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“जैसे ज़िंदा रहने के लिए दो वक्त रोटी ज़रूरी है वैसे ही मेरे लिए लिखना”

खुद को ज़िंदा रखने के लिए जरूरी था मेरा कलम से रिश्ता बना लेना

वर्ष 2012 का वह दौर था जब मैं दिल्ली की ओर निकल पड़ा था , अपनी ज़िंदगी की एक नई दिशा तय करने के लिए। उस दौरान मुझमें कई मायूसियां थी जो मैंने पिछले 2 सालों में महसूस की थी। उन मायूसियों से गुज़रने के लिए, खुद को ज़िंदा रखने के लिए, मैंने उन दिनों एक रास्ता अख्तियार किया था। वह रास्ता था कलम को कागज़ पर चला देने का। कलम को कागज़ पर इस तरह चला देना कि तमाम मायूसियां और तकलीफें जो मैंने उन दिनों महसूस की थी सब लिख दें।

उलझने कागज़ पर उतर जाने के बाद बेहद सुकून मिलता है

अपने लक्ष्य के प्रति भटकते-भटकते, मैं भटकने के कगार पर था। तब मुझे जगाने और ज़िंदा रखने में सिर्फ कलम ने मुख्य भूमिका अदा की थी। मैंने उस दौरान स्वयं को कलम और कागज़ तक सीमित कर लिया था। पहली दफे मैंने अपने लिए, अपनी जुबान से ,अपनी आत्मा से कुछ लिखा था। बेहद सुकून महसूस किया था मैंने, तब से आज का यह दौर है, मैं जब खुद को ज़िंदगी मे उलझा हुआ महसूस करता हूं तब मैं कलम उठाता हूं और लिख देता हूं उन उलझनों को। वे उलझने कागज़ पर उतर जाने के बाद बेहद सुकून देती हैं। उस समय मैं महसूस करता हूं कि शुक्र है कि मैं अभी मरा नहीं हूं।

वह घटना जिसने मुझे YKA से जोड़ दिया

Youth Ki Awaaz पर मैं वर्ष 2017 से लिख रहा हूं। इस पर भी लिखने का एक रोचक सिलसिला है। बात वर्ष 2017 की है जब मैं ग्वालियर में पढ़ाई कर रहा था। उस दौरान जब मैं ग्वालियर से आगरा की ओर आ रहा था तब मेरी भेंट रेल यात्रा के दौरान एक सज्जन से हुई। वे मेरी बगल की सीट पर ही बैठे थे। उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो उन्होंने बताया कि वे सीआरपीएफ में कमांडेंट के पद पर कार्यरत है। उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि वे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात हैं।

ऐसा सुनते ही मुझे उस परिवेश के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। मेरे पूछे जाने पर उन्होंने उस परिवेश के बारे में विस्तारपूर्वक बताया, ये मेरे लिए बेहद आश्चर्यचकित करने वाला था। उन्होंने वहां की कठिनाइयों के बारे में बताया कि वहां रहने वाले लोग किस कदर अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। मैंने जब उनसे पूछा कि क्या इन हालातों के बारे में हमारी सरकार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या प्रिंट मीडिया नहीं जानती? तब उन्होंने कहा था,“जानते सब हैं परन्तु न कोई बोलना चाहता है और न ही कोई लिखना। सब यही सोचते है जैसा चल रहा है सब ठीक ही है।”

मेरा संकल्प बना मेरी ताकत

उस रोज़ मैंने खुद से संकल्प लिया था कि मैं सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाउंगा व सरकार तक इस अदृश्य चित्र को ज़रूर पहुंचाउंगा। मैं लिखता था क्योंकि लिखना अब मेरी आदत में शुमार हो चुका था। जैसे ज़िंदा रहने के लिए दो वक्त रोटी ज़रूरी है वैसे ही मेरे लिए अब लिखना ज़रूरी हो चुका था। अब लिखने के साथ ही एक ऐसे मंच की आवश्यकता थी जो एक आम नागरिक की आवाज़ को प्रमुखता से उठाता हो। जब मेरे मित्रों ने Youth Ki Awaaz के संदर्भ में बताया तो मैंने अपने मुद्दों को Youth Ki Awaaz के माध्यम से उठाना प्रारम्भ कर दिया।

मुझे लिखते हुए 3 वर्ष हो गएं और YKA को 12 वर्ष

मुझे लिखते हुए 3 वर्ष हो चुके हैं और Youth Ki Awaaz को 12 वर्ष। इस खूबसूरत अंतराल में हमने ऐसे कई विषयों को प्रमुखता से उठाया है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया की पहुंच से कोसो दूर थें या जान बूझकर लिखे नहीं गए थे।

Youth Ki Awaaz अपने खूबसूरत 12 वर्ष पूर्ण कर रहा है, मैं इस अवसर पर YKA की पूरी टीम को शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। उसके साथ ही मैं आशा करता हूं कि भविष्य में भी आप आम नागरिकों की ‘आवाज़’ बनकर कार्य करते रहेंगे।

खुद को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है कुछ न कुछ लिखते रहिये

मैं आम लोगों से यह अपील करता हूं कि खुद को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है कुछ न कुछ लिखते रहिये। शरीर का मर जाना ही मर जाना नहीं है, आत्मा का मर जाना भी एक ज़िन्दा लाश ही तो है। यदि चाहते हो कि हम भी ज़िंदा लाश में शुमार ना हों तो हर रोज़ कुछ ना कुछ लिखने की आदत डालते रहिये। वह आपको हमेशा जवान रखेगी व आपको समाज से जोड़े रखेगी।

तो फिर देर किस बात की है उठाइये कलम और लिख डालिये एक ऐसे विषय को जिस पर लिखना समाज को एक नई दिशा दे सकता है।

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