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बिहार के इस ‘कैंसर गाँव’ में पिछले 2 साल में मर चुके हैं 50 लोग

फोटो साभार- Flickr

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सहरसा के सत्तर कटैया प्रखंड अंतर्गत सहरवा गाँव में कैंसर के कारण पिछले 2 साल में 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग उतने ही मरीज़ अभी वर्तमान में भी कैंसर से पीड़ित हैं।

अभी हाल ही में स्मिता देवी जिनकी उम्र 28 वर्ष थी उनकी मौत ब्रेन कैंसर की वजह से हो गई। अपने पीछे वो दो मासूम बच्चों को छोड़ गई हैं। कल इसी गाँव की अमरीका देवी जो दिल्ली में इलाज करवा रही थी, लीवर कैंसर की वजह से तेग बहादुर अस्पताल में मौत हो गई।

 सरकार की क्या ज़िम्मेदारी बनती है

नीतीश कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

सत्तरकटैया में पिछले कुछ सालों में हरेक कुछ दिनों पर कैंसर की वजह से किसी ना किसी की मौत हो रही है। अभी वर्तमान में भी करीब 50 के करीब मरीज हैं। आईजीआईएमएस की टीम ने एक दिन में करीब 60 लोगों का टेस्ट किया जिसमें से करीब 35 लोग कैंसर के प्रारम्भिक स्टेज में पाए गए।

ब्रेन कैंसर, लीवर कैंसर, लंग कैंसर, थ्रोट कैंसर और यूट्रस कैंसर से लेकर हर प्रकार के कैंसर के मरीज़ इस गाँव में हैं। एक गाँव के पास ही इतने मरीज़ कैंसर यदि कैंसर के पाए जाते हैं तो सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए।

सरकार को इसकी व्यापक जांच करनी चाहिए थी और कारणों का पता करना चाहिए था लेकिन सरकार जैसे सो रही है। आईजीआईएमएस की टीम के जांच में जो 35 लोग प्रारम्भिक स्टेज में पाए गए थे, कम-से-कम उनके इलाज की तो व्यवस्था होती। लेकिन उनको भी पता नहीं किसके भरोसे छोड़ दिया गया है।

आयुष्मान भारत योजना भी किसी काम का नहीं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

लोग तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं। गरीबी में लोग ईलाज के लिए घर बेचकर, कर्ज़ आदि लेकर दिल्ली-मुंबई जाने को मजबूर हैं।अधिकांश मरीज़ अत्यंत गरीब परिवारों से हैं, उनमें से अधिकांश लोगों का बीपीएल कार्ड तक नहीं बना है, आयुष्मान योजना लाभ या राष्ट्रीय व राजकीय आरोग्य निधि से मदद की बात बहुत दूर की है।

कम-से-कम 10 लोग ऐसे हैं जो पीड़ित तो हैं कैंसर से लेकिन ईलाज के लिए पैसा ना हो पाने की वजह से बिना ईलाज के बस यूं समझ लीजिए कि तिल तिलकर मर रहे हैं। आयुष्मान योजना जैसी योजना के तहत मरीज़ पांच लाख तक अपने इलाज में खर्च कर सकता है जिसका वहन सरकार करती है।

वहीं सच तो यह है कि उससे सिर्फ पटना और दिल्ली, मुंबई जाकर ईलाज हो पाता है। उसमें भी 5 लाख छोड़िए, कुछ हज़ार में मदद मिलती है। एक कैंसर पीड़ित महिला आयुष्मान कार्ड लेकर पटना गई ईलाज करवाने। अस्पताल ने बताया कि इससे 17000 रुपये ही खर्च किया जा सकता है।

12000 का अस्पताल ने जांच कर दिया और 5000 रुपये से ईलाज। महिला वापस गाँव आई और कुछ दिनों में उसकी मौत हो गई।

कैंसर मरीज़। फोटो साभार- आदित्य मोहन

स्थानीय पत्रकारों और लोगों के बारंबार प्रयास के बावजूद सरकार ने सिर्फ एक बार आईजीआईएमएस की टीम को जांच के लिए भेजी है। पीएचईडी की टीम जल परीक्षण के बाद उसमें आर्सेनिक और आयरन होने से इंकार कर चुकी है।

यह गाँव इस समस्या से लगातार जूझ रहा है और सरकार द्वारा मदद के नाम पर उपेक्षित है। ज़रूरी है कि बिहार स्वास्थ्य मंत्रालय इसे एक स्पेशल केस की तरह ट्रीट करे।

कैंसर के कारणों की जांच के लिए एक स्पेशल रिसर्च टीम, स्थानीय अस्पताल में कैंसर स्पेशलिस्ट मेडिकल टीम और ईलाज के लिए सरकारी मेडिकल योजनाओं से आर्थिक मदद ले।

इन तीन चीज़ों पर काम होना बेहद ज़रूरी है। सरकारी स्तर पर जो हो सकता है उसके लिए संवाद स्थापित करने की शुरुआत हो चुकी है लेकिन मुझे लगता है इसमें गैर-सरकारी प्रयास की भी ज़रूरत है। सबसे पहले ज़रूरत है कैंसर के कारणों के ऊपर रिसर्च की।

गौरतलब है कि 28 वर्षीय स्मिता देवी की भी दो दिन पहले मौत हो गई।


संदर्भ- https://bit.ly/3bgfCIS

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