आज नोएडा में विचित्र सा सन्नाटा था। एक ऐसी शांति जो मन को और विचिलित कर देती है। एक ऐसा सन्नाटा जो चीख-चीखकर डर और खौफ बयान कर रहा था।
शांति जिसमें बहुत शोर था. सभी ने वह शोर सुना और दरवाज़े बंद कर लिए। कभी पढ़ा था, “ध्वनि एक उर्जा है जिसे ना तो बनाया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है।” काफी पढ़े हमें यह पढ़ाया गया था मगर आज देख भी लिया।
जब बाहर एक शोर दूसरे शोर में बदल गया मगर हर शोर में एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी। वो आवाज़ जिसकी तरंगें सीधा मन को भेद रही थी। शाम के वक्त मंज़र कुछ ऐसा था जिन गलियों में बच्चों के खेलने की किलकारियां सुनाई पड़ती थी आज वही गालियां मौन खड़ी थी।
शायद उनको भी पता था अभी वक्त साथ नहीं है उनके। अभी थोड़ा वक्त उनको खुद के साथ ही बिताना है। वो भी शायद अपना समय खुद को निहारकर या खुद के पुराने दिनों को याद करके बिता रही होगी।
जिन गलियारों में दिनभर अलग-अलग तरह की ध्वनियां सुनाई देती थी आज उन गलियों में बस एक ध्वनि थी। ऐसी ध्वनि जो हवा के साथ चल रही थी, क्योंकि टकराने के लिए कोई अटकाव नहीं था। आज हर नुक्कड़ हर गली जो रोज़ मेरा घर लौटने का इंतज़ार किया करती थी आज मेरी तरफ देखकर मुंह फेर ले रही है। शायद वो भी नहीं चाहती कि मैं वहां से गुज़रू।
पता नहीं यह सन्नटा या यूं कहें कि ये शांति वाला शोर कब तक परेशान करेगा? अब तो लगता है मानो वो दौड़ने-भागने वाला शोर कहीं भला था इस शांति से। कम-से-कम 2 पल के लिए ही सही सुकून तो था। अभी ना तो सुकून है ना ही संतुष्टि है, बस डर और शांति है।