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वीडियो: “नॉर्थ ईस्ट के स्टूडेंट्स को कोरोना वायरस कहकर क्यों चिढ़ाया जा रहा है?”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

कोरोना वायरस (कोविड 19) पूरे विश्व की परीक्षा लेने में लगा है और इस वक्त पूरी दुनिया इस कोशिश में लगी है कि इस वायरस से कैसे लड़ा जाए और इसके असर को कैसे कम किया जाए।

मौजूदा हालात क्या हैं?

ऐसे संवेदनशील समय पर हमारी ज़िम्मेदारी यह है कि हम सब एक होकर इस वायरस से लड़ते हुए एक-दूसरे का ख्याल रखें। मुझे पूरी उम्मीद थी कि जिस तरह कोरोना वायरस किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता है, उससे लड़ने वाले लोग भी हर तरह के भेदभाव को छोड़कर एक साथ मिलकर इस वायरस के साथ मुकाबला करेंगे।

मगर मैं गलत साबित हुआ

फोटो साभार- सोशल मीडिया

लेकिन एक वायरल वीडियो ने मेरे मन में गहरा प्रभाव छोड़ा। उस वीडियो के ज़रिये इस देश के एक हिस्से के स्टूडेंट्स अपना दुःख बयां कर रहे थे। ऐसे वक्त जब हर इंसान इस फिक्र में लगा हो कि कैसे एक-दूसरे को स्वस्थ्य रखें, उस वक्त में कुछ लोग अपनी करतूतों से शर्मशार कर रहे हैं।

Dimapur24/7 पर मौजूद इस वीडियो की शुरुआत में एक छात्रा मुस्कुराते हुए कहती है, “पहले तो हमें ये लोग हमें नेपाली, चिंकी और चाइनीज़ बोलते थे, अभी तो कोरोना हो गया।” उस छात्रा की मुस्कराहट के पीछे का दर्द हम सबको समझने की ज़रूरत है।

क्यों हमारी मानसिकता ऐसी होती जा रही है. जहां हम हर संवेदनशील विषय पर हमने आपको इतना छोटा बनाने लग जाते हैं और विषय की गंभीरता को ही खत्म कर देते हैं।

कोरोना वायरस से नॉर्थ ईस्ट के स्टूडेंट्स का क्या संबंध?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

नार्थ ईस्ट के ये स्टूडेंट्स पूरे देश से यह कहते हुए अपील कर रहे हैं कि उनको कोरोना वायरस मत कहिए। कोरोना वायरस से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है।

ज़ाहिर सी बात है कि किसी एक या दो लोगों द्वारा उन्हें कोरोना वायरस कह देने से उन्होंने यह अपील नहीं की होगी और इस बात में भी कोई शक नहीं है कि इस देश के एक वर्ग नार्थ ईस्ट के लोगों के प्रति एक अलग सोच रखते हैं, जिसकी इजाज़त इस देश का संविधान तो देता ही नहीं है।

मगर उसके साथ-साथ इस देश की सोच और इस देश की परंपरा भी उसकी इजाज़त नहीं देता। उस वीडियो में खुद एक छात्र कहता है कि सभी लोग ऐसे नहीं हैं लेकिन कुछ लोग हैं जो हमें कोरोना वायरस कहकर चिढ़ाते हैं।

यह देश नॉर्थ ईस्ट वालों का उतना ही है जितना कि बिहार और यूपी वालों का

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

क्या वाकई किसी एक खास वर्ग के लोगों को ऐसे नाम से पुकारने की इजाज़त हमारी संस्कृति देती है? और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना वायरस मज़हब या प्रांत देखकर नहीं आता।

हमारा कोरोना वायरस से कोई सम्बन्ध नहीं है और हम इंडिया में रहते हैं कहती हुई छात्रा को बताना पड़ रहा है कि वे भी इसी देश की हैंं और उनका चीन से कोई लेना-देना नहीं है।

नॉर्थ ईस्ट इस देश का अहम अंग है और वहां के लोगों का इस देश में उतना ही हक है, जितना कि बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों का है। उन लोगों को भी भारत के संविधान ने उतना ही सम्मान दिया है जितना अन्य नागरिकों के लिए है और उस सम्मान के वे हकदार हैं।

मानसिक रूप से किए जाने वाले इस तरह के हमले मन में गहरा घाव छोड़ जाते हैं जिसके नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। वक्त है हमें सोचने का कि हम कोरोना वायरस से लड़ने के लिए संकल्प लें या फिर अपने ही लोगों में एक-दूसरे के बीच की खाई को गहरा कर उलझते रहें।

संवेदनशील मुद्दों पर असंवेदनशील होता समाज डरावना है, जहां केवल एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ है

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