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क्या बार-बार सेक्स करने की इच्छा नॉर्मल है?

आपने लोगों  को कहते सुना होगा कि किसी की सेक्स ड्राइव किसी दूसरे की सेक्स ड्राइव से अधिक है। या जब लोग जवान और कुंवारे होते  हैं, उनकी सेक्स ड्राइव अधिक होती है; सहज रूप से पुरुषों की सेक्स ड्राइव महिलाओं से अधिक होती है इत्यादि।

सेक्स ड्राइव को लेकर जो भी चीज़ें हमने सुनी हैं, क्या वह सच हैं? क्या सेक्स ड्राइव भी हार्ड ड्राइव की तरह ‘एक ठहरा हुआ फैसला’ है?  चलिए पता करते हैं…

सेक्स ड्राइव जिसे libido (काम लिप्सा) के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘हवस’ शब्द से हुई है, यह किसी व्यक्ति की सेक्स की गतिविधियों के लिये ड्राइव, सेक्स कितना और कितनी बार करने कि चाह को मापता है। हर व्यक्ति की सेक्स ड्राइव अलग होती है।

यह किसी व्यक्ति की सेक्स  गतिविधियों के प्रति भूख और ड्राइव (कितना और कितनी बार)  का संकेत है और यह हर व्यक्ति के लिए अलग है। पुरुष और महिला की सेक्स ड्राइव अलग होती है, पुरुष सेक्स के बारे में महिलाओं से अधिक सोचते हैं, ऐतिहासिक रूप से रुढीवादी सोच और वैज्ञानिक अध्ययन, दोनों ने यही निष्कर्ष निकाला है।

पर क्या “साधारण” या “ठीक” सेक्स  जैसी कोई चीज़ है?

विज्ञान क्या कहता है?

आपने पुराने मिथक के बारे में सुना होगा कि पुरुष हर 7 सेकंड में सेक्स के बारे में सोचते हैं, लेकिन यह ज़्यादा ही जोशीला–मिथक है। याद रखिए कि यह सब खुद बताई बातें हैं,  लोग अपने हिसाब से इसमें मसाला बढ़ाते-घटाते होंगे माना जाता है कि आम आदमी सेक्स के बारे में दिन में एक बार तो सोचता ही है, हालांकि 34 बार तक सोचना ‘सामान्य’ माना गया है।

एक पुराने शोध के अनुसार औरतें दिन में 18 बार से अधिक सेक्स के बारे में सोचती हैं। सेक्स विशेषज्ञों द्वारा दिए गए नए प्रमाणों से यह साबित हुआ है कि औरतें भी सेक्स के बारे में नियमित रूप से सोचती हैं। हो सकता है कि कुछ सामाजिक पाबंदियों के चलते पुराने शोध में औरतों के उत्तरों को तोड़ा मरोड़ा गया। 3 साल पहले किए गए अंतर्राष्ट्रीय शोध में प्रकाशित हुआ है कि औरतें भी सेक्स के बारे में उतना ही सोचती हैं और पसंद करती हैं जितना की पुरुष।

इस अनिश्चितता का क्या मतलब है?

ऐसा कोई  ISI चिन्ह तो है नहीं, जो सेक्स करने की इच्छा की वर्तमान मात्रा बता सके, फिर भी लोग इस बात से परेशान हैं कि उनकी काम लिप्सा (libido) बहुत कम या ज़्यादा है। यहां काम लिप्सा (libido) के कुछ स्तरों का वर्णन किया गया है

1. अति कामुकता (Hypersexuality)

कुछ लोगों को सेक्स के बेकाबू खयाल बेहद बेचैन और चिड़चिड़ा कर देते हैं। इसकी चरम सीमा यह है कि आप इस तरह के व्यवहार में इतना लिप्त हो जाते हैं कि काम पर भी अक्सर पॉर्नोग्राफी देखते हैं। यहां परेशानी यह है कि कब और कहां खुश होना है, यह बात आपकी समझ के परे जा चुकी है। यह लक्षण सेक्स की लत और अति कामुकता के हो भी सकते हैं और नहीं भी।

63 वर्षीय जय ने यह खुद तय कर लिया कि उन्हें सेक्स की लत लग गयी  है। दोस्तों से मिलना और शौक पालने से ज़्यादा वह सेक्स का पीछा करते। इस बात से परेशान हो, उन्होंने 22 साल पहले एक दिन यह तय किया कि उन्हें अपने दिमाग पर हावी सेक्स के खयाल नहीं चाहिए थे। जय ने कहा ‘मैं दूसरे काम करना चाहता था। मैंने तय किया कि अब बहुत हुआ, जब भी मुझे तलब लगेगी मैं हस्‍तमैथुन करूंगा। हस्‍तमैथुन भी धीरे-धीरे कम हो गया है और अब मुझे सेक्स की ज़रूरत नहीं पड़ती है।”

हमारी सलाह है : गूगल की सहायता से खुद की डॉक्टरी ना करें, प्रशिक्षित चिकित्सक से बात करें और समझें , क्या आपको वाकई में कोई समस्या है भी या नहीं?

 

2. अलैंगिकता (Asexuality)

कुछ समय पहले, 21 वर्षीय मोहना ने बताया कि वह अलैंगिक है। क्या इसका मतलब सेक्स ना करना है?

नहीं, असल में अलैंगिकता सेक्स के लिए कम भूख की निशानी है। कई लोगों की मान्यता के विपरीत ना तो यह कोई रोग है जिसे इलाज चाहिए, ना ही मनोविज्ञानिक कमी। अलैंगिक लोग दूसरे लोगों के प्रति रूमानी प्यार, गहरा आकर्षण और जुनून महसूस करते हैं, उनके जीवन साथी भी होते हैं लेकिन वो उस रिश्ते को सेक्शुअल बनाने की ज़रूरत नहीं समझते।

“जब मैंने इसके बारे में लोगों से बात करनी शुरू की, वो या मुझ पर हंसे या उन्होंने मुझे चिकित्सीय सलाह और मनोवैज्ञानिक सहायता लेने को कहा। इस बात पर ज़ोर दिया जाता कि यह जो भी है पूर्ण रूप से अप्राकृतिक और असंभव है। ‘मोहना ने समझाया कि ऑनलाइन मंच ने उसकी यह समझने में  सहायता की थी कि वह समाज के एक अनूठे भाग का हिस्सा है, “वहां मेरे जैसे और भी कई लोग मौजूद हैं, हम लोगों को सेक्शुअल गतिविधियों की आवश्यकता महसूस नहीं होती।”

शायद अति कामुकता और अलैंगिकता एक रंगावली के दो छोर हैं, पर व्यक्ति की सेक्स ड्राइव कई चीज़ों से प्रभावित होती है।

अगर हम इसकी तुलना भूख से करें, जैसे कि खाना तो बात और स्पष्ट हो जाती है। उन सभी अलग–अलग कारणों के बारे में सोचें जो आपके खाने की भूख को कम या ज़्यादा करते हैं, आपकी भूख को प्रभावित करते हैं, जिनपर आपका कितना और कब खाना निर्भर है।

दूसरे शब्दों में, लोगों की सेक्स ड्राइव में बहुत विविधता है।

वो कौन चीज़ें हैं जो सेक्स ड्राइव को प्रभावित करती हैं?

1) स्वास्थ्य

मानसिक बीमारी और चिरकालिक अवसाद का परिणाम उत्साहहीन काम लिप्सा हो सकता है (हालांकि ऐसी मानसिक बिमारी, जिसका निदान ना हुआ हो, कभी-कभी बढ़े हुए सेक्स ड्राइव की वजह हो सकती है)

अनिंद्रा(नींद न आना), तनाव, रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज), हार्ट की समस्याओं और थायराइड के इलाज के दुष्परिणाम काम लिप्सा(libido) घटा सकते हैं। रिश्तो में तनाव और निजी समस्याओं जैसे सेक्स से जुड़ा कोई मनोविज्ञानिक घात, काम लिप्सा से जुड़ी समस्याओं को बढ़ाते हैं।

मौसम का भी रोल होता है, कुछ लोग ज़्यादा सर्दी में धूप और प्रकाश की कमी से दुखी हो जाते हैं, इसका कारण होता है कम ‘सिरोटोटिन’ (वह हार्मोन जो मूड अच्छा करता है) कभी-कभी इससे काम लिप्सा में कमी आती है। व्यायाम हेल्थी सेक्स ड्राइव में सहायता करता है, रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, तनाव घटाने वाले और मूड अच्छा करने वाले ‘एंडोरफीन’ नामक हॉर्मोन का हमारे रक्त में संचार करता है।

 2) उम्र

15 साल के अर्जुन कहते हैं कि उन्हें काफी चिंता होती थी कि उनके सर पर सेक्स सवार था। “तरुण अवस्था में मैं करीब हर तीसरे मिनट सेक्स के बारे में सोचता था। जब मैं 11 साल का हुआ, अचानक चीज़ें यूं बदलीं, महिला को देखने से ही इरेक्शन(erection) हो जाता था, काफी दर्द भरा और शर्मनाक दौर था।” वो झेंपते हुए कहता है, “अब बात अलग है, मैं काफी शांत हूं, अब मैं सेक्स के लिए उतना उत्सुक नहीं हूं”

‘टेस्टोस्टेरॉन’ हार्मोन जो एक पुरुष के सेक्स ड्राइव के लिए ज़िम्मेदार है,  किशोर अवस्था के जाते-जाते ,सबसे अधिक होता है। लगता है अर्जुन की यह अवस्था टाइम से थोड़े पहले ही आ गयी।

औरतों में, सेक्स ड्राइव का उमर के साथ निश्चित रिश्ता नहीं है।

यह धारणा, कि औरतों में ‘सेक्शुअल पीक’( वह समय जब एस्ट्रोजन का स्तर और उनकी सेक्स ड्राइव या कामोत्तेजना चरम पर होती है, यह माना जाता है कि ऐसे समय में वह सेक्स परिपक्वता और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होती हैं) तीस साल की उमर के आस पास होती है, अब पुरानी और अप्रचलित हो चुकी है फिर भी एक जन धारणा है कि महिलाओं की सेक्स ड्राइव 30 व 40 की उम्र के बीच अधिक होती है।

37 साल की किरण इस बात से असहमत हैं। उन्होंने काफी लंबे समय से सेक्स नहीं किया है और वह खास तौर पर इस बात से परेशान हैं कि लोग कहते हैं कि आप अभी अपनी अधिकतम सेक्स ड्राइव के दौर से गुज़र रही हैं और समलैंगिक होने के कारण तो आपको और भी आसानी होगी। उन्होंने कहा-

“मैं पिछले 2 साल से अपने शुष्क दिनों के बीच हूं, मुझे कामोत्तेजना का एहसास कभी कभार होता है, मैं सेक्स के बारे में इन दिनों महीने में शायद दो बार ही सोचती हूं”।

3) मासिक और गर्भावस्था

मासिक  चक्र का आना सेक्स ड्राइव को प्रभावित करता है, कई कारणो से माना जाता है कि महिलाओं में काम लिप्सा(libido) ‘ओव्यूलेशन’ (यह  मासिक  आने के  2 हफ्ते पहले  आता है) के दौरान अधिक होती है। हर महीने बदन गर्भधारण के लिए तैयार होता है।

28 वर्षीय संगीतकार सुमुथी पी को यह एहसास बहुत पहले हो गया था कि वह अकेली महिला नहीं हैं जिसे मासिक के कारण सेक्स ड्राइव में बहुत अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने “पीरियड ट्रैक्रर” नामक ऐप को डाउनलोड किया। यह आपको याद दिलाता है कि आप कब अण्डोत्सर्ग (ovulation) कर रही हैं और यह समझने में भी सहायता करता है कि कभी-कभी आपका शरीर सेक्स की ज़्यादा मांग क्यों करता है? उन्होंने अपने पार्टनर को भी इस बात के लिए मना लिया, यानि अब वह भी इनके पीरियड साइकिल को ट्रैक करते हैं। ऐसा करने से उनकी सेक्स ड्राइव को अण्डोत्सर्ग के दौरान संभालना काफी आसान हो गया है।

ऐसे कई कारण हैं जो यह समझने में सहयता कर सकते हैं कि आखिर कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान सेक्स की इच्छा अधिक क्यों होती है?

उदाहरण के लिए ‘वजाइनल डिस्चार्ज’ मासिक के आने से पहले बढ़ जाता है। इससे अधिक गीलापन होने की वजह से कामोत्तेजना बढ़ती है। महिलाओं का हॉर्मोन स्तर बढ़ता है, इस हॉर्मोन को ‘प्रोजेस्ट्रोन’ कहते हैं (यह गर्भावस्था के दौरान भी निकलता है) मासिक के आने पर यह काम लिप्सा(libido)  को कम कर देता है। जब प्रोजेस्ट्रोन का स्तर मासिक के पहले दिन के बाद बढ़ता है, इससे महिलाओं की सेक्स की इच्छा भी बढ़ जाती है।

कई महिलाओं का यह मानना है कि गर्भावस्था के पहले 2 तिमाही में उन्होंने अपनी काम लिप्सा में महत्वपूर्ण उठाव देखा, वहीं तीसरे तिमाही के आते-आते शारीरिक बदलाव जैसे वजन बढ़ना, चक्कर आना, शारीरिक बेचैनी के कारण कई महिलाओं का सेक्स ड्राइव कम हो जाता है।

4) शराब और ड्रग्स

ड्रग्स का दुरुपयोग, विशेष रुप से मुश्किल से मिलने वाली ड्रग जैसे, हेरोइन, थकान बढ़ा देता है, जबकि दूसरे हॉरमोंस जैसे एस्ट्रोजन और  टेस्टोस्टेरॉन की उत्पत्ति को कम करता है,  इसलिए लोगों की सेक्स ड्राइव के साथ भी यह खिलवाड़ करता है। क्रॉनिक शराब का सेवन व  काम लिप्सा(libido) को घटाता है, कई मामलों में प्रमुख रूप से सेक्स करने की इच्छा ही समाप्त हो गई है या घट गई है।

5) कामोत्तेजना और सेक्सड्राइव

क्या आपकी काम लिप्सा ऑर्गैज़्म (कामोत्तेजना की चरमावस्था) के बाद घट जाती है? ऐसा ज़रूरी नहीं है, खास तौर पर महिलाओं में एक से अधिक ऑर्गैज़्म की क्षमता होती है परंतु खुद को कामोन्माद देना सीख लेने से आपको खुद पूर्णता का आभास होता है, बार-बार सेक्स की इच्छा कम हो जाती है।

21 वर्ष की विराट उम्र में, सहाना ने खुद को कामोन्माद देने की परिस्थिति को स्वीकार लिया था। वह कहती हैं, इससे उनकी हेल्दी सेक्स ड्राइव को बढ़ावा मिला है। जब “मैं 17 साल  की थी तब मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ कभी-कभी सेक्स करती थी पर मुझे पूर्ति नहीं हो रही थी, जैसी मैं चाहती थी,  सब जल्दी खत्म हो जाता था। मैं चिड़चिड़ी रहने लगी और सेक्स के बारे में हर रोज़ सोचने लगी, इस बात ने मुझे चिंतित कर दिया, कहीं मुझे सेक्स की लत तो नहीं लग गई? वह कहती है कि मेरी कामोन्माद (orgasm) स्थिति बड़ी बेकार थी, लेकिन 21 की उम्र में मैंने जब से हस्तमैथुन करना सीखा सब कुछ बदल गया। अब मैं निरंतर चिड़चिड़ी नहीं होती क्योंकि मैं हर 2 दिन मैं खुद को संतुष्ट कर लेती हूं।”

आखिरकार हमने यह देखा कि लोग अपनी काम लिप्सा को लेकर चिंतित हैं, वह चाहे सेक्स के बारे में अक्सर या बहुत कम सोचते हों। सब में खुद की परेशानी सुलझाने की अपनी प्रवृति होती है, चाहे खाने, खोजने, परामर्श , हस्तमैथुन, दूसरे शौक पूरे करने या पूर्ण तरह परहेज के माध्यम से।

‘जॉनी गद्दार’ में धर्मेंद्र के डायलॉग की खिंचाई करें तो -“यह लिंग या उम्र के बारे में नहीं है, यह माइलेज के बारे में है”

चलिए, खुद के लिए टिप्पणी-“धर्मेंद्र की खिंचाई करने का प्रयास ना करें” लेकिन ड्राइव का आनंद ले!

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