Site icon Youth Ki Awaaz

रासायनिक मिलावटों से कैसे बदल रहा है होली का मिजाज़

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

भारतीय संस्कृति व नृत्य विविधताओं से भरा पड़ा है जिसका सीधा संबंध आम लोगों की जीवन शैली से होता है। खासकर उन उत्सवों का जिसका जुड़ाव किसानों के फसल व पौराणिक कथा संस्कृति से जुड़ी हुई हो, उन्हीं में एक उत्सव है होली।

जिसका संबंध भी मानवीय जीवन की विभिन्न रंगों से है। यह हमारी संस्कृति की प्राचीन उत्सवों में से एक है, जिसे होली के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव को बसंत ऋतु में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

इस कारण इसे वसंतोत्सव और काम महोत्सव के नाम से भी जानते हैं। इस उत्सव को हिंदी पंचांग के अनुसार फागुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

यह उत्सव आपसी प्रेम, ताज़गी और ऊर्जा का त्यौहार है, जो रंग गुलाल के साथ मनाया जाता है। इस लोक उत्सव को पूरे  प्रदेश भर में दो दिनों तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

होली मनाने की परंपरा

हमारी संस्कृति में होली को लोक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो वसंत का संदेशवाहक भी है। यह अपने साथ राग, संगीत और रंग को लाकर पूरे प्रकृति में उल्लास का रंग-बिरंगे महक बिखेर देता है।

खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचा फूलों की आकर्षक छटा से छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सभी उल्लास से परिपूर्ण हो जाता हैं।

बचपन की होली

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

होली का उत्सव आते हि बचपन की याद ताजा हो आती है। जब हम गाँव में अपने दोस्तों संग पिचकारी वाला होली खेला करते थे। हम सभी दोस्त दो ग्रुप में टोली बनाकर अलग-अलग रंग को बाल्टी में घोलकर तैयार करते थे। फिर समय पाते ही एक-दूसरे के शरीर पर रंग और पानी की बारिश शुरू हो जाती थी।

जो दोस्त आसानी से रंग नहीं लगाता था, उसे शाम तक पकड़कर रंग लगा ही देते थे। वह बचपन का दोस्ती ही था, जिसमें सभी जाति और धर्म के भेदभाव को भूलकर रंग के रंगों में एक दोस्ती का नया गांठ तैयार करते थे।

वह अटूट दोस्ती साल दर साल तक साथ रहता था। इस वर्ष की होली में स्कूली बच्चे को देखकर हमारे बचपन की याद ताज़ा हो आई है। मानों बगल से किसी ने हमारे ऊपर रंग भरी बाल्टी उलेड़ दी हो।

रासायनिक मिलावटों से बदल रहा होली का मिजाज़

प्रतीकात्मक तस्वर। फोटो साभार- Flickr

आजकल बच्चे रंग-गुलाल लगाने की बात तो दूर, छूने से भी परहेज़ कर रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो गर्भवती महिलाएं व बच्चों को खासकर मिलावट वाली रंग-गुलाल से परहेज़ करना चाहिए। इससे आने वाले शिशु को नुकसान पहुंचता है।

क्योंकि आजकल कालाबाजारी के दौर में मिलावट वाले रंगों से पूरा बाज़ार पटा हुआ है, जिसका हानिकारक प्रभाव लोगों के ऊपर देखने को मिल रहा है। कई पुरुष व महिलाएं विभिन्न प्रकार की त्वचा इंफेक्शन से बचने के लिए रंगों की होली खेलने से मना कर रहे हैं।

उन्हें होली के दिन विशेष प्रकार के व्यंजनों और नाच-गाने के ज़रिये ही होली का आनंद लेते देखा जा रहा है। यह वर्तमान समय में रासायनिक मिलावट से होली का बदलता हुआ मिजाज़ ही है, जिसका प्रचलन खासकर शहरों में देखा जा रहा है।

Exit mobile version