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हा बिल्कुल याद रखा जायेगा

 

आमिर अज़ीज भाई, “बिल्कुल याद रखा जायेगा आपको भी और आपके लख्ते ज़िगर को भी”

बिल्कुल याद रखा जायेगा उन गद्दारों को
पाकिस्तान के कोख से जन्मे उन नाजायज औलादों को
बिल्कुल याद रखा जायेगा
उन काफिरों को, उस शाहरूख को
धर्म के आड़ में छिपे हत्यारे ताहिर को
बिल्कुल याद रखा जायेगा

बिल्कुल याद रखा जायेगा जामिया के वहसी छात्रों को
चरित्रहीनता की सीमा लांघे जे एन यु के बुड्ढे नौजवानों को बिल्कुल याद रखा जायेगा
बिल्कुल याद रखा जायेगा इन धब्बो को
जो सिर्फ दिल्ली की दीवारों पर नही बल्कि दिल्ली की जेहन में पड़ी है

बिल्कुल याद रखा जायेगा अपने पुलिस भाई की शहादत का
उन काफ़िर महदूद ए हरम को भी याद रखा जायेगा , उनकी दोगले हरकतों को स्याही से नही बल्कि यादों के सैलाब से लिखा जायेगा
बिल्कुल याद रखा जायेगा।

याद रखा जायेगा अपने भाइयों को
जो असल में हिंदुस्तानी थे “हा बिल्कुल वो हिन्दुस्तानी थे”, हा हा वो बिल्कुल हिंदुस्तानी थे।
बिल्कुल याद रखा जायेगा।
उन तहज़िबों को जो काफिरों ने खो दिये।
बिल्कुल याद रखा जायेगा अंकित के उस चुभन को जो 400 बार गोदती उसके शरीर से पार हुई।
याद रखा जायेगा उस सन्नाटे के साये को और तेजाब की टपकती बूंदो को

बिल्कुल याद रखा जायेगा अज़ीज मियां, बिल्कुल याद रखा जायेगा।

क्योंकि कयामत के दिन भले याद रखा जाये या ना जाये मगर आने वाले वक़्त में आपके इस कविता से फैली अराजकता, द्वेष, कायरता को बिल्कुल याद रख लिया जायेगा।

आपका कटु आलोचक
अंकुर रंजन

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