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“रामायण के पुन: प्रसारण का मकसद वर्किंग क्लास में वर्ग चेतना को कुंद करना है”

कोरोना संकट के वक्त मोदी सरकार का रामायण प्रसारित करने का फैसला वर्किंग क्लास के बीच वर्ग चेतना पनपने की संभावना को बाईपास करना है। मेरी अपनी समझ में बहुत संभव है कि कोरोना संकट को झेलते और इससे उबरते हुए वर्किंग क्लास अपने हक के लिए सड़कों पर उतर जाए। इसी को देखते हुए इस फासिस्ट सरकार ने कामगार समुदाय को सांप्रदायिकता की आग में झोंक देने का स्ट्रैटजिक प्लान तैयार किया। इसका मकसद गरीब-गुरबा, मजदूर में सरकार और पूंजिपतियों के प्रति पनपते गुस्से को धर्मांधता की तरफ मोड़ देना है।

धर्म व्यक्ति को दुर्बल और असहाय होने का पाठ ही पढ़ाता आया है। उसकी घोषणा में शोषक शक्तियों के समक्ष समर्पण और अधीन हो जाने का भाव है। इस तरह कामगार समुदाय शोषण को चक्र को खत्म करने के बजाए ईश्वर की इच्छा पर छोड़ देता है। भारत जैसे देश में कामगारों के बीच धर्म का ज़ोर बढ़ जाने के और भी खतरे हैं। तमाम उदाहरण है कि सरकार और पूंजीपतियों ने धर्म का इस्तेमाल मजदूरों के बीच खाई पैदा करने और उन्हें एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर देने के लिए किया है। शोषक वर्ग को पता है कि धर्म की सवारी गांठने वाला गरीब-गुरबा, मजदूर अपने उपर पर हो रहे तमाम ज़ुल्म को भूल अपने साथ के ही शोषित व्यक्ति को अपने अस्तित्व का दुश्मन समझता है। वो सरकार के खिलाफ उतर जाने के बजाए अपने साथी से नफरत पाल बैठता है। अपनी मांग के लिए मिलों पर कब्ज़ा कर लेने के बजाए किसी मजदूर भाई को खदेड़ देना चाहता है।

आज जब इकॉनोमी की हालत खस्ताहाल है। किसान बर्बाद हो रहे हैं। फसल का दाम नहीं मिल रहा। मजदूर लेबर चौक पर सुबह से शाम कर देता है लेकिन कभी रोज़ी मिलती है, कभी नहीं। आज दो रोटी मिली तो कल अंधकारमय है। और अब तो स्थिति और भी भयावह होने वाली है। न जाने कितने गरीब-मजदूर भूख में जान गंवा बैठेंगे। यह सब देखते हुए मोदी सरकार को भली भांति ज्ञात है कि बहुत संभव है इस देश का 45 करोड़ कामगार जो बदहाल जीवन जीने को अभिशप्त है, वो सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाए, सरकार उखाड़ फेंक देने की ज़िद पाल बैठे, पूंजिपतियों को खदेड़ कर अपने खून-पसीने का हिसाब चुकता करे। इन सब परिस्थितियों की संभावना को भांपते हुए इस सरकार ने एक वैश्विक संकट के समय धर्म को हथियार बना लिया है।

लेकिन सरकार और इस देश का एलीट तबका भूल रहा है कि जब पेट दाना मांगता है तो आदमी लूट में लग जाता है। वो गोदामों पर कब्ज़ा करता है। सरकार को सड़को से घसीटते हुए फेंक देता है। और समय के साथ संरचना में क्रांतिकारी बयार चलती है। एक बेहतर समाज के निर्माण का रास्ता खुलता है। मुझे उम्मीद है इस देश का कामगार समुदाय कोरोना से लड़ते जूझते हुए पहले से बेहतर दुनिया का निर्माण करेगा। शोषण का अंधा चक्र कुछ तो रुकेगा। सरमायेदारी के खूनी राज का कुछ तो खात्मा होगा। और इस अंधकार के बाद एक नई सुबह देखने को मिलेगी।

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