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#MyPeriodStory: क्या हम सभी लड़कियों की एक जैसी होती है?

 

       वो मेरी छठी की कक्षा थी। एक दिन में क्लास में मौजूद नहीं थी। अगले दिन जब में अपने सहेलियोंसे मिली, तो उनका बर्ताव कुछ अजीब था। जैसे कल उनके बीच कुछ गहन बात हुई हो, और वो आज भी उसी बात को लेकर विचार में हो। मेरे लाख पूछने के बाद उन्होंने एक कोड वर्ड यूज किया। कहां की हम ‘उसके’ बारे में बात कर रहे है, और वे हसने लगी। मुझे तो फिर भी कुछ समझ नहीं आया। बाद में मेरी सबसे करीबी दोस्त ने मुझे बताया कि, “हम लड़कियों को होने वाली कुछ खास चीजों के बारे में बोल रहे थे। और हम सभी को उससे गुजरना पड़ेगा।”

मुझे तो ये सब बड़ा पेचीदा लगा। सोचने लगी के न जाने ये क्या होगा? समय चलते पीरियड्स के बारे में कुछ चीजें समझ में आने लगीं। स्कूल में भी हर बारी awareness campaign हुआ करता था। उसमें हमे सैनिटरी नैपकिन भी दिए जाते थे। हांलाकि उस समय मुझे उनकी जरूरत नहीं पड़ी। अब ये भी लड़कियों को होने वाली ‘अजीब’ चीजों में से एक हैं। किसी को बचपन ख़तम होने से पहले ही पीरियड्स आ जाते है। तो किसी को जवानी में आने के बाद भी क्या में bleed कर सकती हूं जैसे सवाल सताते है। 

      घर में माॅं मन से लिबरल लगती थी। लेकिन फिर भी डराई गई बातों की वो भी शिकार हो गई थीं। हमारे गाव में भगवान को अभिषेक करने का अवसर था। और माॅं ने उसे मना कर दिया। मेरे पूछने के बावजूद उसने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दिन बाद जब वो ये समझी के में सब कुछ जानती हूं ,तो कहने लगी यही तो बात थी बेटा, जिस वजह से मैने अभिषेक करने से इंकार कर दिया। ये सुनकर न जाने क्यों मुझे घुस्सा आया। मुझे किसी ने कुछ भी नहीं समझाया था। फिर भी मेरा मानना था के periods और भगवान की पूजा का भला कैसे कोई वास्ता हो सकता है? ये तो मतलब बिल्कुल ही हमारी रोज की दिनचर्या जैसा है। बस ये दिनचर्या महीने में कुछ ही दिन चलती हैं। उस वक़्त माॅं ने मेरी एक नहीं मानी। लेकिन जैसे वो मेरे खयालात समझने लगी वैसे वो भी पाबन्दियां तोड़ने लगीं। 

      धूपमें जो पापड़ बेले जाते है। वहां भी ऐसी महिला या लड़की को नहीं आने दिया जाता जो मासिक धर्म में हो। लेकिन अब तो माॅं सवाई बन चुकी थी। ना तो वो किसी को बताती, और ना ही खुद इन सबसे दूर रहती।

     जैसे ही में बड़ी हो गई। मुझे पीरियड्स से जुड़ी व्याधियों के बारे में भी पता चलने लगा। PCOD इ. की वजह से लड़कियों के बढ़ते या घटते वजन की समस्याएं समझ में आने लगी।  Periods में सिर्फ सैनिटरी नैपकिन नहीं, बल्कि menstrual cups भी इस्तेमाल होते है। Napkins पर्यावरण के लिए भी हानिकारक साबित हुए है। हालांकि cups का इस्तेमाल सीखना चाहिए और फिर उसे यूज़ किया जाए। ये सब बाते बोलने को आसान लगती है, जब हम हमारे घर पे या घर जैसे ही किसी कंफर्ट झोन में हो। लेकिन जब भी कोई  औरत अपने इसी कंफर्ट झोन से बाहर निकलती है, तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। औरत अगर मासिक धर्म में ना हो फिर भी उसके ‘राईट टू पी’ का उल्लंघन होता है। ऐसे में पीरियड्स में घर से बाहर जाना हो, तो उसे सबसे पहले अच्छे टॉयलेट, और उसमें एक डस्टबिन कि खोज होती है।

इन सब में उसे खुद को संभालना है, वो जैसे सब को संवारती आई है, वैसे खुद के मूड को संवारना है। हैल्थ का ख्याल रखना है। आराम करना है।

     हमारे समाज ने बहुत तरक्की कर ली है। औरतों के इस विषय को कई लोग गम्भीरता से लेते हैं। जो नहीं लेते है, उनकी सोच को हम एक हद से ज्यादा नहीं बदल सकते। लेकिन कोशिश करना हमारा काम हैं। महिला को सम्मान देते देते उसके अधिकारों की भी पुष्टि करना एक आदर्श समाज की जरूरत है।

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