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“जब हालात सामान्य होंगे तो सत्ता से पूछूंगा कि मुश्किल वक्त में तुम्हारे संसाधन कहां थे?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

बहुत दिनों से सोच रहा हूं कुछ ऐसा लूख दूं जो बहुत कुछ सिखा जाए। कोरोना का ज़हर फिज़ाओं में बुरी तरह घुलता जा रहा है। शहर में चलते लोग ज़िंदा लाश लगते हैं। घर से निकल जाओ तो लगता है ना जाने कितना ज़हर खुद में समा लिया होगा।

ज़िंदगी से कितनी मोहब्बत है, यह अब जान पा रहा हूं। आखिर कितनी कीमती है यह अब महसूस कर पा रहा हूं। अब लग रहा है कि मुझे इंसानी जिंदगी सिर्फ इसलिए नहीं दी गई कि मज़हबी दंगो में तुम भी शरीक हो जाओ।

आज फिर हम इंसानियत पर आकर खड़े हो गए हैं

पीएम मोदी की अपील पर ताली बजाते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज मैं खुद से बात कर रहा था। तमाम प्रश्न खुद से पूछ रहा था कि कल तक दुनिया मुट्ठी में रख लेने की दम भरने वाले तुम आज इतने असहाय क्यों हो? मैं देख रहा हूं इस ज़मी के हर हिस्से को। मैं देख रहा हूं, दुनिया की ताकतवर शख्सियत को जो आज असहाय हैं।

अमेरिका, चीन, इटली, कोरिया ऐसे ना जाने कितने देश हैं, जिनको मैं असहाय मुद्रा में देख रहा हूं। नफरतों और औजारों की होड़ में हम आज फिर इंसानियत पर आकर आखिर खड़े हो गए हैं।

वक्त मुश्किल है मगर गुज़र जाएगा

कोरोना संक्रमण के दौरान मास्क पहनकर जाते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

देश को आज जब एकजुट देखता हूं तो ख्याल आता है कि आज़ादी भी ऐसी ही एकजुटता की वजह से मिली होगी। वक्त मुश्किल है मगर गुज़र जाएगा यह हम भी जानते हैं आप भी!

बस देखना यह है कि वह वक्त कौन देखेगा आप, मैं या कोई और? खैर, कोई भी देखे क्या फर्क पड़ता है मगर आज जो एकजुटता है वो सीना चौड़ा कर देती है।

मेरे कुछ दोस्त हैं जो बहुत फिक्रमंद हैं खुद के लिए भी और देश के लिए भी। वे पूछ रहे थे हमारे यहां स्वास्थ्य के बेहतर संसाधन नहीं हैं तो हम कैसे लड़ेंगे?

सत्ता के गिरेबां में हाथ डालकर सवाल पूछूंगा

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

मैंने भी कहा, “यह वक्त संसाधनों का रोना रोने का नहीं है। यह वक्त है एकजुट होकर कोरोना से लड़ने का। यदि अंग्रेज़ो से लड़ते समय हमारे पूर्वज़ यह सोचते कि हमारे पास बेहतर संसाधन नहीं हैं तो हम आज भी ग़ुलामी की जंज़ीरों में जकड़े होते।

हम संसाधनों के लिए लड़ेंगे जब हालात सामान्य होंगे। हम सत्ता के गिरेबां में हाथ डालकर पूछेंगे कि मुश्किल वक्त में तुम्हारे संसाधन कहां धूल फांक रहे थे।

तब हम भी पूछेंगे कि हिन्दू-मुसलमान में मज़हबी नफरत पैदा करने से देश जगद्गुरु कैसे बनेगा? हर प्रश्न पूछेंगे मगर आज वक्त सवालात के नहीं हैं। आज देश पर आई आपदा से लड़ने का वक्त है। हम लडेंगे मिलकर।

“तुम जो लाशों के अंबार देख रहे हो ना, वे तोप गोले की आड़ में पनपे वायरस का निष्कर्ष हैं। जहां हमने मारना तो सीख लिया मगर खुद को बचाना नहीं सीख पाएं। सही मायनों में कहें तो हम इंसान नहीं बन पाएं। चलो अब इंसान बनते हैं।

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