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“अपने बेटों के प्यार को नहीं स्वीकारने वाली माओं के नाम मेरा पत्र”

पार्ट में लड़का और लड़कीपार्ट में लड़का और लड़की

पार्ट में लड़का और लड़की

जब मैंने प्रेम प्रस्ताव के लिए हामी भरी थी, तब मुझे नहीं पता था कि सरनेम एक ना होना इतनी बड़ी समस्या बन जाएगी। हां मोटा-मोटी फिल्मों से जानकारी मिल गई थी मगर वो कहते हैं ना “जो तन लागे सो तन जाने।”

फिर एक दिन खुद पर आ ही गई बात, शुरुआत मेरे रंग-रूप से हुई और मेरी जाति पर आकर रुक गई। अपने घावों पर मरहम लगा लिया था मैंने मगर टीवी पर आ रहे एक सीरियल ने वापस उन सूखे घावों को फिर से हरा कर दिया।

अन्दर ना एकदम ज्वार सा उठ रहा है। मन के अन्दर चल रही उसी कौतूहल को पत्र में लिख रही हूं। यह पत्र उन सभी महिलाओं के लिए है जिन्होनें अपने बेटों के प्यार को स्वीकार नहीं किया है।

तुम्हारा प्यार में हार जाना तुम्हारी नहीं, बल्कि तुम्हारे आस-पास मौजूद महिलाओं की असफलता है। हार है उन महिलाओं की जिन्होनें समझाया तुम्हें कि पुरूष बना है सिर्फ प्यार पाने के लिए। जिसने सिखाया तुम्हें कि पुरूष प्यार सहूलियतों के हिसाब से करता है।

असफलता है उन महिलाओं की जिन्होनें आधी नींद में भी उठकर बुझाई है तुम्हारी कुछ लिक्विड पीने की प्यास। वहीं बदले में जिनके दर्द से फट रहे बाजुओं पर मरहम लगाने में तुम्हारा मर्द होना आड़े आ गया।

अच्छा, सोचा है कभी क्या मिलता है उन्हें बाथरूम में छोड़े मैले-कुचैले कपड़े धोकर, या घंटो धीमी आंच में हौले-हौले खाना पकाकर?

वो प्रेम, समर्पण है जो हर बार भारी पड़ता है तुम्हारी तीखी बातों पर, उनके मोटे हो जाने पर दिए तुम्हारे तानों पर, उंची आवाज पर और कभी-कभी गालों पर पड़े जोरदार झापड़ पर भी। इस भावना को तुम अपनी बपौती समझ बैठे, सोच लिया कि बस यही होता है प्रेम, जो इन मापदंडो से होकर ही गुजरता है।

जिसमें एक लड़की का तीनों टाइम भर थरिया खाना परोसना ज़रूरी है। जिसमें ज़रूरी है उसका 24X7 विश्व सुंदरी की तरह तैयार रहना। ज़रूरी है उसका तुम्हारे हर हुकुम पर जी हुजूरी करना।

दोष तो उन महिलाओं का है जो चेहरे का रंग देखकर किसी को “छी! कैसी दिखती है तक बोल देती हैं।” तुमने सोचा नहीं कि यूं तुम एक महिला को बना रही हो केवल सज्जा का सामान। तुम्हारे अनुसार उसका सर्टिफिकेट, उसका आत्मविश्वास किसी काम नहीं आएगा।

दोष उन महिलाओं का है जिन्होंने प्रेम में सिर्फ पाना सिखाया, यह बताना भूल गईं कि प्रेम का मतलब बांटना होता है। प्रेम का मतलब होता है सम्मान करना एक-दूसरे की कमियों और अच्छाईयों का बराबरी से। यह समझाना कि भाव मायने रखते हैं और वहीं अगर सारे भाव मिल गए तो आखिर वो सरनेम में क्या रखा था, जो तुमने उसे बाकी सारी चीज़ों से ज़्यादा तवज्जों दे दी?

वो राजकुमार है तुम्हारा मानती हूं फिर क्यों नहीं सिखाया तुमने उसे अपनी ज़िन्दगी में आने वाली लड़की को राजकुमारियों-सा रखना। खुद के साथ हुई नाइंसाफी को यूं आगे पहुंचाना सही नहीं है।

बाकि अब तो पेड़ बढ़ गया, सनसनाया भी है। तुम्हारे सर पटकने से भी रुकेगा नहीं। आज खुश हो लो क्योंकि आंच तुम्हे नहीं लगी मगर याद रखना असफल वो अकेला नहीं उससे जुड़ी वो सभी महिलाएं हुई हैं जिन्होंने उसे बताया कि असली मर्द प्यार में सिर्फ पाता है।

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