Site icon Youth Ki Awaaz

आरक्षण का लाभ लेने वाले लोग अपने समुदाय के बारे में क्या सोचते हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

शराब के ठेकों पर आप कभी गौर करेंगे तो एक बात कॉमन मिलेगी कि अधिक्तर शराब के ठेके एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक वर्गो की कॉलोनियो के पास ही स्थापित किए जाते हैं, जिन पर गरीब, मज़दूरों की लाइन लगती है।

लाइन लगाने वाले ये गरीब अपनी मज़दूरी का 50% से ज़्यादा शराब के सेवन पर खर्च कर देते हैं। होली के दिन मेरे घर के सामने होली खेलकर आ रहे एक बंदे की शराब की बोतल फुट गई, उसे इतना दुःख हो रहा था जैसे कि उसका खज़ाना लुट गया हो‌ लेकिन क्यों? इसलिए कि वास्तव में इसका सेवन करके उसे-

कारण मनुवादी व्यवस्था की मज़बूती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं कल इस विषय पर ही चर्चा कर रहा था कि एससी-एसटी एरिया में जो भी अम्बेडकरवादी व्यवस्था को अपनाकर मिशन के साथ जुड़ा उनका व उनके जेनेरेशन में एक नई सोच विकसित हो गई। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने शराब से दूरी बनाई और कभी ना कभी सफलता अर्जित की।

इसके अलावा जो मिशन से नहीं जुड़े लेकिन सफल हैं। उनमें भी कहीं ना कहीं अम्बेडकरवादी विचारधारा का प्रभाव है, क्योंकि समाज में मान्यवर कांशीराम जी के प्रयासों से 1975 के बाद ही एक ऐसे अम्बेडकरवादी माहौल का निर्माण हुआ, जिससे वे सरकारी नौकरी के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे व्यापार में भी उपलब्धि हासिल कर रहे हैं।

यदि ऐसा नहीं होता तो लोग सुबह सट्टे का नम्बर पूछकर दिन की शुरुआत करते और नम्बर नहीं आने पर दुःख में ठेके पर पहुंचने का क्रम शुरू होता। उसके बाद पूरा दिन सट्टे में कौन सा नम्बर आ सकता है की उधेड़बुन दारु की आखरी बूंद पर ही खत्म होती।

वास्तविकता क्या है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एससी-एसटी समाज पुरुष प्रभुत्व प्रधान है। उनकी पंचायतें भी इसी प्रकार की हैं, इसलिए सामाजिक तौर पर इस बुराई से निजात पाने के लिए कोई जनजागरुकता पर मंथन नहीं करता है।

हां, किसी महिला के चरित्र से सम्बन्धित कोई मामला हो जिसमें मज़े मिल रहे हों, उस बहस में मज़दूरी छोडकर भी पुरुष शामिल होंगे। यनी बस मज़ा आना चाहिए।

मज़े के कारण

इसी समाज के प्रतिशत को दिखाकर सरकारी नौकरी मांगने वाला बाद में इस समाज की तरफ पलटकर देखता तक नहीं है। नौकरी मिलने के बाद इन गरीब परिवारों के प्रतिशत को दिखाकर कहता है कि अभी समाज गरीब है, इसलिए प्रमोशन में आरक्षण मुझे चाहिए।

ऐसा क्यों?

नौकरी व प्रमोशन में आरक्षण मिलने के बाद उसकी ज़िम्मेदारी तय नहीं है। कोई उससे नहीं पूछेगा कि जिस समाज की दुर्दशा को दिखाकर तुमने आरक्षण व प्रमोशन में आरक्षण लेकर नौकरी ली है, उस समाज के सुधार के लिए उसने खुद क्या किया है?

Exit mobile version