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“कोरोना संक्रमण के बीच जनता कर्फ्यू की ज़रूरत आखिर क्यों पड़ी?”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

विश्व कोरोना जैसी बीमारी से लगातार जूझ रहा है और सभी देशों की बस एक ही कोशिश है कि इस महामारी से कैसे छुटकारा मिले जिसके लिए लगातार कोशिशें जारी हैं।

वहीं अगर भारत की बात की जाए तो वह भी इस महामारी का शिकार हो चुका है और बस एक ही कोशिश है कि कोरोना जैसी महामारी को जल्द से जल्द रोका जा सके।

इसके विषय में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ही दिन पहले देश को संबोधित करते हुए जनता कर्फ्यू का ऐलान किया किया था।

वहीं, भारत की जनता ने भी इसे स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा कही गई बातों का पालन किया लेकिन कोरोना जैसी महामारी रोकने के लिए जनता कर्फ्यू काफी नहीं था।

शायद इसीलिए 24 मार्च को रात 8 बजे प्रधानमंत्री ने देश की जनता को संबोधित करते हुए देश की जनता से 21 दिनों के लिए सम्पूर्ण भारत बंद करने का अनुरोध किया।

प्रधानमंत्री ने इसे जनता कर्फ्यू से बढ़कर बताया और लोगों से घर में ही रहने की अपील की। राज्य सरकारों के निर्देशों का शक्ति से पालन करने के लिए कहा जो कि जनता व देश हित में है और हम सभी को इसका पालन करना भी चाहिए।

इसी व्यवस्था या यूं कहें कि कर्फ्यू के अंतराल में आम जनता को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ेगा जो कि कई लोगों के लिए सामान्य है मगर मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बेहद गंभीर भी हो सकता है।

कुछ अच्छा होगा तो साथ ही साथ कुछ परेशानियां भी होंगी। इन्ही परिस्थितियों को सोचकर मैंने एक कविता लिखी है, जो मैं सबके साथ शेयर करना चाहूंगा।

कविता का शीर्षक- रण: धैर्य का

बंद दिहाड़ी घर बैठे हैं
कूचे, गलियां सब सुन्न हो गए।
उदर रीते और आंख भरी हैं
कुछ घर इतने मजबूर हो गए।

कहें आपदा या रण समय का
जिसमें स्वयं के चेहरे दूर हो गए।
“घर” भरे हैं “रणभूमि” खाली
मेल-मिलाप सब बंद हो गए।

घर का बेटी-बेटा दूर रुका है
कई घर मे बिछड़े पास आ गए।
हर घर में कई स्वाद बने हैं
कई रिश्ते मीठे में तब्दील हो गए।

बात हालातों की तुम समझो
तुम्हारे लिए कुछ अपनों से दूर हो गए।
जो है अपना वो पास खड़ा है।
मन्दिर-मस्जिद आदि सब दूर हो गए।

धैर्य रखो, बस ये है रण धैर्य का
सशस्त्र बल बाले सब बर्बाद हो गए।
है बलवान धैर्य स्वयं में
अधैर्य के बल से सब हार गए।

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