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“अपने परिवार से ही शुरू हो जाता है रंग और लिंग का भेदभाव”

फोटो साभार- Flickr

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भेदभाव कहने को तो बहुत ही छोटा शब्द है लेकिन जब यह शब्द किसी को अपनी चपेट में ले लेता है, तो उसके लिए जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारे भारत में भेदभाव वर्षों से चला आ रहा है जिसके कोण में कभी जाति व्यवस्था रही है।

कभी रंग के आधार पर भेदभाव हुआ है, तो कभी नस्ल के आधार पर यह भेदभाव हमारी जिंदगी में शामिल रहा है। कहने को तो हमारा भारत आज बहुत आगे पहुंच चुका है मगर जब राजनीति पर हम नज़र डालते हैं, तो वहां भेदभाव एक अलग ही रंग में हमारे सामने पेश होता है।

घर से ही शुरू होता है भेदभाव

भेदभाव का यह सिलसिला हमारे घर से ही शुरू होता है, जब बेटों और बेटियों में फर्क की चादर लंबी होने लगती है। अमूमन मेरे मम्मी-पापा ने बेटे और बेटी में फर्क नहीं किया मगर कुछ रिश्तेदार ऐसे हैं, जिन्होंने फर्क की चादर को बढ़ाने का प्रयास किया है।

जैसे कहीं बाहर दूर-दराज़ जाने पर कहना कि तुम लड़की हो कुछ अनहोनी होने का डर है मगर लड़का होती तो हम लोग जाने देते। इसलिए बेहतर है कि मत जाओ या किसी भाई को साथ में ले लो।

इस तरह की बातें शायद कई लड़कियों ने सुनी होंगी। अगर-पास से कुछ सामान लाना हो और रात के 7 या 8 बज रहे हों तो कहा जाता है कि तुम रहने दो भैया ला देंगे।

फिक्र और फर्क के अंतर को समझना होगा

मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि वह सामान अगर मैं लेकर आऊंगी तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। बस आने-जाने का एक रिस्क ही तो रहेगा।

हालांकि बड़ों की यह फिक्र जायज़ है मगर यही फिक्र जब आगे जाकर फर्क में बदलने लगती है, तब किसी का भी दम घुटना एक साधारण बात हो जाती है। इस तरह से ये बातें मेरे साथ कुछ समय तक चलीं। हालांकि अब परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं।

मेरी दोस्त के साथ रंग आधारित भेदभाव

इसी तरह अगर मैं अपनी एक दोस्त की कहानी बताऊं तो आपको पढ़कर थोड़ा अजीब लगेगा। उस लड़की की शादी 12वीं के बाद ही कर दी गई। कुछ सालों बाद एक बच्ची भी हुई मगर उसके बाद ही उसके पति ने उसे केवल इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वह सांवली थी। 

महिलाओं के साथ भेदभाव के मुद्दे

महिलाओं के साथ भेदभाव किसी एक मुद्दे को लेकर कभी नहीं होता है। मुझे ऐसा लगता है कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव होने के अनेकों कारण हैं जिनमें रंग-रूप, बनावट और ना जाने कितने मुद्दे शामिल हैं।‌ 

इन दो उदाहरणों ‌से हम देख सकते हैं कि भेदभाव हमारे समाज में किस तरह से घुल गया है। इसे बढ़ावा देने से रोकने के लिए हर किसी को पहल करनी होगी और इसमें हर तबके को शामिल होना होगा।

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