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“काश लॉकडाउन से पहले हम यह सोच पाते कि मज़दूर तबका दो वक्त की रोटी कैसे खाएगा”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस के संक्रमण से परेशान है, वहीं दूसरी ओर इसी समय हमारे समाज के सबसे अच्छे और सबसे बुरे पहलू भी सामने आ रहे हैं।

ऐसे समय में कुछ बड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं जिनका समर्थन लोगों द्वारा करना जायज़ भी है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि अब लोग सवाल उठाना छोड़ दें। अनेकों सवाल अभी भी उठते हैं जिनका जवाब सरकार को देना होगा।

लॉकडाउन जैसे बड़े कदम लेते समय सरकार को गरीब वर्ग और अपने घर से दूर जाकर काम कर रहे दिहाड़ी मज़दूरों का ध्यान रखना चाहिए था।

सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया जिस कारण लोगों को काफी कुछ अब भी झेलना पड़ रहा है। काश सरकार लॉकडाउन से पहले सोच पाती कि मज़दूर तबका दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे करेगा?

सवाल यह भी है कि मौजूदा हालात की गंभीरता का अंदाज़ा पहले से लगाया जा सकता था फिर भी क्यों हम तैयार नहीं थे टेस्टिंग किट्स के साथ? हम ऐसे समय के लिए ही एक मज़बूत सरकार चुनते हैं।

जब देश की अर्थव्यवस्था पिछले एक साल से गिर रही थी तब मैंने नहीं लिखा था मगर आज लोगों की जान की बात है। हालांकि अर्थव्यवस्था भी लोगों की जान की बात होती है मगर उसे ठीक किया जा सकता है। अब अगर स्वास्थ्य केंद्रों की बुरी हालत की वजह से लोगों की मौत हो तो यह अति दुखद और दयनीय स्थिति है और अब मुझे लिखना पड़ रहा है।

ऐसे गंभीर समय में अभी सबसे ज़्यादा वायरल हो रहे हैं पुलिस द्वारा लोगों को पीटने वाले वीडियोज़। लोग इन पर हंस भी रहे हैं परन्तु यह हमारी विफलता है। पुलिस द्वारा लोगों को पीटना भी और उस पर हमारा हंसना भी!

पहली बात तो यह कि लॉकडाउन करते वक्त यह सोचा ही नहीं गया कि जो मज़दूर तबका है हमारा वो क्या करेगा? उसके बाद हमारे समाज के लोग, हमारे देश के लोग अगर इस गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं और बाहर आ रहे हैं तो उन्हें समाझना हमारा कर्तव्य है। उनको लाठी से मारना हमारा या पुलिस का कर्तव्य नहीं है।

उनका ना समझना भी हमारे सिस्टम और समाज की विफलता है और अगर वे समझने के बावजूद भी बाहर आ रहे हैं तो वह भी हमारी सामाजिक विफलता है मगर उनको डंडे से मारना कोई इसका समाधान नहीं है।

जब तक हम ऐसे सिस्टम को चलने देंगे जहां पुलिस के हाथ में लोगों को पीटने की पावर है, तब तक हम सामाजिक रूप से और पीछे जाते जाएंगे। तब तक हम अपने लोगों में भरोसा नहीं बढ़ा पाएंगे, यह इंसानियत के खिलाफ है।

यह मारपीट, हिंसा को नॉर्मलाइज़ करना है। इससे समाज बिगड़ेगा और लोगों में डर की भावना बढ़ती जाएगी। डर के साथ-साथ ऐसे मुश्किल समय में जहां हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिए ऐसे में भी हम मारपीट में रुक जाएंगे।

भारत में जहां हर दिन घरों और स्कूलों में महिलाओं और बच्चों के साथ हिंसा आम बात है, वहां सड़क पर पुलिस द्वारा लोगों को पीटना कोई नई या अचंभित कर देने वाली बात नहीं है और शायद यही कारण है कि ‘पीटेगा इंडिया तभी तो सीखेगा’ इंडिया जैसे हैशटैग वायरल हो रहे हैं और हिंसा को इतना नॉर्मलाइज़ किया जा चुका है।

परन्तु कोरोना को वह लाठी नहीं हराएगी, उसको हमारे डॉक्टर्स, चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे अन्य लोग ही हरा पाएंगे और उनके लिए हर तरह की व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण है। लोगों की टेस्टिंग ज़रूरी है, समाज के आखरी छोर तक राशन पहुंचाना और सभी की जांच (टेस्ट) कराना इस बीमारी का समाधान है।

हमें एक समाज और देश के रूप में बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ व्यस्वस्था और बेहतर जागरूकता अभियानों की ज़रूरत है। एक अच्छे सिस्टम की ज़रूरत है तभी हम आने वाले समय में और आसानी से बड़ी से बड़ी दिक्कतों का सामना कर पाएंगे।

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