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कैसे सांप्रदायिक दंगों में हिन्दू-मुस्लिम को आपस में लड़ाया जाता है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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हर दौर में राजा-महाराजाओं ने सिर्फ अपने राजपाट-सिहांसन को बचाने के लिए मनगढ़ंत नीतियों तथा धन-बल का प्रयोग किया, जिसका परिणाम यह निकला कि इसका खामियाज़ा सिर्फ आम आदमी को ही उठाना पड़ा है।

आज भी राजपाट-सिंहासन का प्रतिरूप राजनीतिक कुर्सी की महत्वाकांक्षा के रूप में देखने को मिलता है मगर सोशल मीडिया के दौर में बढ़ती हुई टेक्नोलॉजी के कारण कुर्सी बचाने के इस लालच ने अत्यंत भयावह स्वरूप गढ़ लिया है, जिसे मात्र बुद्धिजीवी लोग ही समझ सकते हैं मगर समाज में इनकी सहभागिता नगण्य है। 

सत्तालोभ की राजनीति के समानांतर सोशल मीडिया का प्रयोग भयावह है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज की तारीख में कुर्सी बचाने के लिए राजनीति के समानांतर सोशल मीडिया का यह प्रयोग बेहद भयावह रूप ले चुका है। आभास होता है कि इन हालातों का सामना करना बेहद मुश्किल है।

यदि इसकी तह में जाया जाए तो हम पाएंगे कि यह कार्य एक पूर्ण योजना, प्रबंधन, समूह व किसी व्यक्ति के निर्देशन में किया जा रहा है, जिसे समझ पाना हम आम नागरिकों की क्षमता के बाहर है।

कैसे रची जाती है दंगों को भड़काने की साज़िश

फोटो साभार- सोशल मीडिया

निर्देशन- प्रत्येक पार्टी के राजनीतिज्ञ चुनावों में हर प्रकार से कुर्सी जीतने व उसे बचाने के लिए समस्त प्रयास करते हैं। उन प्रयासों में कुछ प्रयास बेहद भयावह भी होते हैं। उन प्रयासों या योजनाओं को अमली जामा पहनाने हेतु एक टीम (समूह) तैयार की जाती है।

टीम A- यह वह समूह है, जिसका कार्य दंगा भड़काने में किया जाता है। इस टीम को दी जाने वाली सुरक्षा, राजनीतिक सहयोग तथा धन की बेसुमार वर्षा को देखकर पढ़े-लिखे लोग भी इस समूह में शामिल हो गए हैं।

टीम B- यह वह समूह है, जिसका कार्य दंगा कराने के लिए निम्न तथा सामान्य वर्ग के दलित व अल्पसंख्यक समाज के गरीब, बेरोज़गार, पढ़े-लिखे, अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों को तैयार करना है।

उसके उपरांत उनके धर्म के अनुरूप उनके सामने एक विशेष समुदाय (चाहे कोई भी समुदाय हो) के पुराने इतिहास को और उनकी धार्मिक किताबों में लिखी बातों व श्लोकों को तोड़-मरोड़कर उनके समक्ष रखा जाता है, जिससे उनके अंदर नफरतों का ज़हर भर दिया जाए। उनका पूरी तरह ब्रेन वॉश करते हुए, उनके अंदर मानवता व इंसानियत को एकदम खत्म कर दिया जाता है।

एक मुख्य बात यह समझने योग्य है कि दंगाइयों की इस भीड़ में बड़े लोग कभी शामिल नहीं होते हैं, क्योंकि आज तक धनी लोग, बड़े व्यापारी लोग, बिकाऊ मीडिया, यूट्यूबर्स, IT सेल के लोग, सत्ताधारी दल, नेता के पारिवारिक सदस्य, बीवी-बच्चे और रिश्तेदार स्वयं दंगों में कभी नहीं मरते।

दिल्ली हिंसा की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

टीम C – यह वह समूह है, जिसका प्रयोग दंगों के दौरान किया जाता है, जिसका मुख्य कार्य दंगाइयों को निर्दोष साबित करने की मुहिम शुरू करना हैं। इस आधार पर यह समूह आम जनता के समक्ष दोषी को निर्दोष सिद्ध करने व निर्दोष को दोषी सिद्ध किए जाने में प्रयासरत रहते हैं।

टीम D- यह वह समूह है, जिसका प्रयोग दंगों के उपरांत व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी, बिकाऊ मीडिया चैनल, यूट्यूबर्स, सोशल मीडिया ग्रुप व व्यक्तिगत रूप से सोशल मीडिया पर कार्यरत लोग एक खास समुदाय के इतिहास तथा उसके धर्म की किताबों में लिखी बातों व श्लोकों को तोड़-मरोड़कर एडिटिंग करके लोगों के मस्तिष्क में नफरतों का तांडव मचाना शुरू कर देते हैं।

वे लोग सच छुपाने और झूठ फैलाने के अपने-अपने कार्य को अपने चहेते सत्ताधारियों के लिए बखूबी अंजाम देते हैं।

निर्देशन व समस्त टीम का संयुक्त रूप- दंगे में किसी दलित या अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के मरने पर दलितों या अल्पसंख्यक समुदाय की हमदर्दी बटोरने के लिए, उस मरने वाले व्यक्ति का भी राजनीतिकरण कर दिया जाता है। उसकी आड़ में रैली और धरने बड़े स्तर पर आयोजित किए जाते हैं।

यही आज की राजनीति की अत्यंत खौफनाक सच्चाई है, जिसे समझना बेहद मुश्किल है। वर्तमान की इस राजनीति में कुर्सी बचाने या कुर्सी पर आने की चाहत की राजनीति में सभी राजनीतिज्ञों व सत्ताधारियों का यही हाल है। अर्थात राजनीति के इस हमाम में सारे के सारे नंगे हैं।

दंगो व उपद्रवों में नुकसान सिर्फ आम नागरिक का होता है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

मात्र सत्ता की चाहत में इतिहास और धर्म का राजनीतिकरण करने और नफरती दंगाइयों की भीड़ के रूप में शामिल होने वालों रहनुमाओं, उसके बाद आराम की नींद से सोने वालों तथाकथित देश के शुभचिंतकों, कभी कुर्सी और धर्म को एक ओर रखकर एकांत में सोचना कि मरता कौन है? ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनेताओं द्वारा हिन्दू-मुस्लिम को आपस में लड़वाकर देश को बांटने की कोशिश की जाती है।

घर जलता किसका है? घर लुटता किसका है? विधवा कौन होती है? अनाथ कौन होता है? इज़्जत किसकी लुटती है? जान व माल की क्षति किसकी होती है?  ऐसे अनेक प्रश्न मष्तिष्क में उठेंगे। ऐसे दंगों व उपद्रवों में नुकसान सिर्फ आम नागरिक का होता है, जो जानता ही नहीं कि दंगा कैसे हुआ क्यों हुआ?

मृत्यु की शरण में हर व्यक्ति को जाना है, जो भी व्यक्ति इस दुनिया मे आया है, उनमें अमरता का वरदान किसी को प्राप्त नहीं है।


नोट- लेख में जिन भी बातों का मैंने ज़िक्र किया है, वे महसूस के आधार पर हैं।

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