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“होली के बहाने लड़कियों को गलत तरीके से स्पर्श करना कब बंद करेगा यह समाज?”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

जब भी होली का नाम आता है, मानो चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल उठती है। लोगों के घरों में ना जाने कितने दिनों पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। कहीं गुजिया तो कहीं पापड़ बनाने की होड़ लगी रहती है।

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं लेकिन साल दर साल ना जाने क्यों यह त्यौहार फूहड़ता का रूप लेता जा रहा है। माना जाता है कि यह त्यौहार खुशियों का प्रतीक है।

लेकिन वो तो तब माना जाए जब इसे नैतिकता के साथ मनाया जाए। होली में कई बार लोग गलत तरीके से लड़कियों को स्पर्श करने का प्रयास करते हैं। यही नहीं, बल्कि उनके अंगों जैसे स्तनों, कमर एवं जांघ तक को छू लेने की कोशिश रहती है।

होली के नाम पर समाज को गंदा किया जा रहा है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

कभी गालों पर रंग लगाने के बहाने तेज़ी से गाल रगड़ देना। गले मिलने के बहाने लड़कियों को गलत तरीके से स्पर्श करना। शराब पीकर सड़को पर गाली -लौच करना। ठंडाई में भांग मिलाकर पीना फिर इधर से उधर झूमना, लोगों के साथ मारपीट करना और गाली देने जैसी चीजें तो आम हो गई हैं।

इस तरह से आप होली मनाकर एक निम्न तरह की गंदगी से समाज को गंदा कर रहे हैं। जितना पैसा आप इन सब चीज़ों में सिर्फ कुछ समय के आनंद के लिए बर्बाद कर देते हैं, अगर हर कोई सड़क किनारे बैठे बच्चों के बीच उस पैसे का कुछ भी हिस्सा दे दे, तो किसी भी एक परिवार की होली बेरंग नहीं रहेगी।

कीचड़ तक का इस्तेमाल करने से परहेज़ नहीं करते लोग

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

होली में अक्सर लोग इतना ज़्यादा व्याप्त हो जाते हैं कि जब उनके आस पास रंग नहीं होता है, तो वे होली खेलने के लिए कीचड़ तक का इस्तेमाल करने लगते हैं। गंदी नालियों तक में एक-दूसरे को डूबा देते हैं।

यही नहीं, गहरे हरे रंग का इस्तेमाल बहुत हद तक किया जाता है, जिससे कि सामने वाले को एक बार में ही भूत बना दिया जाए और वो रंग को कई दिनों तक छुड़ा ना पाए।

लेकिन शायद इन्हें यह जानकारी नहीं है कि इन सभी रंगो में कितना भारी केमिकल मिलाया जाता है। इससे कितनी बीमारियां हो सकती हैं और चेहरे का जो बुरा हाल हो वो अलग। आप गुलाल से और फूलों से भी होली खेल सकते हैं। कितना सादगी भरा होता है ये।

लड़कियां समाज के डर से खामोश रह जाती हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सड़कों पर निकलकर गुंडागर्दी करना, लड़कियों पर फब्तियां कसना, उनका दुपट्टा घसीटना और गलत तरीके से उनके अंगों को छूने का प्रयत्न करने जैसी हरकतों से कई बार लड़कियां सहम तक जाती हैं लेकिन सिर्फ समाज के डर के कारण वे किसी से कुछ बोल भी नहीं पाती हैं, क्योंकि समाज उनको समझेगा कम और ताने ज़्यादा देगा।

क्या आप इन सारे कृत्यों को ही त्यौहार की संज्ञा देते हैं? क्या यही तरीका आप चुनते हैं खुशियां मनाने के लिए?

तो मैं आपको बता दूं आप बेहद घटिया तरह से त्यौहार को दूषित कर रहे हैं, क्योंकि किसी भी इंसान के साथ गलत तरीके का व्यवहार करके आप खुशियां तो नहीं बांट सकते हैं।

त्यौहार शालीनता का प्रतीक माने जाते हैं। इसको शांत तरीके से भी मनाया जा सकता है। त्यौहारों का मतलब ही है हर एक के साथ मिलकर खुशियां बांटना। तो हमारी भी कोशिश होनी चाहिए कि किसी को भी हमारी वजह से कोई असुविधा ना हो सके।

कोई भी हमारी वजह से दुःखी ना हो सके। रंगों का त्यौहार है तो हर किसी के जीवन में रंग भरने का प्रयास होना चाहिए। इसलिए लोगों के जीवन में रंग भरिए ना कि उनके जीवन को अपने गलत कार्यों की वजह से दूषित करिए और सबसे ज़रूरी बात यह कि होली के नाम पर लड़कियों को गलत तरीके से छूना बंद करना होगा।


नोट: आंचल शुक्ला Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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