैठा, रास्ते में बिक रहा समान नहीं खरीदा, चाय की टपरी नहीं खुली, ठेला नहीं खुला, दुकान नहीं खुली, प्राइवेट बस नहीं चली, तो खाएंगे क्या.

और इन सब के लिए जवाबदार कौन हम “हम प्रिविलेजड”. थोड़ी अब भी शर्म बाकी हो तो सुधार जाओ. ये बीमारी तुम लाए बाहर देश से वो नहीं गए बाहर,तुम्हे कहा गया घर पे रहो तुम नहीं रहे. तुम ट्रेन में घूमे, कार में घूमे, बाहर घूमे, मंदिर गए, मस्जिद गए, पार्टी की. कभी ध्यान दिया या सोचा की इस हर जगह ऐसा एक तबका रहता है जिसे ना तो अभी तक ये पता होगा कि कोरोणा है क्या. उस से बचने के लिए हैंडवाश सैनिटाइजर चाहिए होता है. अगर पता भी हो तो वो खरीद नहीं पाएंगे. ना तो उन्हें कोरोणा के लक्षण पता होंगे और अगर कुछ लक्षण निकल भी आए तो वो खुदको बचा नहीं पाएंगे.

क्या फर्क पड़ता है ना पर आपको क्युकी वो लोग पैदा ही होते है ताकि सड़क किनारे मर जाए. हम नहीं सुधरेंगे,हम बाहर जाएंगे, बीमारी फैलाएंगे. चाहे सरकार चिल्लाए या हाथ जोड़े. पर ध्यान रहे अगर एक बार उनको वायरस ने पकड़ लिया तो वो इतनी तेज़ी से फैलेगा कि आप चाह के भी उसे रोक नहीं पाओगे. ना सरकार कुछ कर पाएगी. पर आपको क्या जब मरना ही है तो सबको लेकर मरेंगे. ऐसा मौका फिर कहा मिलेगा.

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