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कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए सरकार के इंतज़ाम कितने पुख्ता हैं?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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आज पूरी दुनिया एक ऐसी महामारी से जूझ रही है जिसका इलाज फिलहाल किसी भी मुल्क के पास नहीं है। इटली, अमेरिका और स्पेन जैसे विकसित देशों ने भी कोरोना के सामने हाथ खड़े कर दिए हैं। तो ज़ाहिर सी बात है कि हम पर इसका प्रभाव और अधिक पड़ सकता है।

वैज्ञानिकों एवं ICMR के डीजी बलराम भार्गव के अनुसार भारत कोरोना वायरस की दूसरी स्टेज पर है। इस‌लिए आने वाले तीन सप्ताह हमारे लिए बहुत ही घातक साबित हो सकते हैं, क्योंकि हम तीन सप्ताह के अंदर तीसरी स्टेज पर होंगे।

तीसरी स्टेज में वे लोग भी पॉज़िटिव निकलने शुरू हो जाते हैं जिनका फॉरेन ट्रेवल या बाहर से लौटे किसी व्यक्ति से दूर-दूर तक कोई सम्पर्क ना हो जिसे कम्युनिटी स्प्रेड भी कहा जाता है।

इसमें किसी को पता नहीं होता कि वायरस कहां से आया है एवं ताबड़तोड़ बड़े इलाके एक साथ इन्फेक्ट होते हैं। अगर आने वाले चार सप्ताह में हम घरों के अंदर रहें तो संक्रमण से काफी हद तक बच सकते हैं।

क्या कहा ICMR के डीजी बलराम भार्गव ने?

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ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव। फोटो साभार- सोशल मीडिया

ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव का कहना है कि भारत में कोरोना 20 प्रतिशत जनसंख्या पर प्रभाव डाल सकता है। जिनमें से 6-7 प्रतिशत लोग हॉस्पिटल में भर्ती हो सकते हैं। अर्थात 9 से 10 करोड़ लोग।

ICMR के अनुसार भारत हर दिन में 10 हज़ार लोगों की टेस्टिंग करने में सक्षम है। यदि ज़रूरत पड़ी तो एक सप्ताह में 50‌ से 70 हज़ार लोगों की टेस्टिंग हो सकती है। ICMR से पूछा जाना चाहिए कि ज़रूरत कब पड़ेगी?

क्योंकि वर्तमान में ही टेस्टिंग कर ली जाए तो हम कोरोना से कुछ हद तक बच सकते हैं लेकिन 24 मार्च तक सिर्फ 20,864 सैंपल टेस्ट किए गए तो सवाल खड़ा होता है कि इसे बढ़ाकर 50 से 70 हज़ार कैसे किया जाएगा?

सरकार ने हमारी सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए हैं?

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि भारत में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को आया था। उसी समय विदेश व्यापार निदेशालय ने हर तरह की PPE किट के निर्यात पर रोक लगा दी थी।

PPE किट यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट, जो डॉक्टरों की सुरक्षा की खातिर अत्यंत है। PPE किट में मास्क, सैनिटाइज़र व बॉडी कवर जैसी उपयोगी वस्तुएं शामिल होती हैं।

केंद्र की मोदी सरकार ने 8 फरवरी को दस्तानों, मास्क व सैनिटाइज़र से रोक हटा दी। जिसके कारण PPE किट फिर से निर्यात होने लगा। जबकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आठ फरवरी तक कोरोना के मामलों में विश्व स्तर पर काफी इज़ाफा हुआ। भारत ने कोरोना संक्रमित देशों की फ्लाइट भी रद्द कर दी थी लेकिन PPE किट के निर्यात से रोक हटा दी गई।

इसके बाद कई दिनों तक इस चीज़ का संज्ञान नहीं लिया गया और डॉक्टरों ने कई बार शिकायत की लेकिन सरकार इन्हें निर्यात करती रही। स्क्रॉल डॉट इन की पत्रकार सुप्रिया शर्मा व एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी कई बार इस मसले को लेकर  गुहार लगाई।

लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा। थाली बजवाने के बाद भी जब डॉक्टरों का मनोबल टूट रहा था तो ट्विटर पर कुछ डॉक्टरों ने इसकी शिकायत की तब जाकर मोदी सरकार ने 23 मार्च को PPE किट के निर्यात पर रोक लगाने के निर्देश दिए।

कोरोना को लेकर वर्तमान स्थिति

कोरोना संक्रमण के दौरान मास्क लगाकर घुमते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

वहीं, आज की बात करें तो भारत में N-95 मास्क की कमी के कारण डॉक्टरों में भय का माहौल है। यदि वेंटिलेटर की बात की जाए केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने वेंटिलेटर के निर्यात पर भी 31 जनवरी को रोक लगा दी थी।

केंद्र की मोदी सरकार ने 8 फरवरी के संशोधन में इस पर से भी रोक हटा दी एवं नेपाल जैसे देशों से फिर वेंटिलेटर निर्यात किए गए। दबाव बढ़ने पर 23 मार्च को फिर से इस पर रोक लगाई गई लेकिन अभी तक इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा सामने नहीं आया है कि कितने वेंटिलेटर निर्यात किए गए हैं।

वहीं, 12 फरवरी को ही विपक्ष ने सरकार से वेंटिलेटर व PPE किट जैसी वस्तुओं की व्यवस्था करने को कहा था। अब यह विडंबना नहीं तो क्या है कि उस समय देश की सुरक्षा को छोड़कर प्रधानमंत्री व गृहमंत्री मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार को गिराने में व्यस्त थे।

क्या इसलिए सरकार के पास देश की समस्या को सुलझाने का समय नहीं था? कारवां की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने सरकारी कम्पनी HLL को नोडल एजेंसी बनाया है।

मई 2020 तक HLL को साढ़े सात लाख PPE किट सप्लाई करने को कहा है। जबकि भारत को प्रतिदिन 5 लाख PPE किट की ज़रूरत है क्योंकि PPE किट यूज़ एंड थ्रो सामग्री है।

क्या कहते हैं इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर के अध्यक्ष ध्रुव चौधरी

फोटो साभार- सोशल मीडिया

इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर के अध्यक्ष ध्रुव चौधरी के मुताबिक, “देश में तकरीबन 40 हज़ार ही वेंटिलेटर मौजूद हैं, जिनमें से अधिकतर मेट्रो शहरों, मेडिकल कॉलेजों और प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध हैं।”

ऐसे में सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में वेंटिलेटर की संख्या सागर में गागर जैसी है। फिर सरकार के रवैये पर और भी सवाल खड़े क्यों नहीं होंगे? क्योंकि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सभी देशों से कहा था कि वे मास्क, सैनिटाइज़र व वेंटिलेटर की व्यवस्था पहले से ही कर लें।

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत सरकार ने WHO के मशवरे को अनदेखा करके PPE किट व वेंटिलेटर जैसी वस्तुओं का निर्यात किया और देश के लोगों व डॉक्टरों की सुरक्षा की चिंता क्यों नहीं की?

1200 नए वेंटिलेटर खरीदेगी सरकार

सरकार पर वेंटिलेटर का दबाव बनाने के बाद सरकार की नींद टूटी तो स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने 1200 वेंटिलेटर ऑर्डर किए जिन्हें आने में कम-से-कम एक-डेढ़ महीना लग सकते हैं क्योंकि हैमिल्टन नामक कंपनी साल में 15 हज़ार वेंटिलेटर ही बनाती है।

वर्तमान स्थिति को देखते हुए उसने अपने उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी यदि की हो तब भी ऑर्डर पूरा करना असंभव ही लग रहा है।

हमें क्या हमें तो ताली और थाली बजानी है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

हमें सिर्फ ताली और थाली बजाने में मज़ा आता है, क्योंकि मोदी जी के अनुसार उस ध्वनि प्रदूषण से डॉक्टरों का हौसला बढ़ता है। जबकि इस समय उनके पास ताली सुनने का समय भी नहीं है।

हौसला बढ़ाने के लिए वेंटिलेटर व PPE किट की मुहैया कराने पर ज़ोर दिया जाता तो शायद अच्छा रहता। कम-से-कम भारत के लोग बन्दर तो ना बनते। कुछ लोगों ने खूब उछल-उछलकर ताली और थाली बजाई क्योंकि मोदी जी ने कहा हैं।

पहले से भी वेंटिलेटर होने के बावजूद अमेरिका ने 30 हज़ार नए वेंटिलेटर ऑर्डर कर दिया

अमेरिका के पास पहले से भी वेंटिलेटर थे लेकिन स्थिति को देखते हुए 30 हज़ार वेंटिलेटर और ऑर्डर किए गए। अमेरिका की जनसंख्या है 33 करोड़, इसी तरह जर्मनी ने भी नए दस हज़ार वेंटिलेटर ऑर्डर किए हैं।

जर्मनी की जनसंख्या है साढ़े आठ करोड़। वहीं, भारत ने वर्तमान में सिर्फ 1200 वेंटिलेटर ऑर्डर किए हैं एवं पहले से 30 हज़ार वेंटिलेटर हैं जबकि भारत की जनसंख्या है 130 करोड़।

क्या कहा सेंटर फॉर डिज़ीज डायनेमिक्स के निदेशक डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण ने?

सेंटर फॉर डिज़ीज डायनेमिक्स के निदेशक डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण कहा है, “हो सकता है हम बाकी देशों की तुलना में थोड़ा पीछे चल रहे हों लेकिन स्पेन और चीन में जैसे हालात रहे हैं, जितनी बड़ी संख्या में वहां लोग संक्रमण की चपेट में आए हैं, वैसे ही हालात यहां बनेंगे और कुछ हफ्तों तों में हमें कोरोना की सुनामी के लिए तैयार रहना चाहिए।”

बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह की रिपोर्ट व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2017-18 में भारत सरकार ने अपने जीडीपी का 1.28 फीसदी ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने का प्रवाधान रखा था। इसके अलावा 2009-10 में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर सरकार ने खर्च किए महज़ 621 रूपए।

पिछले आठ सालों में सरकार का प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्चा बढ़ा ज़रूर है लेकिन 2017-18 तक यह बढ़कर भी 1657 रुपए प्रति व्यक्ति ही हुआ है। तो इन आंकड़ों से आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं कि आखिरकार भारत में कोरोना से लड़ने की क्षमता कितनी है?

कोरोना से लड़ने की मौजूदा स्थित मुख्य धारा की मीडिया में है नदारद

इन सारी चीज़ों को मुख्यधारा की मीडिया ने इस तरह किनारे किया जैसे देश में दलितों को किया जाता है। यदि मीडिया द्वारा वेंटिलेटर और PPE किट की बढ़ती कमी पर पहले सवाल उठाया जाता तो हमें वेंटिलेटर की राह नहीं देखनी पड़ती।

20 मार्च से पहले तक मीडिया सिर्फ कोरोना की तस्वीर दिखाकर लोगों को डरा रहा था और सिंधिया बाबू को ‘माहराज’ के तौर पर मशहूर कर रहा था।

बात सरकार द्वारा मज़दूरों को आर्थिक सहायता दिए जाने की

फोटो साभार- सोशल मीडिया

अब बात उस आर्थिक सहायता की जो सरकार के द्वारा मज़दूरों को दी जानी चाहिए। भारत में दिहाड़ी मज़दूर, रेहड़ी वाले, गुमटी वाले, बीपीएल धारक एवं अन्य गरीब तबके के लोग काफी अधिक हैं। वर्ल्ड बैंक के 2016 के आंकड़ों के अनुसार भारत की 30 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे आती है।

30%  अर्थात 22 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। ऐसे में सरकार को बीपीएल धारकों व दिहाड़ी मज़दूरों के लिए फाइनेंशियल पैकज (यहां फाइनेंसियल पैकेज का संदर्भ सहायता राशि से है) की घोषणा करनी चाहिए थी।

24 मार्च को प्रधानमंत्री के संबोधन से पहले लोगों को यह उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री फाइनेंशियल पैकेज की घोषणा करेंगे लेकिन उम्मीद धरी की धरी रह गई। कई राज्य सरकारों द्वारा गरीबों को मुफ्त भोजन जैसी सुविधाएं मिल रही हैं एवं दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने निर्माण कार्य करने वाले मज़दूरों को पांच-पांच हज़ार रुपये देने की घोषणा की है।

दिल्ली बीओसीडब्ल्यू के तहत करीब चार लाख मज़दूर रजिस्टर्ड हैं, पैसा सीधे उनके खाते में जाएगा। ज़्यादातर मज़दूर शहर-दर-शहर काम की तलाश में आते-जाते रहते हैं। ऐसे में रकम उनकी पहचान और सत्यापन के बाद ही मिलेगी।

फिलहाल हम इससे अधिक उम्मीद नहीं रख सकते हैं, क्योंकि यह लंबी प्रक्रिया है जिसमें समय लगेगा। इसी प्रकार दिल्ली में नाईट शेल्टर व मुफ्त खाने की व्यवस्था भी केजरीवाल सरकार द्वारा की गई है लेकिन लोगों तक इसकी पूर्ण जानकारी मुहैया नहीं करवाई गई।

ऐसे ही कुछ फैसले राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सरकारों ने भी लिए हैं जिनमें निशुल्क खाना व यूपी सरकार द्वारा हज़ार-हज़ार रुपये गरीबों को देने की बात कही जा रही है जो ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है।

वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने आयुष्मान भारत योजना के तहत कोरोना वायरस के उपचार को शामिल करने का फैसला किया है ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति भी निजी अस्पतालों में इलाज करा सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इकोनॉमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स बनाने का ऐलान

फोटो साभार- नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च को कोरोना वायरस को लेकर इकोनॉमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स बनाने का ऐलान किया था। ऐलान करते हुए उन्होंने कहा था कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में राहत पैकेज पर फैसला किया जाएगा।

पूरे 7 दिन गुज़रने के बाद अब जाकर दबाव में आकर भारत ने बड़ा ऐलान किया है। कुछ ही देर पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गरीबों की मदद के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया है।

वहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि

  • अमेरिका ने 1600 अरब डॉलर
  • जर्मनी ने 610 अरब डॉलर
  • ब्रिटेन ने 442 अरब डॉलर
  • फ्रांस ने 335 अरब डॉलर
  • स्पेन ने 220 अरब डॉलर
  • ऑस्ट्रेलिया ने 189 अरब डॉलर
  • स्वीडन ने 77.3 अरब डॉलर और
  • कनाडा ने 57.26 अरब डॉलर कोरोना से लड़ने के लिए जारी किए हैं।

वहीं भारतीय मीडिया के अनुसार पाकिस्तान ने भी 1.3 ट्रिलियन वित्तीय पैकेज की घोषणा की है एवं पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में भी 15 रुपये की गिरावट की है। इस बीच एक अच्छी खबर यह है कि बुधवार को मोदी कैबिनेट की बैठक में देश की लगभग 80 करोड़ जनता के लिए बड़ा फैसला लेते हुए उन्हें 2 रुपए किलो में गेंहू और 3 रुपए किलो में चावल देना तय किया है।

देश में लगभग 80 करोड़ लोगों का नाम राशन कार्ड में दर्ज़ है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार लोगों को हर महीने 7 किलो प्रति व्यक्ति राशन देगी।

24 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए संदेश का सारांश

यदि प्रधानमंत्री का 24 तारीख का भाषण सुनें तो उसका सारांश यही निकलता है कि हमारे पास ना कुछ देने को है और ना ही आपकी किसी समस्या का हल है। आप अपने स्तर पर बचिए बाकी हमारे भरोसे तो कुछ नहीं हो सकता है।

अब यह बात काफी लोगों को चुभ सकती है लेकिन यह भी मैंने आधार के साथ कहा है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार के पास कुछ नहीं है।

बिजनेस टुडे के सम्पादक राजीव दुबे के अनुसार भारत के पास आपातकाल अथवा आपदा राहत के लिए काफी कम रकम है। प्रधानमंत्री राहत कोष में 3800 करोड़ रुपये हैं, जो कि बहुत ही कम हैं। सरकार राज्य आपदा राहत कोष (SDRF) या राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) से पैसे उठा सकती थी।

SDRF में 20,000 करोड़ और NDRF में 25,000 करोड़ रुपये का प्रावधान होता है मगर पिछले कुछ वक्त में आई आपदाओं के चलते इनके फंड भी खर्च हो गए हैं।

उदाहरण के तौर पर 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के बाद जो निर्माण कार्य हुए उनके खर्च अभी भी राहत कोष से दिए जा रहे हैं। साथ ही NDRF के तहत महामारी नहीं आती है। यह प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूंकप, अकाल, सूनामी, चक्रवात को ही कवर करता है।

यदि कोरोना जैसी समस्या बड़े स्तर पर फैली तब?

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यदि भारत में कोरोना बड़े स्तर पर फैल जाता है तो गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी, क्योंकि वित्तीय पैकेज, इलाज, वेंटिलेटर, PPI, ऑक्सिजन सिलेंडर, मास्क व सैनिटाइज़र जैसी कई वस्तुओं के लिए भारी मात्रा में पैसे की आवश्यकता पड़ेगी।

इधर सरकार के पास फिलहाल पीएम आपदा कोष और आपदा प्रबंधन को मिलाकर 563 मिलियन डॉलर यानी करीब 4300 करोड़ रुपये ही मौजूद हैं। साफ शब्दों में कहा जाए तो इस रकम से एक राज्य में भी कोरोना वायरस का सामना करना आसान नहीं होगा।

कोरोना की वजह से वैसे ही अर्थव्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है। रेटिंग एजेंसी मूडीज़ इंवेस्टर्स सर्विस ने भारत की रेटिंग को 5.4 से घटाकर 5.3 कर दी है।

अर्थव्यवस्था का हाल पहले ही किसी से छुपा नहीं

तो ऐसे में सरकार के पास पैसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि रिज़र्व बैंक को सरकार ने पहले ही सफा चट कर दिया है। रही बात सरकारी कंपनियों की तो सरकारी कंपनियों के पास पैसा था उन पर कर्ज़ा हो चुका है। नॉन परफोर्मिंग एसेट्स अर्थात डूबे हुए लोन की मार झेल रहे सरकारी बैंको में अब इतनी हिम्मत नहीं बची कि वे इस आपदा को और सहन कर पाएं।

ऐसे में सरकार कृषि बजट व डिफेंस बजट से एक मोटी रकम निकाल सकती है। वहीं, दो लाख करोड़ का लोन भी ले सकती है लेकिन इससे महंगाई दर काफी बढ़ जाएगी। यही नहीं, देश पर कर्ज़ा भी बढ़ जाएगा और आने वाले वक्त में टेक्स भी बढ़ सकते हैं। इसलिए माना जा रहा है कि मोदी सरकार के पास कुछ नहीं है सिवाय थाली पीटने के।

कुछ लोगों का यह भी कहना था कि प्रधानमंत्री लॉकडाउन का आह्वान अथवा फैसला ट्विटर के माध्यम से भी कर सकते थे लेकिन उन भोले पंछियों को यह नहीं पता कि 21 दिन तक मीडिया को बजाने के लिए कोई डमरू तो चाहिए। अब आप देखिएगा कि अगले 21 दिन तक मीडिया किस तरह से इस एक संबोधन को प्रोपेगेंडा के रूप में प्रयोग करती रहेगी।

मौजूदा हालात में नैतिक रूप से क्या गलत हो रहा है?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

इन सारी समस्याओं को देखते हुए आपसे अनुरोध किया जा रहा है कि आप घर में ही रहें। कई जगहों पर पुलिस की बर्बरता भी सामने आई है। 25 मार्च को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हुई एक खबर के अनुसार धौलपुर में पुलिस ने सब्ज़ी के ठेले वाले को मारकर भगा दिया।

विडंबना देखिए कि बजरी के खनन व परिवहन धड़ल्ले से चल रहे हैं। वहीं, पंजाब पुलिस के भी कई वीडियोज़ सामने आए हैं जिनमें आम लोगों को घरों से बाहर निकलने पर उन्हें मुर्गा बनाकर पीटा जा रहा है। जबकि उन्हें कानून के हिसाब से चलकर कार्रवाई करनी चाहिए थी।

दिल्ली पुलिस के भी कई वीडियोज़ वायरल हुए हैं जिनमें पुलिसवाले माँ-बहन की गालियां देते हुए लोगों को पीट रहे हैं। मैं इस बात से अनभिज्ञ हूं कि आखिरकार कोरोना का माँ-बहनों से क्या रिश्ता है? कहने का मतलब यह है कि कुछ जगहों की पुलिस पूरे देश की खाकी वर्दी को बदनाम कर रही है जो नैतिक रूप से गलत है।

आपसे यही निवेदन करूंगा कि आने वाले चार-पांच हफ्ते घरों में ही जमे रहिए, क्योंकि सरकार आपको बचाने लायक नहीं बची है। इसलिए आप अपने स्तर पर अपनी जान बचा सकते हैं तो बचा लीजिए, क्योंकि सत्ताधारी लोग तो एसी चेम्बर से न्यूज़ चैनल पलटते हुए तमाशा देख सकते हैं। याद रहे उनके पास सिर्फ सरकार गिराने का इंतज़ाम है लेकिन चलाने का नहीं।

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