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“बेंगलुरु में कीबोर्ड पर उंगलियां घिसते हुए होली में घर की याद आ रही है”

प्रिंस

प्रिंस

कभी अपने गाँव और शहर की कार्निवल होती थी होली, अब बड़े शहरों और महानगरों के लिए होली यानी कि कैलेंडरी त्यौहार या हॉलीडे। ज़ुबान से तो आप सभी को होली मुबारक कह रहा हूं लेकिन ज़हन में सालों-साल की छवियां उसी तरह सिकुड़कर घनी हो गई हैं।

जैसे भांग के नशे में दूरियों और समय के फासले सिमट जाया करते हैं। होली से जुड़ी पुरानी छवियां बिना सांकल बजाए दाखिल हो रही हैं और माथे में धम-धम करने लगी हैं।

होलिका दहन

होलिका दहन की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

गाँव और अपने शहर में चौक चौराहों पर होलिका सजाई जा चुकी है। खर-पतवार और गन्ने की पत्तियों से लेकर सूखे पेड़ की डालियां तक उसमें डाल दी जाती हैं। शाम होते-होते हर घर के आंगन में बच्चों को उबटन यानी पीसी सरसों का लेप लगाकर उसका चूरा इकट्ठा कर लिया जाता है।

चूरे में थोड़ा पानी और गोबर मिलाकर टिकिया जैसी बना ली जाती हैं, फिर उनके बीच अलसी के पौधों के तने डालकर लड़ी जैसी बना ली जाती है। बड़ों के साथ बच्चे भी मुकर्रर वक्त पर होलिका दहन के लिए जत्थे बनाकर पहुंचते हैं।

गाँव या अपने शहर का कोई निर्वंश (निरबसिया, अविवाहित अधेड़) आदमी या पंडित होलिका के फेरे लगाकर आग लगाता है। फिर शुरू होता है गालियों का दौर, जिन्हें कबीर या कबीरा कहते थे।

अलसी के पौधे समेत हम लोग उबटन के चूरे और गोबर की टिकियों की लड़ी होलिका में फेंक देते थे। बाद में होलिका की आग शांत होने पर सभी कोई ना कोई लड़ी लेकर घर लौटते थे। जो अगली होली तक घर के किसी आले या छत के किसी कोने में पड़ी रहती थी।

रंगों के साथ व्यंजन की परंपरा

फोटो साभार- प्रिंस कुमार

अगले दिन बड़ों की हिदायत रहती है कि दोपहर तक घर से बाहर नहीं निकलना है, क्योंकि उस वक्त कहीं से नाली या पंडोह का कीचड़ फेंका जा सकता था। दोपहर के बाद रंगों की बाल्टियां भर-भर के नौजवानों के जत्थे निकल पड़ते हैं।

हर घर के बाहर रुकते हैं और हर दरवाज़ें पर सूखे मेवे के साथ गुझिया, मालपूआ वगैरह रखा रहता है, जिसे चखकर जत्था आगे बढ़ जाता। जत्थे में और लोग जुड़ जाते हैं। धीरे-धीरे रंगों की जगह अबीर-गुलाल ले लेता है।

शाम ढलते-ढलते कम-से-कम दो-तीन ठिकानों पर फगुआ गाया जाता है। भांग और ठंडई का खास इंतज़ाम होता है। गाना-बजाना कम-से-कम 9 बजे रात तक चलता है। फिर सभी अपने-अपने घर को चले जाते हैं। जबकि अगला दिन होली की खुमारी उतारने में चला जाता है।

विदेशों के कार्निवल से कम नहीं है अपने गाँव की होली

गाँव की होली। फोटो साभार- प्रिंस कुमार

आज बैंगलोर में बैठे-बैठे मुझे लगता है कि गाँव या अपने शहर में होली का त्यौहार विदेशों के कार्निवल की तरह हुआ करता था, जिसमें दबे हुए जज़्बात और कुंठाएं फूटकर बाहर निकलती थीं।

गाँवों में रबी की फसल कटकर घर आने के बाद कई महीनों का सुकून रहता था और इस सुकून में साल भर में मन और तन पर जमा हुई गंदगी बाहर निकाल दी जाती थी।

बड़े शहर या महानगरों की होली अपने गाँव-शहर की तरह कतई नहीं है। जो होली हमारे गाँव-शहर के लिए देसी कार्निवल हुआ करती है, वह बड़े शहरों और महानगरों के लिए महज़ एक कैलेंडरी त्यौहार और हॉलीडे बनकर रह गया है।

आज जहां हमारे शहर और गाँव में होली की धूम मचाई जा रही है, वहीं हम हज़ारों किलोमीटर दूर बैंगलोर में बैठकर चारदीवारी के अंदर कंप्यूटर के आगे कीबोर्ड पर उंगलिया घिस लेते हैं।

सच तो यह है कि वक्त को काम की चक्की में पीस रहे हैं। हमारे घरों में पुआ-पूड़ी खीर बनाई जाती रही है, वहीं हम यहां इडली-डोसा खा रहे हैं। सोचिए होली पर घर की याद क्यों ना आएगी? 

पिछले वर्ष जब घर पर था तो दस दिन पहले से ही होली का रंग चढ़ जाता था। होली के दिन तो घड़ी की सुई जैसे 8 पर पहुंचती थी वैसे ही दोस्तों की टोली घर पर दस्तक दे चुकी होती थी।

अब तो बस घर की याद ही याद है। क्या वे दिन थे पूरा शरीर अबीर गुलाल से सराबोर था लेकिन आज अबीर गुलाल दूर-दूर तक कुछ नज़र ही नहीं आते हैं। बस होली पर घर की याद ही आती है।

होली पर दोस्तों की टोली के साथ घूमना डीजे की धुन पर थिरकना और तो और कुर्ता फाड़ होली का मज़ा ही कुछ और होता था। जब अपना फाड़ने आता था कोई उससे पहले ही खोलकर छिपा लेते थे। यह भी कारण है कि बस होली पर घर की याद आ रही है!

रंगों से क्या संदेश मिलता है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हमारे अंदर जो खुशी है, वही हमारी आत्मा का भी रंग है। होली को लेकर कई कविताएं हैं। वसंत का खुमार और कृष्ण का गोपियों के साथ होली खेलने की कहानियां प्रचलित हैं। यह भी संसार रंग भरा है।

प्रकृति की तरह ही रंगों का प्रभाव हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर पड़ता है। जैसे क्रोध का रंग लाल, ईर्ष्या का हरा, आनंद और जीवंतता का पीला और प्रेम का गुलाबी, विस्तार के लिए नीला, शांति के लिए सफेद और ज्ञान के लिए जामुनी रंग को जाना जाता है।

होली एक ऐसा त्यौहार है, जो हमारे सारे बंधनों को तोड़ता है और हमें एक कर देता है। इसलिए हम एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और कहते हैं आपका जीवन भी रंगों से भरा हो। होली का यही संदेश है। जीवन रंगों से भरपूर होना चाहिए, जैसे प्रकृति पूरे रंगों से भरी है।

सभी रंग अलग-अलग भावों को अभिव्यक्त करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति रंगों का एक फव्वारा है, जो अलग-अलग हो सकते हैं। उसका सम्मान किया जाना चाहिए और जो जैसा है, उसे वैसे ही अपनाना चाहिए। यदि सभी रंगों को मिला दें, तो वह काला बन जाता है।

मगर लाल, पीला, हरा आदि हर रंग का अपना अस्तित्व है और प्रत्येक का अपना प्रभाव है। इतने रंगों की तरह जीवन में भी एक व्यक्ति द्वारा कई भूमिकाएं निभाई जाती हैं। इन विभिन्न भूमिकाओं के बावजूद, व्यक्ति का आत्मस्वरूप एक ही है।

जब हम अपने आप के साथ होते हैं, तो हमारा जीवन रंगों से सराबोर होता है। प्राचीन भारत में यह नियम वर्णाश्रम कहलाता था, जिसका अर्थ था कि जो भी आपको भूमिका मिली है, उसमें से प्रत्येक की अपनी सीमा और मर्यादा है। यही होली की सीख है कि अपनी भूमिकाओं की सीमाओं में रहकर, प्रसन्न होकर पूरी तरह उसे निभाना।

जीवन रंगों से भरा होना चाहिए, ना कि उदासीन। हर रंग सफेद से ही निकला है और सभी रंग मिलाने पर काला रंग बनता है। इसी तरह आपका मन सफेद है और चेतना शुद्ध, शांत, खुश और ध्यानस्थ होती है। तब उस मनोस्थिति में रहकर भी आप कई रंग व भूमिकाएं निभा सकते हैं।

हमें ज़रूरत है अपनी चेतना में बार-बार जाने की। हमें अपनी भूमिका के बीच विश्राम करना है तभी हम प्रत्येक भूमिका के साथ न्याय कर पाएंगे।

उत्साह और प्रेम के रंगों से खिल उठने का नाम है होली

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आप जिस आनंद का अनुभव करते हैं, वह आपको स्वयं से ही प्राप्त होता है, जो आपको जकड़कर बैठा है, उसे आप छोड़ देते हैं और शांत होकर बैठ जाते हैं, तो ध्यान होता है। ध्यान में आपको गहरी नींद से ज़्यादा विश्राम मिलता है, क्योंकि आप सभी इच्छा से परे होते हैं।

यह मस्तिष्क को गहरी शीतलता देता है और आपके तंत्रिका तंत्र को पुष्ट करता है। उसे नव जीवन प्रदान करता है। हमारे गहरे विश्राम में एक ही बाधा है और वह है हमारी इच्छाएं। इच्छाओं का मतलब है तनाव। इसलिए कहा गया है कि बड़े उद्देश्य होने पर हम कम तनाव में रहते हैं। इसके लिए कोई क्या करे?

एक उपाय है, वो यह कि हर एक को अपनी इच्छाओं के प्रति सजग रहते हुए समर्पण करना चाहिए। इससे हमें कृपा प्राप्त करने में आसानी होती है। इच्छाएं यदि आपके पास हैं, तो कोई समस्या नहीं है लेकिन आपको इच्छाएं गुलाम बना लें तो समस्या गहरी होती है।

जब भी कोई इच्छा उठे, आप ध्यान से देखिए कि यह आपके लिए लाभदायक है या नहीं। इच्छा का बुद्धि से आकलन किया जाए, तो अच्छा है। ऐसा ना करने पर इच्छा कष्टकारी हो सकती है।

मन में उत्पन्न हुई इच्छा को जब आप भोले मन से दिव्यता को समर्पित कर देते हो तब आप मुक्त हो जाते हो और आपका जीवन एक उत्सव बन जाता है और जीवन में रंग भर जाते हैं। उत्सव के साथ पवित्रता जोड़ दी जाए तो वह पूर्ण हो जाता है।

केवल शरीर व मन ही उत्सव नहीं मनाते, बल्कि चेतना भी उत्सव मनाती है और जीवन रंगों से भर जाता है। होली के दिन हमारे जीवन को भी उत्साह और प्रेम के रंगों से खिल जाना चाहिए। हमारा चेहरा प्रसन्नता से चमकना चाहिए और हमारी आवाज़ में मधुरता की प्रतिध्वनि होनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि जीवन का रंग ऐसा ही होना चाहिए।

सबको प्रसन्न व रंगों से भरी होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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