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“मेरे जन्म के वक्त मेरी माँ पर अबॉर्शन का दबाव बनाया जा रहा था”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

बचपन से ही हम अपने समाज में किसी ना किसी प्रकार का भेदभाव होते ज़रूर देखते हैं। फिर चाहे वह जाति हो, रंग भेद हो या फिर लिंग भेद हो। मैंने भी अपने आसपास इस तरह के भेदभाव होते देखे हैं। जहां लोग बातें तो बहुत हवा में करते हैं लेकिन जब खुद पर आती है, तो पैमाने बदल जाते हैं।

हम चाहते हैं कि हम अमेरिका जैसे देशों से बराबरी करें लेकिन जब बदलाव लाने की बात होती है तो कदम पीछे कर लेते हैं। आज भी लोग सिर्फ लड़के की चाह में ना जाने कितनी लड़कियों की जान ले लेते हैं, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ लड़का चाहिए।

घर में सभी मेरे जन्म के खिलाफ थे

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

चलिए मैं आपको खुद की ही कहानी बनाती हूं। बचपन से ही एक शिक्षित और सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखती हूं। जब मैं बड़ी हुई और मुझमें समझदारी आई, तो मुझे अपनी मम्मी से ही कुछ बातें पता चलीं। जो इससे पहले मुझे किसी ने नहीं बताई थी।

एक दिन मम्मी ने बताया कि जब तुम्हारा जन्म होने वाला था, तब कोई नहीं चाहता था कि लड़की हो। सब तुम्हारे जन्म के विरोध में थे लेकिन बस तुम्हारे पापा ने ही मेरा शुरू से आखिरी तक साथ दिया। वरना बाबा और सभी लोग चाहते थे कि मेरा अबॉर्शन करा दिया जाए।

माँ ने बताया कि लोग तरह-तरह की बातें करते थे। जैसे- “आखिर लड़की हुई तो ज़िम्मेदारी बढ़ जाएगी और कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो अलग।”

अगर पापा ना होते, तो मेरी माँ का अबॉर्शन करा दिया जाता

आंचल शुक्ला।

माँ ने मुझे बताया, “बाबा ने तुम्हारे पापा से तो साफ बोल दिया था कि अपने बल पर इतना बड़ा फैसला लेना और मुझसे किसी भी तरह की मदद की उम्मीद मत रखना। पापा को तो वैसे भी बेटियों की बहुत चाह थी। उन्हें तो बेटी चाहिए ही थी फिर चाहे कोई साथ खड़ा हो या ना हो।”

पापा ने भी बोल दिया कि मुझे किसी से किसी भी तरीके की मदद नहीं चाहिए। मेरी बेटी सिर्फ और सिर्फ मेरी ज़िम्मेदारी होगी। इसलिए इसके जन्म से किसी को अब कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

आज मैं खुद को बेहद खुशनसीब मानती हूं कि मुझे ऐसे पिता मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। नहीं तो मैंने आज तक लड़कों की चाह में ना जाने कितनी लड़कियों की जान लेते हुए सुना है। कहते हैं ना कि हर एक पुरुष एक समान नहीं होता। मेरे जैसे पिता अगर हर एक घर में होने लगें तो कोई भी लड़की कभी खुद को कमज़ोर नहीं समझेगी।

और कम-से-कम हर किसी के घर में भ्रूण हत्या तो नहीं ही देखी जाएगी। अगर मेरे पिता ने मेरे बाबा की बात मानी होती तो शायद मैं आज इस दुनिया में होती ही नहीं। आज भी सोसाइटी कितनी ही मॉडर्न क्यों ना हो गई हो लेकिन इस सोच को लेकर अभी भी लोग पिछड़े हुए ही हैं। अस्पतालों में जाकर गर्भपात करने के लिए लोग डॉक्टरों को मोटी रकम थमाते हैं।

उनको बहु चाहिए, माँ चाहिए, बहन चाहिए लेकिन बस बेटी नहीं चाहिए। इससे ही एक बात याद आई, जो मेरे पापा अक्सर कहा करते हैं, “हर एक के घर भगवान बेटी नहीं देता। वो नसीब वाले होते हैं जिनके घर भगवान बेटी देता है, क्योंकि जितना प्यार और सम्मान एक बेटी दे सकती है, उतना शायद बेटा कभी नहीं दे सकता है।”

इसलिए सिर्फ बेटियाों के लिए नई योजनाएं लाने मात्र से काम नहीं चलेगा। बेटियों के अस्तित्व की देखभाल भी करनी होगी। उन्हें जीवन देना होगा। नहीं तो ये सारी की सारी योजनाएं पन्नो में ही कैद होकर रह जाएंगी।

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