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रात को अकेले ट्रैवल करने पर घरवालों ने कहा, “ऊंच-नीच हो गई तो?”

सौम्या ज्योत्स्ना

सौम्या ज्योत्स्ना

बंदिशों का एहसास तो आज भी है मगर बागी बनने की चाहत ने बेशर्म बना दिया है। अब क्या करुं बात यह है कि मुझे कभी भी बंदिशें पसंद ही नहीं हैं।

मन मुताबिक कपड़े पहनने से लेकर मनपसंद विषय पढ़ने और यहां तक कि अकेले बाहर जाने से लेकर रात को देर से घर लौटने पर तक मुझे बंदिशें पसंद नहीं हैं। कभी बंदिशें रीति-रिवाज़ों के पर्दे में छुपी होती है तो कभी सामाजिक ढांचों में ढली हुई होती है।

बंदिशें और ज़िम्मेदारियां हैं अलग

सौम्या ज्योत्स्ना

मुझ पर बंदिशें अगर आई भी हैं तो केवल जिम्मेदारियों के कारण, जिसे अगर मैं बंदिशों की श्रेणी में रखूंगी तो शायद यह थोड़ा अजीब होगा, क्योंकि बंदिशों का एहसास बार-बार करवाया जाता था मगर लोग भी जानते थे कि यह लड़की रोकने-टोकने पर ज़्वाला बनकर भड़केगी, इसलिए इसे टोकना ही गलत है।

एक घटना याद आती है, जब मुझे अकेले रात को ट्रेवल करना था मगर घर पर सबको लग रहा था कि कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो क्या होगा?

मुझे यहां तक सुनने को मिला कि लड़की जात हो संभलकर रहो और इतना इगो तो बिल्कुल मत रखो, क्योंकि ऐसे भी बाद में पति और परिवार की ही खातिरदारी करनी है।

यह बात सुनकर तो मानो मेरे शरीर में अंगारे ही फुटने लगे। अरे, लड़की जात क्या होता है और खातिरदारी क्या होती है? पति और परिवार से तो प्यार किया जाता है, यह खातिरदारी वाली बात कहां से आ गई? सच कहूं तो वह मेरे लाइफ की पहली और आखरी बंदिश थी, क्योंकि उसके बाद किसी की हिम्मत ही नहीं हुई मुझ पर कोई भी बंदिश लगाने की।

मेरी ज़िद्द और मेरी सनक

सौम्या ज्योत्स्ना

मैंने ठान लिया अब चाहे जो हो मुझे जाना है, मतलब जाना है। अब इसे ज़िद्द कहें या सनक, यह तो मुझे नहीं पता लेकिन मैंने जाने का निश्चय कर लिया था और मैं गई भी, क्योंकि लोग या परिवार वाले आपको इस तरह से बोलकर आपकी आज़ादी या आपके मन को अपने काबू में नहीं रख सकते हैं।

आज भी लोग बोलते हैं। ऐसा नहीं है कि वे बोलते नहीं मगर उन्हें भी पता है कि मुझे बोलकर वे अपना ही समय बर्बाद कर रहे हैं।

मैं केवल इतना ही कहना चाहती हूं कि हर मोड़ पर अनेकों बंदिशें आपकी राह को रोककर खड़ी रहेंगी, जिसे कभी सामाजिक जामा पहनाया जाएगा तो कभी परिवार की इज्ज़त का हवाला दिया जाएगा मगर आपको केवल एक बात याद रखनी है कि अपने लिए भी जीना है।

खुद को तलाशना ज़रूरी

यह बात बचपन से ही हर लड़की को समझनी चाहिए कि उसे अपने शर्तों पर ज़िंदगी जीनी है। हर बार भाई, पिता या पति पर निर्भर नहीं रहना है।

अपने शौक को खुद पूरा करना है, अपने लिए एक घंटा निकालना ही है ताकि खुद को समय दे सकें और खुद के पोटेंशियल को तलाश सकें, जिससे अपनी आवाज़ उठाने में आपके शब्दों में चिंगारी महसूस हो। बंदिशों को तोड़िए, क्योंकि बंदिशें केवल तोड़ने के लिए बनी होतीं हैं।

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