Site icon Youth Ki Awaaz

My Period Story: पीरियड्स की बात

(My  Period Story)

किसी भी लड़की को अगर पीरियड्स की बात कही जाये तो उसके मन  में  उस शब्द का जो पहला अर्थ आएगा वो कक्षा वाला पीरियड्स नहीं होगा, वो होगा उसका अपना पीरियड अर्थात माहवारी | आनी  भी चाहिए, क्योकि  वो हम ही है जिसने अपने जीवन के लगभग  तीस साल के हर महीने व हर महीने के पांच दिन इस पीड़ा में गुजरे हैं | न जाने कितने लीटर खून यूँ ही गवारा किया है | अपने जीवन की न जाने कितनी योजनाओ को सिर्फ इनके इर्द गिर्द रख बनाया है | ये हो तो परेशानी और ना हो तो परेशानी | मतलब किसी भी  तरह चैन नहीं है हम औरतों  को |हालाँकि इसके परिचय की जरूरत थी नहीं फिर  भी  मैंने दे दिआ |  अभी भी  इस दुनिया में ना जाने ऐसे कितने ही मर्द पड़े है जो  इस जमाने  में भी  इसका महत्व ना समझ पाए है या समझ के भी बच्चे  बने रहने का ढ़ोंग रचते हैं | तो अब बात करने हैं  मेरी कहानी की | बचपन से ही गोल मटोल होने के कारण मेरे पीरियड्स मेरी बाकी सहेलिओ से पहले  आ गये  अब गोल मटोल होना मेरी गलती  तो थी नहीं परन्तु फिर भी  मुझे  घर की महिलाओं  के द्वारा दिलाई गयी शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ा | तब लगता  था शायद कही मेरी ही गलती है | ये नए बदलाव क्या काम थे मेरे लिए जो मेरी माँ को अब एक और चिंता सताने लगी | पीरियड्स पे होने वाले खर्च अर्थात पैड्स के खर्चो की | घर में हम दो बेटियाँ थी और हम दोनों  ने ही कपडे  के इस्तेमाल से मना  कर दिया था | अच्छे पैड्स लम्बे चलते थे परन्तु महंगे मिलते थे और दिन भर स्कूल व अन्य गतिविधिओ को ध्यान म रख कर ये हमें ज्यादा सुविधाजनक महसूस होते थे उन्नीसवीं सदी की लड़कियाँ| इससे ज्यादा टेम्पोन  वैगरह  के बारे में हमें पता ही नहीं था | और एक बार फिर घर के बढ़ते खर्चो का जिम्मेदार मुझे बनाया गया और और इसकी शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी |ये सारी  परेशानिया क्या काम थी की अचानक उम्र के बिसवे  पड़ाव पर मुझे यह पता चला की मुझे PCOS है|  कॉलेज के दिनों में मस्त जीवन जीते हुए धीरे धीरे यह एहसास होने लगा की मेरी माहवारी के दिन बढ़ते ही जा रहे है|  हद तो तब हो गयी जब ६० दिनों तक मुझे मेरे पीरियड्स आये ही नहीं|  अब तो इस बात का भी डर सताने लगा की अगर यह बात माँ को बतायू  तो वो मुझे शक की निगाहो से देखेगी|  इस परेशानी की वजह से मेरे चेहरे पर बाल आने लगे| सीने और पीठ पर ढेर सारे मुहासे हो गये और तब जाकर डॉक्टर को दिखने की बा री आयी और मुझे PCOS  होने की पुष्टि हुई|   पहले कम लफड़े थे  अब  की लड़की जात  और माहवारी से संभंधित बीमारी, शादी कैसे होगी |  और जब दवा के नाम पर गर्भनिरोधक गोलियां दिए जाने पर  हंगामा हुआ वह  मेरे बर्दाश्त की हद   थी| मैं अपनी माँ को तुरंत  स्त्री रोग  विशेषज्ञ के पास ले  गयी|  डॉक्टर ने मेरी माँ और मुझे सारी बातें इत्मीनान से समझे और तब जेक मेरी माँ को थोड़ा सुखों आया | पर जो चीज़े मुझे परेशान  करती है वो यह है की  जो  प्राकृतिक है उसके लिए हम औरतो को शर्मिंदा क्यों होना पड़ता है,  यह मेरी समझ के बहार है | पर अफ़सोस सिर्फ इस बात का रहा की जिस कदम को मुझे   बहुत पहले उठा लेना चाहिए था उसको समाझने  में मैंने खुद  इन मिथ से निकलने में देर की  |

Exit mobile version