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“दबाव, भेदभाव और बेइज़्जती से भरी रही न्यूज़ चैनल की मेरी एक साल की नौकरी”

फोटो साभार- pexels

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समाज की एक बड़ी दिक्कत पता है क्या है? समाज सामने वाले को उस लायक नहीं समझता है जिसके लिए सामने वाला अपनी तैयारी के साथ आया हो। इसके पीछे की वजह है भेदभाव।

जी, पहले भेदभाव जात-पात धर्म और ऊंच-नीच में हुआ करता था। फिर धीरे-धीरे समाज में बदलाव आने लगा फिर ये भेदभाव जात-पात धर्म और ऊंच-नीच से उठकर लोगों में फैलता चला गया। आज की सच्चाई यह है कि हर किसी को यह झेलना पड़ता है।

नाम नहीं बताऊंगी लेकिन ये भेदभाव मैंने भी झेला है उस संस्थान में जहां मैं काम किया करती थी। वहां मेरे साथ और भी कई लोग थे और वहां लोगों को काम इस वर्ग के हिसाब से बांटा जाता था कि ये लड़का है इसलिए ये राजनीति और देश दुनिया की खबरें अच्छी तरह से समझ और लिख सकता है और ये लड़की है तो केवल मनोरंजन ही समझ और लिख पाती है।

कई बार अगर मनोरंजन से अलग कुछ लिखने की भी कोशिश करती थी तो उसे यह कहकर हटा दिया जाता था कि ना तो स्टोरी में दम है और ना ही अच्छे से लिखी गई है।

सच बताऊं तो यह सुनने के बाद ऐसा लगता था कि हम साथ काम करने वाले सहयोगी नहीं, बल्कि मज़दूर हैं जिसको लेबर का काम दिया जाता है। इसके अलावा एक किस्म का भेदभाव और था वो यह कि अगर अपने इलाके का कोई है या किसी मीडिया हाउस से पड़ा है तो उसे इंटरव्यू देने की कोई ज़रूरत नहीं!

मुझे याद है जब मैंने इंटरव्यू दिया था तब मेरा अच्छा खासा इंटरव्यू लिया गया था पूरे 2 से ढाई घंटे का लेकिन जो उनके मीडिया हाउस से पढ़े होते थे वे बिना इंटरव्यू के ही ज्वॉइन कर लेते थे। यानी कि उनका काम जुगाड़ से हो जाता था।

इसके अलावा मेरी एक दोस्त भी थी उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था जो वह हमेशा मेरे साथ शेयर करती थी। इस भेदभाव से किसी पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन जिसके साथ यह होता है उसको पड़ता है।

जी हां, उसको अपनी काबिलयत पता होती है लेकिन सामने वाला भेदभाव में उस काबिलियत को खोने लगता है। काम के दौरान गलतियां किससे नहीं होती हैं लेकिन सीनियर के तौर पर आपके लिए सबके सामने उसके काम पर सवाल उठाकर उसे डांटते हुए उसकी बेइज़्जती करना तीर मारने जैसा होता है। इसे ही भेदभाव कहा जाता है।

सामने वाला आपको अपना पूरा समय देकर काम पूरा कर के घर को लौटता है मगर आप उसे अलग से काम देकर रोकते हैं तब भी वो काम खत्म कर के ही संस्थान से निकलता है। वहीं, सामने वाला जो उसी के ओहदे का है, वो काम नहीं करता है तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता!

वो लेट आता है तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता और उसके पीछे की वजह है कि वो अपने सीनियर को अपनी गाड़ी में घूमाता है उसको खिलाता-पिलाता है। इसे ही कहते हैं भेदभाव! अगर इस समाज से इस तरह के भेदभाव खत्म हो जाएं तो सच बताऊं ये दुनिया और समाज साफ-सुथरा दिखने लगेगा।

लोग काबिलियत देखकर नौकरी पर रखेंगे, ना कि यह देखकर कि हमारे मीडिया हाउस से पढ़ा है, हमारे गाँव का है। इस दुनिया में सब बराबर हैं और सबको हक है बराबर की ज़िंदगी जीने का। जिसे कोई उससे छीन नहीं सकता है। ना भेदभाव करके और ना उसकी किस्मत बदलकर।

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