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केरल: मंदिर के शौचालय के बाहर वर्षों से लिखा था, “केवल ब्राह्मणों के लिए”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

केरल के त्रिशूर में एक स्थानीय मंदिर पर विवाद तब खड़ा हो गया जब मंदिर परिसर के बाहर शौचालय परकेवल ब्राह्मणवाला साईन सोशल मीडिया पर जमकर वायरल होने लगा। 

मामला केरल के त्रिशूर ज़िले में स्थित कुट्टुमुक्कू महादेव मंदिर का है, जहां शौचालय में तीन तरह के साइन बोर्ड लगे पाए गए, जिन पर महिला, पुरुष और ब्राह्मण लिखा था

वहीं, कुट्टुमुक्कू मंदिर सेक्रेटरी प्रमुखकन्ननका कहना है,

यह बोर्ड 25 साल पहले लगाए गए थे। कभी इन पर मंदिर कमेटी का ध्यान ही नहीं गया और जैसे ही हमारी जानकारी में आया हमने बोर्ड हटा दिए।

साथ ही उन्होंने कहा,ऐसा कोई भी बोर्ड केरल जैसे विकसित जगह में पूरी तरह अनैतिक है। उस युवक ने मंदिर परिसर को जानकारी देने की जगह इसे सोशल मीडिया पर डाल दिया, जिससे मंदिर की छवि को नुकसान उठाना पड़ा है। मंदिर कमेटी उस पर एफआईआर करने का विचार कर रही है।”

कोचीन देवस्वोम बोर्ड ने मामले को संज्ञान में लिया

मंदिर का वह शौचालय, जिसका प्रयोग सिर्फ ब्राह्मण करते थे। फोटो साभार- सोशल मीडिया

बता दें कि त्रिशूर निवासी अरविन्द जी क्रिस्टो, जो कि एक रिसर्चर छात्र हैं। उन्होंने यह तस्वीर बुधवार को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली थी। साथ ही कहा था,

मैं कुट्टुमुक्कू महादेव मंदिर उत्सव में गया था। जब मैंने अलग से ब्राह्मण बोर्ड के साथ शौचालय देखा तब मैं हैरान रह गया और मैंने तस्वीर को सोशल मीडिया पर डाल दिया जिसके बाद यह वायरल हो गई लेकिन मुझे खुशी है कि बोर्ड को हटा लिया गया है

CDB प्रेसिडेंट बी मोहनन ने कहा, मेरी जानकारी में जैसे ही मुद्दा आया मैंने कुट्टुमुक्कू महादेव मंदिर कमेटी को तुरन्त बोर्ड हटाने को कहा। साथ ही मैंने कोचीन देवस्वोम बोर्ड (CDB) असिस्टेंट कमिश्नर जयकुमार को इस विषय की जानकारी और रिपोर्ट सबमिट करने को कहा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि यह बोर्ड सन 2003 में लगाया गया है लेकिन CDB द्वारा ऐसे किसी भी बोर्ड को लगाने की अनुमती नहीं है। वहीं दूसरी ओर योगक्षेमसभा के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर हरि नम्बूदरी ने कहा,

शौचालय का उदेश्य और व्यवस्था पुजारियों के नहानेधोने के लिए की गई है। हमारे पंडित (ब्राह्मण) सभी वर्गों के साथ मिलकर और सभी के लिए काम करते हैं। यह बोर्ड हमारा नाम खराब करने की साज़िश है। हम ऐसे किसी भी बोर्ड का समर्थन नहीं करते हैं।”

आखिर शौचालय के बाहर क्यों पड़ी बोर्ड लगाने की ज़रूरत?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हालांकि बोर्ड हटा लिया गया है लेकिन प्रश्न उठता है ऐसे किसी भी बोर्ड की क्या ज़रूरत रही होगी मंदिर परिसर में और ऐसा कैसे हो गया कि इतने लंबे समय में किसी की नज़र ही ना पड़ी हो बोर्ड पर?

यदि तस्वीर वायरल नहीं हुई होती तब किसी को खबर भी नहीं लगती और कई सालों तक उस बोर्ड के ज़रिये आपसे प्रमाण मांगा जाता कि बताइये आप ब्राह्मण है या नहीं?

जब बोर्ड मेंबर्स को यह तक नहीं पता है कि वहां इतने सालों से वह बोर्ड मौजूद है फिर तो वहां उस शौचालय के बाहर खड़े लोगों के साथ हो रहे भेदभाव और असुविधा की भी कोई जानकारी नहीं रही होगी।

गैर-ब्राह्मणों को अब तक जो हीनता का अनुभव हुआ होगा, उसका क्या?

क्या ब्राह्मणों ने उस पर अपना अधिकार नहीं जमाया होगा? क्या गैर-ब्राह्मणों ने आपात परिस्थितियों में हीनता का अनुभव नहीं किया होगा।

मैं यहां ब्राह्मणवाद पर नहीं, बल्कि साईन बोर्ड पर प्रश्न उठा रही हूं। मेरा सीधा सरल मतलब यह है कि किसी भी समुदाय विशेष को इस तरह आरक्षण या विशेष सुविधा मुहैया करा दी गई, तो कौन प्रमाणित करेगा भगवान कितना, किसका हैं।

वैसे भी मंदिर-मस्जिद ही है जहां जात नहीं ईमान पूछा जाता है, वरना तो हम जाने कितने रंगों और तमगों में बंटे हुए हैं। साथ ही अब हमें स्वस्थ्य और सही मानसिकता वाले  विचारों की ज़रूरत है।

बेहतर है वक्त रहते युवक ने कमेटी और मंदिर परिसर दोनों को जगा दिया। ऐसा कोई भी बोर्ड मंदिरों की नैतिकता के साथ-साथ ईश्वर को भी अनैतिक करार दे सकता है

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