हमारे देश के दुर्दांत बौद्धिक प्रगतिशील मित्रो की स्तुति मे मेरा लेख…
Das Aaruhi Aanand
सोशल मिडिया द्वारा प्रदत्त इस वैश्विक गाँव को वैश्विक जंगल बनाने मे मेरे कुछ नितांत मेहनती मित्र तसल्लीबख्श होकर कार्यरत है।मै उन्हे मूर्ख कहकर, एक बड़ी प्रजाति का अपमान करने का दंश नही सहना चाहता, इसलिए मै उन्हे बुद्धिजीवी कहकर बुलाता हूँ।वैसे भी जब ये लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करते है न, तो बडे बडे दर्शनशास्त्री भी हाथ जोड लेते हैं।मै तो ये सोचता हूँ कि अगर इनके तर्क आचार्य चाणक्य सुन लेते, तो अपनी नीति वीति की पुस्तक फैक कर इन्ही के शर्णागत हो लेते, और इतिहास आज कुछ और होता।समस्त ज्ञानेन्द्रियों व कामेंद्रियो पर जीत हासिल कर चुके इन महान लोगों को वेद, पुराणो का अभूतपूर्व ज्ञान है, ज्ञान क्या इन्होंने तो प्रलयंकर बनकर ज्ञान की गंगा को स्वयं मे जैसे तैसे दबा रखा है। अगर आपको मुझपर विश्वास ना हो तो आप इनके सामने ब्राह्मण, मनु, आदि शब्दों का उच्चारण किजिएगा, दावा है इनकी ज्ञान गंगा फटकर आपके अंतःकरण तक समा जाएगी। और अगर आप इनकी गंगा मे डूबे तो बौद्धिक व प्रगतिशील और अगर नही डूबे तो ये आपको समाज मे व्याप्त सभी बुराइयों को समाहित करने वाली उपमा से नवाज़ ही देंगे। इनके परोपकारी कृत्यो के चलते मै तो इन लोगो की प्रशंसा करते करते नही थकता, ये समाजवाद के इतने भयंकर पक्षधर है, कि सिगरेट पीते लडके को देखकर उसे रोकते नही है, अपितु एक लडकी को भी सिगरेट पिलाकर, गैरबराबरी की सारी खाई ही मिटा देते है। इनकी महानता यूँ भी समझी जा सकती है की पितृसत्ता, जातिवाद आदि आदि बुराईयों से व्याप्त भारतीय संस्कृति मे भी इन्होंने अच्छाई ढूँढ ही ली। स्वामी विवेकानंद, दयानंद जी के सिद्धांतो को तो ये बिचारे क्या ही अपनाते पर इन्होने आचार्य चारवाक के “पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावतपतति भूतले” के सिद्धांत को जरूर चरितार्थ किया है। गैरभेदभावी ये लोग मानवीकरण के सर्वोच्च जीवंत उदाहरण है। उसमे भी विशेष रूप से भेड और भेडिया इनके पसंदीदा जंतु हैं। आजकल इस बोद्धिक वर्ग मे भी दो प्रकार के लोग है एक बिचारे भेड और दूसरे भेडिये, भेडिये प्रगति के झंडाबरदार है इसलिए शरीर पर कुछ ऊन भी लगाए हैं। होता ये है कि अब भेडिया एक स्टेटस लगाता है तो भेडो की फौज उसे तुरंत काँपी करती है। भेडिया नारा लगाता है, भेडें पीछे पीछे चिल्लाती हैं। भेडें सोचती है कि वो समाज बदल कर उसे लाल लाल कर देंगी पर वो भोली प्रजाति ये क्या जाने की भेडिये सूदूर बैठे अपने आकाओ को खुश करने के लिए ये सलामी उनके ही लाल खून से दे रहे है। धन्यवाद
DAS AARUHI AANAND
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