जब मैं 12वीं कक्षा के में पढ़ता था उस समय भी कई प्रकार के संगठन चलते थे, जो हाथी के दांत जैसे थे। बताने के अलग और खाने के अलग। जेसे- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में हमेशा जाता था और वहां का अनुभव लेता था, क्योंकि मुझे संगठन में रहना अच्छा लगता था।
वहां पर कई प्रकार के लोग मिलते थे। जब मैं अपने साथ कई लड़कों को लेकर एक बार भोपाल गया, तब हमारे ही संगठन के एक व्यक्ति थे जिन्होंने मुझसे कहा कि तुम आने वाले समय में नेतृत्व करोगे।
मैं तुम्हें ऊपर के बड़े पदाधिकारियों से मिलाता हूं। जिनसे वह मेरी मुलाकात कराना चाहते थे, वहां ले तो गए मुझे वो मगर उस व्यक्ति ने एक बात पूछी कि आप कौन सी जाति के हो?
यह सुनकर मेरा दिमाग खिसकने लग गया। मेरे दिमाग में एक ही चीज़ आई कि एक तरफ से आप भाई साहब भाई साहब कहकर बोल रहे हो और दूसरी तरफ से जाति पूछ रहे हो!
यह सवाल मुझे सताता रहा फिर कुछ दिन बीतने के बाद मुझे पता चला कि मैं जिस संगठन के अंदर जुड़ा हुआ हूं, वे ही लोगों की बारात रोकते हैं। वे ही लोगों को मंदिर जाने से रोकते हैं और वे ही धार्मिक दंगे करवाते हैं।
मैंने तय कर लिया कि मुझे ऐसे गद्दार संगठनों में नहीं रहना है। उस दिन से मैंने उस संगठन में जाना ही बंद कर दिया, क्योंकि ये लोगों को गलत शिक्षा देते थे। जहां जातिवाद को बढ़ावा मिले और जहां बारात को रोकने का काम काम किया जाए, वहां ठहरने के कोई मायने नहीं हैं।
जीवन की एक घटना और सुनाता हूं। जब मैं स्कूल समय में भारतीय स्काउट एवं गाइड में जुड़ा हुआ था, तब हमें जो स्काउट एवं गाइड सिखाने वाले टीचर थे, नाम नहीं बताऊंगा मगर मेरी आंखों के सामने जिन गरीब बच्चों के अंदर काबिलियत थी उनको वह कहीं नहीं ले जाते थे।
जबकि जिन बच्चों के माँ-बाप पैसे वाले थे उनको वह हमेशा आगे करते थे। वह भी एक बहुत बड़ी घृणा की भावना थी उनके अंदर और जब तक यह चीज़ चलती रहेगी तब तक भारत कभी विश्व गुरु नहीं बन सकता है।