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“नाच गाने के बीच खत्म होते संवैधानिक मूल्य”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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वर्तमान समय में बाहरी सौन्दर्य के बीच संवैधानिक और नैतिक मूल्य जैसे आंतरिक सौन्दर्य का लगातार नुकसान हो रहा है। जिसके मूल्यांकन की आवश्यकता है। आज राष्ट्रीय त्यौहार के नाम पर सिर्फ तिरंगा फहराकर खानापूर्ति की जाती है।

बच्चों में संवैधानिक मूल्य विकसित हो इसके लिए कोई कार्यक्रम होता ही नहीं है। ऐसे सकारात्मक कार्य के बजाय नाच-गाने का आयोजन किया जाता है जिसमें बच्चे अपनी भागीदारी निभाते हैं जहां इन बच्चों को फिल्मी गाने और डांस के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसका यह परिणाम होता है कि बच्चों के मन में स्वयं को नायक समझने की प्रवृति बन जाती है।

हिंदी सिनेमा का समाज पर असर

फोटो साभार- सोशल मीडिया

हिंदी सिनेमा नायक को किस कदर बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है यह किसी से छुपा नहीं है। अगर कोई विद्यार्थी उनकी नकल करता है तो यह लाज़िम है कि वह सामाजिक मर्यादाओं का उल्लघंन करेगा।

इसके साथ यह जानना आवश्यक है कि बच्चों में जिस तरह का भौतिक विकास होगा उनमें वैसी प्रवृत्तियों का भी विकास होगा जो कि एक सभ्य समाज के लिए कलंक है।

आज बच्चो में मनमाना करने की प्रवृति देखी जाती है। जिसमें उनकी ज़्यादातर कोशिश सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध खुद को स्थापित करने की होती है। इसका सबसे बड़ा कारण है विद्यालयों में नैतिक मूल्य और संवैधानिक मूल्य विकसित करने की कोई योजना नहीं होना।

यह बात पूर्णतः सत्य है कि एक अनपढ़ बच्चे से अधिक एक पढ़े लिखे बच्चे में हिंसा करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। क्योंकि उसे यह महसूस होता है कि वह जो कर रहा है सही है।

सोचिए हम आने वाली पीढ़ी के समक्ष क्या परोस रहे हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अगर हम राष्ट्रीय त्यौहार 26 जनवरी और 15 अगस्त की बात करें तो इसी दिन बच्चों के मन में सबसे अधिक ज़हर घोला जाता है। 15 अगस्त यानी राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिवस एवं उसके आंदोलन का इतिहास और योगदान बताने के बजाय मां तुझे सलाम और बॉर्डर जैसी फिल्मों का नाटकीय रूप प्रस्तुत किया जाता है। जिसके कारण बच्चे उस नायक के गुणों को आत्मसात करने के चक्कर में पड़ जाता है।

26 जनवरी जिस दिन भारतीय संविधान को लागू किया गया, बच्चों को संविधान के उद्देश्य और मूल्य को बताने के बजाय, बड़ा सा साउंड बॉक्स लगाकर स्कूल और कोचिंग का प्रचार किया जाता है। साथ ही बच्चों के नाच गानों का भी प्रोग्राम होता है।

उपरोक्त कार्यक्रम के लिए बाकायदा बच्चों को 15-20 दिन पूर्व से तैयार किया जाता है। इस प्रकार के कार्यक्रम के लिए बच्चों के अभिभावक को भी बुलाया जाता है। अभिभावक बहुत खुश होते हैं तथा तालियां बजाते हैं जब उनके बच्चे स्टेज पर परफॉर्मेंस करते हैं।

अगर आज बच्चे हिंसा करते हैं तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि हम बच्चों में अहिंसा के महत्व विकसित करने में सक्षम नहीं रहे। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे सही दिशा में जाएं और एक ज़िम्मेवार नागरिक बनें तो उनमें संवैधानिक मूल्य विकसित करना अहम कदम होगा। यह भारत में बढ़ती हिंसा, असहिष्णुता इत्यादि को रोकने तथा खत्म करने का एकमात्र उपाय है।

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