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“अंबेडकर यूनिवर्सिटी में सर्टिफिकेट लेने के लिए मुझे तीन हफ्ते तक दौड़ाया गया”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

बिहार यूनिवर्सिटी में अगर एडमिशन ले लिया है, तो यह यूनिवर्सिटी आपके भविष्य के साथ इतना खेल खेलेगी कि आप देखते रह जाएंगे।

आपके आंखों के सामने आपके अंक पत्र और बाकि सभी कागज़ात रखे रहेंगे मगर आप चाहकर भी अपने अंक पत्र नहीं ले पाएंगे, क्योंकि यहां की व्यवस्था इतनी ढीली है कि बच्चों को एक-एक काम के लिए घोड़ों के जैसे दौड़ लगानी पड़ती है।

अधिकारी से लेकर सामान्य शिक्षक या कर्मचारी सभी के तेवर इतने गर्म होते हैं कि जब उनसे अंक पत्र या अपने ही कागज़ात मांगो तो लगता है जैसे आपने उनके साथ कोई बदतमीज़ी कर दी है।

शिक्षा पर मुख्यमंत्री के खोखले वादे

नीतीश कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

यह बात केवल मैं नहीं कह रही, बल्कि यहां पढ़ने वाले सभी बच्चों का यही कहना है। परीक्षाएं तो देर से होती ही हैं, यहां का सेशन ही लेट ही है मगर हमारे मुख्यमंत्री एजुकेशन को सुधारने की बात करते हैं।

यह बात अगर सच होती तो सेशन इतना लेट नहीं होता। हालांकि यहां बैठकें खूब होती हैं मगर कोई परिणाम नहीं निकलता है। बैठकें सैकड़ों मगर नतीजा शून्य। 

एक बार परीक्षा का परिणाम आ भी जाए तो उसके बाद अंकों को सुधरवाने के लिए भी खुद ही दौड़ लगानी पड़ती है। हां, सही बात है कि अपना काम खुद करना चाहिए मगर जान बुझकर की गई गलती, जिससे बच्चों का भविष्य सीधे खराब होगा उसके लिए भी यूनिवर्सिटी प्रशासन बच्चों से दौड़ लगवाता है। यही नहीं, इसके साथ बच्चों से रिश्वत भी मांगे जाते हैं। 

एक बात तो बच्चों से भी है कि आखिर वे रिश्वत देने के लिए क्यों तैयार हो जाते हैं? इस पर नाम छुपाने की शर्त पर जवाब मिलता है,

अगर नहीं देंगे तो करियर दांव पर जाएगा। इतनी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है अगर वक्त रहते कागज़ात नहीं निकलें, तो हम रेस में पीछे रह जाएंगे।

मेरे साथ भी हुई ऐसी घटना

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुज्ज़फ्फरपुर फोटो सभार- सोशल मीडिया

मैं अपने साथ बीती एक घटना आपसे शेयर कर रही हूं। मुझे भी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, मुज्ज़फ्फरपुर से अपने कुछ पेपर्स निकलवाने थे। एक तो चार बार गलतियां करने के बाद यूनिवर्सिटी ने उसे सुधारा तथा उसके बाद ओरिजनल पेपर के लिए मुझे तीन हफ्ते तक दौड़ाया गया। बाद में स्टूडेंट्स के सहयोग और छात्रसंघ के हस्तक्षेप से मुझे मेरे पेपर्स मिले।

उसी बीच मैंने एक कर्मचारी को यह भी कहते सुना कि पेपर्स को छुपा दो ताकि बच्चे बार-बार कॉलेज का चक्कर लगाएं और इसी बीच हम अपनी कमाई भी कर लें।

व्यवस्था सुधरेगी क्या?

इस तरह ऐसे कर्मचारी हर जगह बैठ हैं, जो बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं क्योंकि प्रशासन ध्यान नहीं देता। एजुकेशन सेक्टर में इतना ज़्यादा करप्शन है कि बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने में जहां माथापच्ची करनी पड़ती है, वहीं कर्मचारियों को भी रिश्वत लेने के लिए माथापच्ची करनी पड़ती है। ऐसे में क्या शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी?

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