चीन के वुहान शहर से शुरू होकर विश्व के 140 से भी अधिक देशों में एक नए किस्म के कोरोना वायरस की दहशत व्याप्त है। इंसानों के बीच तेज़ी से फैल रहे संक्रमण को गम्भीरता से लेते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है।
वायरस के स्रोत को लेकर वैज्ञानिक किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं। संक्रमण को रोकने और उपचार के लिए वैक्सीन की खोज पर वैज्ञानिकों की रिसर्च अभी तक जारी है।
इस लेख के माध्यम से जानते हैं कोरोना वायरस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
इंसान, पशु, पक्षियों और सरीसृप वर्ग को प्रभावित करने वाले कोरोना वायरस को क्रमशः अल्फा वायरस, बीटा वायरस, गामा वायरस और डेल्टा वायरस चार भागों में विभाजित किया है।
अल्फा वायरस
इसके अंतर्गत क्रमशः फेलाइन कोरोना वायरस और कैनाइन कोरोना वायरस आते हैं। फेलाइन कोरोना वायरस यानी कि बिल्लियों में पाए जाने वाले इस वायरस से ज़्यादातर बिल्लियां पीड़ित होती हैं। फेलाइन कोरोना वायरस इंसानों को प्रभावित नहीं करता है।
कैनाइन कोरोना वायरस
दुनिया में सबसे ज़्यादा कुत्ते इसी वायरस की वजह से बीमार पड़ते हैं। वर्ष 1971 में जर्मनी देश के अंदर रहने वाले कुत्तों में फैले इस वायरस ने महामारी का रूप ले लिया था। कैनाइन कोरोना वायरस इंसानों को प्रभावित नहीं करता है।
बीटा वायरस
यह कोरोना वायरस का विशाल समूह है जो इंसानों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। चीन के वुहान शहर से लेकर पूरी दुनिया में दहशत फैलाने वाला ‘नोवल’ वायरस कोविड -19 इसी के अंतर्गत आता है। यह तीन प्रकार के होते हैं-
प्रथम- एस.ए.आर.एस. वायरस, जो कि चमगादड़ों से इंसानों में फैलता है। वर्ष 2002 में भी इस प्रकार के वायरस से मात्र 6 माह में 800 मौतें हुई थीं।
द्वितीय- मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (एम.ई. आर.एस.) वायरस ऊंटों से इंसान में फैलता है।
तृतीय- नोवल (N) वायरस अपने जेनेटिक कोड में दो दर्जन से ज़्यादा म्यूटेशन के बाद अत्यधिक घातक हो जाता है।
गामा और डेल्टा वायरस
मुर्गियों और चूज़ों से फैलने वाले इस वायरस को एवियन इंफेक्शियस ब्रोंकाइट्स (आई.बी.वी) वायरस के नाम से भी जाना जाता है। यह मुर्गियों में अंडे देने की क्षमता प्रभावित करता है।
यह वायरस ज़्यादातर सुअरों में फैलता है। इससे सुअरों की आंते संक्रमित हो जाती हैं जिसकी वजह से उन्हें डायरिया होता है।
बीमारियों का नामकरण व प्रक्रिया
दुनियाभर में पहले एक ही बीमारी को अलग-अलग नामों से जाना जाता था, जिसकी वजह से कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वह किसी भी नई बीमारी को एक नाम दे ताकि सभी शोध संस्थानों और अस्पतालों को इलाज में मदद और एक जैसे मानक मिलें।
किसी भी बीमारी को नाम देने का कार्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनैशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (आई.सी.डी.) विभाग द्वारा किया जाता है। एनिमल हेल्थ और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) दोनों संगठन से आई.सी.डी. अहम जानकारियां हासिल करता है।
किसी भी बीमारी का नया नाम रखने से पहले आई.सी.डी. कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का विशेष ध्यान रखता है। जैसे कि क्या जानवरों या पेड़ पौधों में उक्त बीमारी से मिलते-जुलते लक्षण वाली बीमारी तो नहीं मिलती?
यदि जांच में ऐसे किसी भी पैथोलॉजिकल रिकॉर्ड का उल्लेख नहीं मिलता है तब कहीं जाकर तथाकथित बीमारी को एक नया नाम दिया जाता है।
बीमारी को घातक बनाता है ‘एन’
डॉक्टरों के लिए भी ऐसी बीमारीयों का इलाज कठिन हो जाता है जिनके नाम के आगे ‘एन’ शब्द लिखा हो। ‘एन’ शब्द का मतलब ‘नोवल’ होता है।
इस शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी बीमारी का पैथोलॉजिकल रिकॉर्ड नहीं होता और शोधकर्ताओं को शुरुआत से बीमारी को समझना पड़ता है।
कोविड- 19
ऐसी ही एक घातक बीमारी का नाम है ‘NCOV’ यानी कि नोवल कोरोना वायरस जो, विश्व में महामारी का रूप ले चुका है। यदि सी.ओ.वी.आई.डी. (कोविड-19) को डिकोड करें तो सी.ओ. का मतलब है कोरोना।
वी.आई. का अर्थ है वायरस और डी यानी कि डिजीज। ’19’ को वर्ष 2019 के लिए उपयोग में लाया गया है। इसे डॉक्टर एन.सी.ओ.वी.-19 भी लिख सकते हैं।
यहां एन का मतलब नोवल, सी.ओ. का अर्थ कोरोना और वी यानी कि वायरस। वर्तमान में कोविड-19 का पूरी दुनिया में खौफ व्याप्त है। इस खतरनाक बीमारी के कहर से अब तक हज़ारों जानें जा चुकी हैं और अनगिनत लोग संक्रमित पाए गए हैं।