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“यह थप्पड़ उस समाज पर है, जो कबीर सिंह जैसे किरदार को सिर पर बिठाती है”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

जो लोग थप्पड़ को सिर्फ एक थप्पड़ मानते हैं, उनके मुंह पर थप्पड़ है अनुभव सिन्हा और तापसी पन्नू की फिल्म थप्पड़। ये थप्पड़ है उन लोगों के मुंह पर, जो कहते हैं प्यार और शादी-शुदा जीवन में चलता है एक-आधा थप्पड़।

ये थप्पड़ उस समाज पर भी है, जो कबीर सिंह जैसे किरदार को अर्श पर बिठाती है और थप्पड़ जैसी पावरफुल फिल्मों को बॉयकॉट करने की बात करती है।

कहने को तो थप्पड़ सही में सिर्फ एक थप्पड़ है मगर यही एक थप्पड़ कई बार रिश्तों के गांठ को खोल देती है। कुछ ऐसा ही हुआ है अमृता और विक्रम के साथ फिल्म थप्पड़ में। पुरुषों और समाज को सामान्य सी लगने वाली एक थप्पड़ किसी महिला के लिए कितना मायने रखती है, यही इस फिल्म में दिखाया गया है।

अमृता और विक्रम दिल्ली में रहने वाला एक कपल है, जो अपनी जीवन में काफी खुश है मगर तभी विक्रम अपने प्रमोशन पार्टी में सबके सामने अमृता को थप्पड़ मार देता है। “थप्पड़ जस्ट ए स्लैप पर नहीं मार सकता” फिल्म की टैगलाइन जितनी मोटा-माटी कहानी भी यही है।

मगर फिल्म के स्लोगन की तरह आप भी सिर्फ इसे एक थप्पड़ मानने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कीजिएगा, नहीं तो आपको भी पड़ सकता है ज़ोरदार थप्पड़, क्योंकि थप्पड़ कोई सामान्य सी बात नहीं है।

इससे किसी महिला पर क्या बीतती है, यह हम फिल्म देखकर समझ सकते हैं। फिल्म में अमृता-विक्रम की कहानी के साथ-साथ पांच अन्य औरतों की कहानियां चलती हैं, जो अंत में एक ही बिंदु पर पहुंचती है। दिलचस्प बात यह है कि वे पांचों औरतें अमृता के जीवन से कहीं ना कहीं जुड़े ही होते हैं।

निर्देशन की बात

अनुभव सिन्हा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अनुभव सिन्हा के निर्देशन कैरियर को हमें दो भागों में बांटकर देखना चाहिए। एक अनुभव सिन्हा मुल्क के पहले वाले औए एक उसके बाद वाले। नए वाले अनुभव सिन्हा वो नहीं है, जिन्होंने रावन बनाई थी बल्कि वो हैं जिन्होंने मुल्क और आर्टिकल 15 के बाद एक और गंभीर फिल्म बनाई है थप्पड़।

कुछ निर्देशक होते हैं, जो दर्शकों की मांग के आधार पर फिल्में बनाते हैं मगर कुछ निर्देशक ऐसे होते अपनी फिल्मों के माध्यम से लोगों को अपनी बात मनवाते हैं। थप्पड़ में अनुभव सिन्हा का निर्देशन कुछ ऐसा ही है। तकरीबन ढाई घंटे की फिल्म में अनुभव सिन्हा चार-पांच किरदारों से जुड़ी कहानियों को साथ लेकर जिस समान गति से उसे उसे मुकाम तक पहुंचाते हैं, वो आउटस्टैंडिंग है।

वो एक थप्पड़ को इतना सीरियस या बढ़ा चढाकर ऐसे ही नहीं दिखाते बल्कि इसके लिए वो आपको फ़िल्म के शुरुआती हिस्सों में तैयार करते हैं और उनके निर्देशन का कमाल कुछ ऐसा है कि आप तैयार हो जाते हैं.

तापसी पन्नी की एक्टिंग

तापसी पन्नू।

तापसी पन्नू की एक्टिंग बाय वन गेट वन फ्री जैसी है। यानी हम पे करते हैं एक एक्टिंग जितनी मगर वो एक्टिंग डबल जितनी करती है। उनकी एक्टिंग का जलवा ही ऐसा होता है कि वो सीन में चार चांद लगा देती है।

एक जगह जब वो कहती हैं, “जस्ट ए स्लैप पर नहीं मार सकता।” तो एक दम मारक दृश्य लगता है। साधारण से साधारण किरदार को भी वो इतना जीवन्त बना देती हैं कि आप कहने पर मजबूर हो जाते हैं, “हां यार लड़की में दम तो है।”

अन्य किरदार भी हैं लाजवाब

तापसी के अलावा फिल्म में पावेल गुलाटी, रत्ना पाठक, तन्वी आज़मी, कुमुद मिश्रा, मानव कॉल और मारा सराओ हैं। इन सभी ने अपने-अपने किरदार के हिसाब से अच्छा काम किया है। फिल्म में थोड़ी देर के लिए दिया मिर्ज़ा भी हैं और उनकी उपस्थिति समझ में आती भी है।

कुमुद मिश्रा ने अपनी एक्टिंग का लोहा एक बार फिर मनवाया है, जो अमृता के पिता बने हैं। माया सराओ, जो तापसी की वकील बनी है सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।

फिल्म थोड़ी लम्बी और इंटरवल से पहले थोड़ा स्लो प्रतीत होती है मगर फिल्म देखने के बाद आप समझ जाएंगे कि वो इस फिल्म की ज़रूरत है। बाकी यह आपको अगर खामी लगती है, तो आप मान सकते हैं। फिल्म में और कोई खामी नहीं है। हां, कुछ दर्शकों को यह लग सकता है कि क्या एक थप्पड़ के लिए इतना तिल का ताड़ बना दिया! तो ऐसे लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता है।

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