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“काश PM मोदी महिला दिवस के रोज़ महिलाओं के लिए सही नीतियां बना पाते”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

2 मार्च को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर एक घोषणा की है। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि वह आने वाले रविवार को सोशल मीडिया छोड़ने का विचार बना रहे हैं, जिसे सुनकर देश की मीडिया के साथ साथ-साथ राजनीतिक दलों के नेता व आम जनता के लोग चकित हो गए थे। 

महिलाओं के नाम पीएम के सोशल मीडिया अकाउंट्स

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

तमाम लोगों के ज़हन में यह सवाल उठने लगे कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में जिस सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई, उसे कैसे छोड़ा जा सकता है? प्रधानमंत्री के ट्वीट के उपरांत देश मे हलचल मच गई।

अगले ही दिन पीएम ने ट्वीट किया कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के सम्मान में उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स को महिलाओं द्वारा संचालित किया जाएगा। ये वे महिलाएं होंगी जिन्होंने अपने क्षेत्र में कार्य करते हुए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।

दोनों ट्वीट एक ही दिन किए जा सकते थे

पीएम मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

वैसे ये दोनों ट्वीट प्रधानमंत्री एक ही दिन में एक साथ कर सकते थे मगर मोदी तो मोदी हैं, जिन्हें यह पता है कि मीडिया व अन्य लोगों को कैसे व्यस्त रखना है।

मैं यहां पर प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया पर महिलाओं को सम्मान दिए जाने संबंधित निर्णय की सराहना करता हूं। समाज हित में प्रधानमंत्री जब कोई भी सकारात्मक निर्णय लेते हैं, तब हमें उसका स्वागत करना चाहिए। (मैं यहां प्रधानमंत्री के ऐसा करने के पीछे के उद्देश्य की बात नहीं करना चाहता हूं।) 

मेरा यह मानना है कि ऐसा करने से ज़मीनी स्तर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रधानमंत्री द्वारा महिलाओं का सम्मान करते हुए उक्त कदम उठाया जाना स्वागत योग्य है मगर कुछ प्रश्न हैं, जो महिलाओं के संबंध में हमारे मस्तिष्क में आते हैं।

क्या ऐसा करने से महिलाओं की वास्तविक समस्याओं पर कोई प्रभाव पड़ेगा?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

क्या प्रधानमंत्री महिलाओं को एक सुरक्षित देश, समय पर न्याय, बेहतर स्वास्थ्य, समान हक और अधिकार दिला पाएंगे? आज़ादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी उन्हें वे तमाम अधिकार नहीं मिले, जो उन्हें मिलने चाहिए थे।

आवश्यक यह है कि देश के प्रधानमंत्री को ये हालात बदलने के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहिए। उनके द्वारा सही नीतियां बनानी चाहिए, लोगों की मानसिकता बदलने की कोशिश ज़मीनी स्तर पर करनी चाहिए, सिस्टम में बदलाव लाने चाहिए। परन्तु दुःखद है कि गत 5 वर्षों में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। ऐसे कोई भी कार्य होते हुए नहीं देखे गए हैं, जिससे महिलाओं की स्थिति में बड़ा बदलाव लाया जा सके।

क्या’ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाया है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

मै यहां प्रधानमंत्री की 2 योजनाओं का ज़िक्र करना चाहूंगा जिनमें उज्ज्वला योजना और स्वच्छ भारत अभियान प्रमुख है। इन योजनाओं का असर ग्रामीण महिलाओं के ऊपर बड़े स्तर पर देखने को मिला है। उनकी परेशानियां कुछ हद तक कम होने में मदद मिली है।

मुझे यह लगता है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का जो प्रभाव समाज के लोगों में होना चाहिए था, वह उस स्तर तक सफल होता दिखाई नहीं दिया है।

तीन तलाक का कानून प्रधानमंत्री द्वारा लाया जाना अत्यंत सराहनीय कदम है मगर उक्त कानून की आड़ में जो राजनीति की गई है, वह अत्यंत दुःखद है, जिसका ज़िक्र मैं यहां नहीं करना चाहता हूं।

महिलाओं के संदर्भ में देश के प्रधानमंत्री से सवालों की लंबी फेहरिस्त

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

ऐसा क्यों हुआ कि निर्भया फंड में से मात्र 20% फंड का ही उपयोग हुआ? महिला सुरक्षा के लिए निर्भया फंड आवंटित किया जाता है, जो कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों को देती है। क्या केंद्र सरकार की ये ज़िम्मेदारी नहीं थी कि इस फंड को उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकारों के साथ बातचीत की जाए?

ध्यान इस ओर दिया जाए कि जो सरकार निर्भया फंड का प्रयोग नहीं कर रही है, उन सरकारों को त्वरित रूप से उक्त फंड के प्रयोग की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। महाराष्ट्र जैसे राज्य में जब पिछले 5 वर्षों से बीजेपी की सत्ता थी, फिर भी निर्भया फंड का 1 रुपया भी प्रयोग में नहीं लाया गया, आखिर क्यों?

क्या आपने ऐसे लोगों को समझाने का प्रयास किया है, जो इंटरनेट व सोशल मीडिया पर महिलाओं को अपशब्द कहते हैं, बलात्कार की धमकियां देते हैं और आपके विचारों से असहमति रखने वाली महिला पत्रकारों को अपमानित करते हैं। इतना ही नहीं, वे उनकी निजी ज़िंदगी पर सवाल उठाते हैं। प्रश्न उठता है कि ऐसा करने वाले लोगों के ऊपर सरकार द्वारा क्यों कोई कार्रवाई नहीं की गई।

मुझे प्रधानमंत्री से बहुत उम्मीदें हैं

मैं यह प्रश्न प्रधानमंत्री से इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि मुझे उनसे उम्मीदें थीं और आज भी हैं। गत 5 वर्षों के उनके कार्यकाल में हमारी उम्मीद के मुताबिक महिलाओं की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।

प्रधानमंत्री के इस नवीन कार्यकाल में महिलाओं के वर्तमान हालात में सुधार हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएंगे, हम ऐसी आशा करते हैं। मुझे विश्वास है कि जो प्रश्न मेरे द्वारा उठाए गए हैं, उनका उत्तर मुझे प्राप्त हो सकेगा। उम्मीद करता हूं कि महिला दिवस पर महिलाओं के नाम सोशल मीडिया अकाउंट्स ना समर्पित कर काश वो उनके लिए हितकारी नीतियां पना पाते।

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