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“थाली बजाकर हमने साबित किया कि इंसान ही इंसान के काम आता है”

फोटो साभार- रौशन प्रकाश

फोटो साभार- रौशन प्रकाश

आज हमें यह कोराना वायरस के चलते ही सही मगर इतना तो पता चला कि हम सब साथ हैं। आज साथ ही साथ यह भी पता चला कि घर सबसे सुरक्षित जगह है और इंसान ही इंसान के काम आता है।

हां मैं मानता हूं कि हम सब थोड़े अलग-अलग हैं। अलग है हमारा नाम, अलग पहचान, अलग धर्म, अलग जात, अलग देश अलग वेश -भूषा, अलग खान-पान, अलग सोच और अलग तौर-तरीके।

लेकिन एक चीज़ है जो हमें हमेशा एक साथ लाती है और वह है किसी चीज़ का डर। यहीं हमें हमेशा एक साथ लाती है सारे भेदभाव मिटाकर धर्म का गुण-भाग और ऊंच-नीच, रंग-रूप का जोड़-घटाव हटाकर।

चाहे डर किसी प्राकृतिक आपदा का हो या हो कोई कोरोना जैसा एक (सूक्ष्म) छोटा सा वायरस। ये मुसीबतें ना किसी की धर्म, जात, देश, शहर देखती है और ना ही किसी का नाम पूछती है। ये तो बस अपने लय से आगे बढ़ती जाती है और जिनके करीब से ये गुज़रती है, वे इनके चपेट में आ जाते है।

आज जो भी लोग इसकी चपेट में हैं, वे मरीज़ हैं। आज उनका ना कोई धर्म पूछ रहा है, ना जात और ना ही कोई उनका रंग देख रहा है। जब प्रकृति कहर बरसाती है तो ऐसा ही होता है। यहां हम एक इंच ज़मीन के लिए लड़ते रहते हैं और कत्लेआम करनेे के लिए तैयार हो जाते हैं।

आज मंदिर भी बंद है और मस्जिद भी बंद है, गुरुद्वारे और गिरजाघर में भी ताले लग चुके हैं। अब शायद सबका भगवान एक है और कहीं ना कहीं वह भी इंसान ही है।

सबसे ज़रूरी बात यह है कि हमने थाली, ताली और संख बजाकर यह तो साबित कर ही दिया कि इंसान ही इंसान के काम आता है। आज बाजार में लोग सैनिटाइज़र और मास्क ढूंढ रहे हैं। लोग बार-बार हाथ धो रहे हैं, शायद अंजाने में ही सही मगर ना जाने हम कितने कत्ल कर चुके हैं जिसका अंदाज़ा हमें खुद भी नहीं है।

इस बीच प्रकृति खुद का उपचार करने में जुटी हुई है। शायद हमें अपनी सोच को सैनिटाइज़ करने की ज़रूरत है और यह सोचने की आश्यकता है कि क्या हम जो इतने दिनों से करते आ रहे हैं वह सही है?

आज जब मैं शाम 4:55 में अपने घर की बालकनी में था, तब दूर एक बालकनी पर एक अंकल जी हाथ में 1 घंटी लिए खड़े थे। हमारी कभी एक- दूसरे से बात नहीं हुईय़। कभी मौका ही नहीं मिला और ना कभी ज़रूरत पड़ी थी मगर आज वो मेरी तरफ और मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

फिर मैंने अपने मोबाइल में वक्त देखा और वो अपने हाथ पर लगी घड़ी। हम शाम 5:00 बजने का इंतज़ार कर रहे थे और जैसे ही 5:00 बजा हम लोग अपने-अपने माध्यम से ताली, थाली, घंटी बजाकर उन सबका अभिनंदन करने लगे, जो इस महामारी जैसी विषम परिस्थिति में अपना फर्ज़ निभाते हुए हमारी मदद कर रहे हैं।

हम उन्हें बताना चाहते हैं कि आप खास हो हमारे लिए। आप अपने कर्तव्य को जिस तरह से निभा रहे हैं, हमें आप सब पर गर्व है। आपकी वजह से हम अपने अपने घर में सुरक्षित महसूस करते हैं, आपका होना हमारे लिए काफी मायने रखता है। आपका हमारा ख्याल रखना और समय-समय पर हमें सचेत करना काफी मायने रखता है।

उस वक्त मैं और अंकल जी अकेले नहीं थे, बल्कि पूरा भारत वर्ष हमारे साथ था। उस वक्त मुझे महसूस हुआ कि हम सब तो हमेशा साथ ही हैं, बस एक सही वजह होना चाहिए एक साथ होकर खड़े होने का।

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