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“ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों को क्या कर्ज़ लेने पर होना पड़ेगा मजबूर?”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सिर पर हाथ रखकर गिर चुकी फसल के खेत में बैठकर आकाश की तरफ निहारते किसान को देखकर आसानी से उसकी पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। पिछले दो -तीन दिनों से हो रही बारिश और असमय ओलावृष्टि नें किसानों की पिछले चार-पांच महीने की मेहनत पर पानी फेर दिया है।

बेमौसम बारिश का खामियाज़ा किसानों को उठाना पर रहा है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

लगभग पक चुकी आलू की फसल की नालियों में पानी है। आलू अब सड़ने की तरफ अग्रसर है। सरसो की पक चुकी फसल जो खेतों से निकलने ही वाली थी, अब शायद खेत में ही अपनी अधिकांश उपज को खो दे।

खड़ी गेहूं की फसल अब ज़मीन से आलिंगन करते हुए मानो कह रही हो कि अब वो दोबारा उठने के काबिल नहीं हैं और उस फसल के सहारे खड़ा किसान भी उसके सहारे के बिना निःसहाय हुआ लगता है। प्रकृति के इस असमय कहर नें किसानों के अनेक बुने हुए सपने को बर्बाद कर दिया।

कितने ही किसानों के यहां इस शुरू होने वाले शादियों के मौसम में शादियां रही होंगी। अब इस बेमौसम बारिश के बाद वे शायद ही मानसिक रूप से उस तन्मयता से शादियों का आयोजन कर पाएं।

कितने किसानों के बच्चे जो बाहर उच्च शिक्षा के लिए गए हैं, उनके लिए पैसे का प्रबंध करना भी किसानों के सामने एक बड़ी समस्या के रूप में टूट पड़ा है।

क्या कर्ज़ लेने पर मजबूर होंगे किसान?

ये स्थितियां किसानों को ऋण लेने के लिए बाध्य करेंगी फिर वे ऋण के एक भंवर जाल में फंस जाएंगे जिससे समस्याएं घटने के बजाय बढ़ती चली जाएंगी। ऊपर के तरफ सिर पर हाथ रखकर देखते इन किसानों की तस्वीरें अनेक समाचार पत्रों का हिस्सा हैं।

ये किसान एक तरफ उस ईश्वर से अपने ऊपर इस कहर का कारण की शिकायत करते हैं। तो शीघ्र ही उनकी ये शिकायत, प्रार्थना में  परिवर्तित होकर कहती है, “हे भगवान! अब जो बची फसल है, उसी को बचा रहने दीजिए।” ये हमारे अन्नदाता कभी ना कभी प्रकृति की ऐसी मार झेलते रहते हैं।

ये किसान उनकी फसलें ही ग्रामीण अर्थव्यस्था की प्रमुख आधार हैं लेकिन इस बारिश के बाद यह आधार इनके लिए इस बार खिसक जाएगा।

सरकारें यद्दपि अनेक तरीकों जिसमें मुआवज़ा आदि शामिल है, उसके सहारे अन्नदाताओं को संभालने की पूरी कोशिश करती हैं, फिर भी इस कहर से इन अन्नदाताओं को संभालना बहुत आसान नहीं है। आखिर इसी को प्रकृति कहते हैं जिसके आगे सब बेबस हैं। हमारे ‘अन्नदाता ‘भी।

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