17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 3 महीने के अंदर महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन लागू करने का आदेश दिया। यह फैसला महिला सशक्तिकरण की दिशा में क्रांतिकारी और प्रासंगिक है।
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि महिला अधिकारियों को सेना में स्थाई कमीशन ना देना सरकार का महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह को दिखाता है। अगर महिलाओं की क्षमता और उनकी उपलब्धियों पर शक किया जाता है, तो यह महिलाओं के साथ सेना का भी अपमान है।
मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां बेहद खास हो जाती हैं, क्योंकि सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन ना देने की वकालत कर रही थी सरकार। केंद्र सरकार की दलील है कि पुरुष सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज़्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं।
स्थाई कमीशन देने के लिए महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था
महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2010 में फैसला सुनाया था। फिर 2 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर सहमति प्रदान कर दी थी।
इसके बाद भी केंद्र सरकार ने इस फैसले को लागू करने से मना कर दिया। केंद्र सरकार के इस रवैये के खिलाफ महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
करीब 9 साल बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर सहमति की मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
सरकार महिला सैनिकों को लेकर पूर्वाग्रही क्यों रहती है?
सरकार की दलीलों से स्पष्ट होता है कि सरकार महिला सैनिकों को लेकर कितना पूर्वाग्रही है। सरकार तीन तलाक के मुद्दे को महिला सशक्तिकरण से जोड़कर अपनी पीठ थपथपाती है लेकिन महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देना सरकार की नज़रों में महिला सशक्तिकरण नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार के महिला सशक्तिकरण जैसे दावों की पोल खोलता है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे नारों से चुनकर आई सरकार का सुप्रीम कोर्ट में यह चेहरा सबको हैरत में डाल देता है।
मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा था। उसी को ध्यान में रखते हुए इस बार सरकार ने महिला दिवस से पहले महिला विमर्श से जुड़े कार्यक्रम को मनाने का फैसला लिया। महिला दिवस पर कार्यक्रमों की बढ़ती संख्या से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सरकार अपनी बिगड़ती छवि को दुरुस्त करने में जुट थी।
#EachforEqual की थीम पर मना महिला दिवस
इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला दिवस की थीम #EachforEqual रखा। यह थीम हमारे समाज और सरकार को आईना दिखाती है कि आज़ादी के 7 दशक बाद भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों के बारबार नहीं हैं। ऐसा क्यों?
इसका जवाब तो सरकार ही दे सकती है। इस थीम की राह पर समाज को चलना होगा तभी लैंगिक भेदभाव जैसी बुराई खत्म हो सकेगी।
भारत की पूर्वाग्रही सरकार को इज़रायल देश से सीखना चाहिए
इज़रायल की सेना में लैंगिक भेदभाव नहीं है। 85 लाख आबादी वाले देश इज़रायल में करीब 30 लाख सैनिक हैं। जितने पुरुष सेना में काम करते हैं, उतनी ही महिलाएं भी। 30 लाख की सेना में करीब 15-15 लाख मर्द और महिला सैनिक हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब इज़रायल की महिलाएं सेना में भागीदारी दे सकती हैं तो भारत की महिलाएं क्यों नहीं? भारत की महिलाओं के प्रति लोगों की अभी भी पुरानी धारणा बनी हुई है कि महिलाएं कमज़ोर होती हैं। समय के साथ ऐसी कई रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़ने का काम महिलाओं ने किया है।
मेजर मिताली मधुमिता, स्क्वॉड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल, फ्लाइट अफसर गुंजन सक्सेना और दिव्या अजीत कुमार वैसी महिलाएं हैं, जिन्होंने समुद्र के रास्ते दुनिया नापी है। इन सभी महिलाओं ने युद्ध के मैदान में दुश्मनों को पराजित किया है।
आज की महिलाएं जब विमान उड़ा सकती हैं और युद्ध लड़ सकती हैं तो सेना का नेतृत्व क्यों नहीं कर सकतीं? हाल ही में 26 जनवरी 2020 को पहली बार महिला कैप्टन तान्या शेरगिल ने गणतंत्र दिवस परेड में सिग्नल कोर के जत्थे का नेतृत्व किया था।
महिलाओं ने जिस तरह से सेना में स्थाई कमीशन का दरवाज़ा खोलकर एक बार फिर से साबित कर दिया कि वे पुरुषों से कम नहीं हैं। वे हर क्षेत्र में, हर काम पुरुष जितनी कुशलता से कर सकती हैं।
महिलाओं के साथ न्याय के नाम पर छलावा
सेना में महिला सैनिकों की बात की जाए तो 14 लाख सशत्र बलों के 65 हज़ार अधिकारियों के कैडर में महिलाओं की संख्या थलसेना में 1500, वायुसेना में 1600 और नौसेना में 500 ही है।
ज़्यादातर महिलाओं के सामने घरेलू दायित्वों की वजह से सैन्य सेवाओं में आने वाली चुनौतियों का सामना करना होगा। उन्हें अपनी मेहनत का लोहा मनवाना होगा।
आज के समय में महिलाएं सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में अपनी कामयाबी का लोहा मनवा रही हैं। विज्ञान से लेकर सैन्य क्षेत्र तक और साहित्य से लेकर सिनेमा तक महिलाओं का प्रदर्शन काबिल-ए-तारीफ है। बावजूद इसके आज भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों के बराबर नहीं है। बहुसंख्यक स्तर पर अभी महिलाओं को संघर्ष करने की ज़रूरत है।
पुरुष प्रधान समाज की बड़ी समस्या रही है कि उनके स्थापित वर्चस्व को महिलाओं द्वारा चुनौती दिया जाना। उदाहरण के लिए ऑनर किलिंग, ग्रामीण व कुछ शहरी क्षेत्रों में ऐसे मामले बहुत आते हैं।
इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पुरुषों से यही अपेछा कर रहा हूं कि आप महिलाओं को कमज़ोर या कमतर मत आंके। उन्हें बराबरी का मौका दें।
पुरुष और महिला समाज रूपी गाड़ी के दो पाहिये हैं, जिनके एक साथ चलने से ही समाज सुचारू रूप से आगे बढ़ सकेगा। तभी विकास की राह पर महिला और पुरुष दोनों का समान रूप से भागीदारी होगा।