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लॉकडाउन: मज़दूरी कर रहे आदिवासियों के सामने आजिविका का संकट

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

झारखंड में हर साल हज़ारों की संख्या में मज़दूर कमाने के चक्कर में बाहर जाते हैं। दिल्ली, मुंबई, केरल, बेंगलुरू, जम्मू-कश्मीर, गुजरात और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में झारखंड के गरीब आदिवासियों से लेकर हरेक गरीब तबके के लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में अपनी घर-परिवार की चिंता किए बिना पहुंचते हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या झारखंड में पलायन रोकने के लिए कोई पॉलिसी लागू है या नहीं? झारखंड अपनी खनिज संपदा और जंगल-झाड़ियों के लिए जाना जाता है, जहां खेती की व्यवस्था अममून बहुत ही लाचार स्थिति में है।

रोज़ी-रोटी कमाने बंगाल क्यों जाते हैं झारखंड के आदिवासी मज़दूर?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पूर्व की सरकारों ने और वर्तमान सरकार ने किसानों के हित में कई बड़े फैसले ज़रूर लिए हैं लेकिन इसके साथ ही आपको जानकारी होनी चाहिए कि झारखंड में खेती के नाम पर सिर्फ धान की खेती ही ज़्यादातर होती है।

बाकी अन्य फसलों की खेती कुछ एक क्षेत्रों में हो पाती है। झारखंड के अधिकतर गरीब आदिवासियों को रोज़ी-रोटी कमाने के लिए बंगाल में धान काटने जाना पड़ता है। वहीं, यहां के युवाओं को बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है ताकि अपना परिवार का भरण-पोषण कर पाने में समर्थ हो सके।

गरीब आदिवासियों के बीच भोजन का संकट

अभी पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा हुई है और यह हमारे झारखंड के गरीब आदिवासियों के साथ-साथ उन युवाओं के लिए बड़ी संकटकालीन घड़ी है जो सैकड़ों की संख्या में बड़े शहरों में फंसे हुए हैं।

कोरोना के डर से वे अपने रूम से नहीं निकल पा रहे हैं और उनके पास खाने-पीने की समस्या बन रही है। अभी फेसबुक के माध्यम से वे लगातार सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। उनके परिवार के लोग चिंतित हैं।

ऐसे में सरकार को तत्काल ऐसे उपाय करने चाहिए ताकि उन्हें सुरक्षित वापस ला सके या फिर सम्बंधित राज्यों से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें उचित मदद पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए।

झारखंड में पलायन की समस्याओं को हमेशा ही प्राथमिकता के रूप में सरकार का समर्थन नहीं प्राप्त होता है। इस वक्त उनके अपने ही राज्य के लोग किस मानसिक परेशानी से गुज़र रहे हैं और उनका जीवन आज खतरे में है।

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