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“प्रधानमंत्री को सुनकर मैंने उनमें एक अभिभावक की झलक को महसूस किया”

मोदी

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चिड़ियों का चहचहाना वही है, सूरज भी वही है। हम सब रोज़ की तरह ही जगे हैं। बस बदला इतना है कि हम सब मानवता को बचाने के लिए एक जंग जैसी स्थिति में अपने घरों में ही रहने के लिए जगे, उठे और खड़े हुए हैं।

जब प्रधानमंत्री ने देशवासियों को संबोधित किया

रात के 8 बजे जब से प्रधानमंत्री नें देश को सम्बोधित करने की बात कही थी, सब घड़ी पर टकटकी लगाए बैठे थे। 8 बजते ही प्रधानमंत्री का सम्बोन्धन शुरू होता है। सम्बोधन में एक अध्यापक की तरह अपने देश के लोगों को सम्बोधित करते हुए जब मोदी जी कहते हैं कि देश एक बहुत बड़ा निर्णय करने जा रहा है, लोगों को नोटबन्दी की याद आ जाती है।

रात 12 बजे से 21 दिन तक देश लॉकडाउन की घोषणा के साथ पीएम बहुत सरल शब्दों में बहुत आकर्षक बातें बताते व निवेदन करते नज़र आते हैं।

आप प्रधानमंत्री की ज़ुबान के भारीपन को महसूस कीजिए

मुझे विश्वास है आपने प्रधानमंत्री का पूरा सम्बोधन सुना होगा। अगर नहीं सुना हो तो यूट्यूब पर सुन लीजिए। हाथ जोड़कर बोल रहे व्यक्ति के शब्दों के भारीपन को महसूस करिए। एक बेजोड़ वक्ता के शब्दों के लड़खड़ाहट को, जो शायद ही इससे पहले हम सबने कभी देखा हो, उसको भांपिए।

देश के सबसे बड़े लोकतंत्र का मुखिया इन भारी और भावुक शब्दों से हम सब से वोट नहीं मांग रहा था। हम सबकी ज़िंदगी के लिए हम सबको आगाह कर रहा था। यकीन है हम सब राजनीतिक, व्यक्तिगत रुचि और विचारधारा से ऊपर उठकर सामुहिक और देशहित में उनके निवेदन को स्वीकार करेंगे।

लॉकडाउन की घोषणा के बाद लोगों में अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भय का माहौल बन गया

यद्यपि उनकी लॉकडाउन की घोषणा के बाद लोगों में थोड़ी अफरा-तफरी मचती है। लोग अनिवार्य चीज़ों के लिए दुकानों पर रात में ही पहुंच जाते हैं। उन्हें आशंका है कि शायद यह सब भी उपलब्ध ना रहे।

लेकिन सरकार ने बार-बार अनिवार्य सेवाओं को जारी रखने की बात की है। अतः हमें चीज़ों को इकठ्ठा नहीं करना है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को छूट दी गई है। इसलिए हमें डरने या घबड़ाने की ज़रूरत नहीं है।

यदि संभव हो तो अपने पड़ोस के गरीबों का भी ख्याल रखिए

हम सबके पड़ोस में ऐसे भी गरीब लोग हो सकते हैं जिनकी जीविका उनकी प्रतिदिन की कमाई से चलती है। इन 21 दिनों में उनके सामने रोटी का संकट आ सकता है। यदि ईश्वर ने आपको उस लायक बनाया है तो उनका भी ख्याल रखना हमारा नैतिक दायित्व बन जाता है।

अपनी प्रेरणा के लिए हमें इस दोहे का स्मरण करना चाहिए ताकि कोई गरीब इस संकट के समय भूखा ना सोए।

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए।

यह समय सहयोग और त्याग का है। इसी से हम इस दौर से बाहर निकलेंगे। यकीन है हम लड़ेंगे और जीतेंगे।

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