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“मध्यप्रदेश में जो हुआ वह स्वस्थ लोकतंत्र की सुंदरता पर एक बदनुमा धब्बा है”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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जनता के द्वारा दिए गए जनादेश का एक बार फिर से गला घोंटा गया। मध्यप्रदेश में काँग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफा दिए जाने के बाद कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

इस खेल का आरंभ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से हुआ। जहां हिमाचल प्रदेश के उस समय के काँग्रेसी मुख्यमंत्री पेमा खंडू के नेतृत्व में पूरी सरकार ही भाजपा में शामिल हो गई।

वहीं, उस समय 60 सदस्यों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा में काँग्रेस के 47 विधायक थे और जनता द्वारा दिए गए स्पष्ट बहुमत को धन बल का प्रयोग कर के भारतीय जनता पार्टी ने हड़पने का काम किया।

जब उत्तराखंड सरकार गिराने के भरसक प्रयास किए भाजपा सरकार ने

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह। फोटो साभार- सोशल मीडिया

उसी प्रकार उत्तराखंड में हरीश रावत जी की सरकार को भी गिराने की भरपूर कोशिश की गई और केन्द्र सरकार के इशारे पर उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन भी लगा दिया गया।

काँग्रेस अदालत गई और अदालत के आदेश पर राष्ट्रपति शासन हटा। पुनः हरीश रावत ने विधानसभा में बहुमत सिद्ध किया और उत्तराखंड सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

इस प्रकार की राजनीतिक उठापटक का खेल चलता रहा। केंद्र सरकार के इशारे पर राज्यपाल द्वारा गोवा, मणिपुर, मेघालय में भी सबसे बड़ा दल होने के बाद भी काँग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता नहीं मिला। अंततः धन बल के आधार पर सरकार भाजपा बनाने में सफल रही।

कर्नाटक की राजनीतिक उठापटक कोई कैसे भूल सकता है

बी.एस. येदियुरप्पा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कर्नाटक की राजनीतिक उठापटक से शायद ही कोई अनजान होगा। वहां भी कांग्रेस-जेडीएस के पास संख्या बल होने के बावजूद राज्यपाल वजुभाई वाला ने अपने पद की मर्यादा को और मूल्यों को किनारे रखते हुए भाजपा के बी.एस. येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी।

उसके साथ ही बहुमत सिद्ध करने के लिए 15 दिनों का समय दे दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बी.एस. येदियुरप्पा सरकार ने बिना बहुमत सिद्ध किए इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनके पास संख्या बल नहीं था।

कर्नाटक में अपने धन बल के प्रयोग के ज़रिये भाजपा ने काँग्रेस-जेडीएस के विधायकों से इस्तीफ़ा दिलवाकर कुमारास्वामी की सरकार को गिरा दिया। जिसके परिणाम स्वरूप पुनः कर्नाटक में बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार बनने में कामयाब हो गई।

मध्यप्रदेश में भी कर्नाटक को दोहरा रही है भाजपा

फोटो साभार- सोशल मीडिया

मध्यप्रदेश में भी वही हुआ, कमलनाथ की 15 महीने की स्थिर सरकार को भाजपा द्वारा धन-बल का प्रयोग करके काँग्रेस के 22 विधायकों को इस्तीफा दिलवाकर विधानसभा में कमलनाथ की सरकार को अल्पमत में लाने का काम किया गया।

जिसके बाद कमलनाथ ने स्वयं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। काँग्रेस के विधायक को तोड़ने में भाजपा में आए काँग्रेस के पूर्व सांसद एवं मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी अहम किरदार रहा।

जबकि मध्यप्रदेश काँग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा था मगर सिंधिया से लोकसभा की हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए भाजपा ने सिंधिया को राज्यसभा भेजकर सस्ते में ही निपटा दिया।

जोड़-तोड़ की राजनीति जनता के जनादेश का अपमान है

उक्त राजनीतिक पराक्रम जो कर्नाटक में उपयोग हुआ है, जिसकी आड़ में मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सरकार गिराने के जो कार्य किए गए हैं, उनसे जनता द्वारा दिए गए जनादेश का अपमान हुआ है। यह जनता के विश्वास के साथ धोखा है।

इससे यह सिद्ध होता है कि जनता के वोट देने का कोई महत्व नहीं रह गया है। इस प्रकार की घटना से चुनावी राजनीति के प्रति जनता का भरोसा कमज़ोर हुआ है और देश की मासूम जनता को आघात पंहुचा है।

लोकतंत्र की सुंदरता पर धब्बा

यदि भविष्य में भी इसी प्रकार जनता के जनादेश का धन-बल के प्रयोग से गला घोंटा जाता रहेगा तो जनता का चुनावी राजनीति से विश्वास समाप्त हो जाएगा।

वैसे भी पिछले कुछ सालों में मीडिया, सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग और विशेष दल के समर्थन द्वारा राजभवन के रवैये को लेकर देश में नकारात्मक संदेश गया है, जो कि एक स्वस्थ लोकतंत्र की सुंदरता पर एक बदनुमा धब्बा है।

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